गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

दिल्ली और उत्तरप्रदेश में फिर से खतरनाक घरेलू आतंकी पकड़े जाने पर मन को व्यथित करती और शांतिप्रिय लोगों से सवाल पूँछती रचना-

काले सांप नजर आए हैं,
फिर से घर के आँगन में,
फन जहरीले उठते फिर से,
भारत माँ के दामन में,

खाते देश का लेकिन देखो,
देश तोड़ने आए हैं,
कुछ इस्लामी कुत्ते देखो,
भों-भों करने आए हैं,

भारत को हर बार असहिष्णु,
कैसे तुम कह जाते हो,
पीठ के पीछे इन नागों को,
क्या तुम दूध पिलाते हो,

मुसलमान को देश से आखिर,
खतरा नजर क्यों आता है,
जबकि खतरा देश की खतिर,
मुसलमान बन जाता है,

फतवा देने वालों आखिर,
इनके लिए भी बोलो तो,
फेविकोल से चिपके थूथन,
आगे आकर खोलो तो,

मुझे बता दो आतंकी क्यों,
यार दिखाई देते हैं,
इनको शह देने वाले तुझको,
क्यों बाप दिखाई देते हैं,

उन मुल्ले मौलों को तुम भी,
तो फटकार लगाओ जी,
देश तोड़ने की बातों पर,
तो प्रतिबंध लगाओ जी,

तेरी चुप्पी पता नहीं क्यों,
तेरी देशभक्ति पर भारी है,
क्या समझूँ ये अफजल जैसे,
छुरा घोपने वाली है?

फिर भारत के आगे मैं,
प्रश्न खड़ा ये करता हूँ?
जेहादी मुस्लिम ही क्यों हैं?
इसी बात से डरता हूँ,

देश तुम्हें देता है सब कुछ,
उसका तो सम्मान करो,
आतंकी भड़वों को मारो,
जेहाद खुलेआम करो,

एक निवेदन फिर करता हूँ,
चुप्पी तोड़ें मुस्लिम भी,
देश के संग आगे आकर के,
देश को जोड़ें मुस्लिम भी,

या फिर मोदी से बोलो तुम,
चुन चुन कर संहार करो,
जिन्हें देश से प्यार नहीं है,
सिंधु नदी के पार करो,



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©®योगेश योगी किसान

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

काश यही काम सीमा पर खड़े जवान करने लगें,
जो हम आप कर रहे हैं?
धर्म की लड़ाईयां?


उदाहरण देता हूँ-
आपको ले चलता हूँ जंग के मैदान पर
जंग चल रही है सभी सैनिक हिन्दू मुस्लिम, सिख ,ईसाई ,पारसी,जैन इत्यादि  मोर्चे पर डटे हैं , अब दृश्य देखिये हिन्दू विद्याधर दुबे के बगल में ही एक सैनिक जोसेफ रोबर्ट लड़ रहा है उसकी गोलियां खत्म हो जाती हैं वह दुबे से कहता है यार मैगजीन फेंक !
दुबे क्या यह कहकर मना कर देंगा की तुम ईसाई हो हम तुम्हें गोली नहीं देंगे तुम्हारी हमारी परंपरा अलग है ?
अब जोसेफ के बगल में हामिद लड़ रहा है उसकी भी गोलियां खत्म हो जाती हैं उसके बगल में लड़ रहा कोई हिन्दू सैनिक क्या यह कहकर उसकी सहायता नहीं करेगा कि तुम्हारा धर्म अलग है मैँ तुम्हारी सहायता नहीं करूँगा?


अगर ऐसा होता तो आज हर जंग हम हारते और सीमाएं खत्म हो जातीं दुश्मन हमारे घरों में घुस कर हमें मारते वह यह नहीं देखते की तुम हिन्दू हो कि ईसाई हो कि पारसी या मुस्लिम उनकी नजर में तुम सिर्फ हिंदुस्तानी हो!


आपस का बैर भाव ये सब राजनीति की देन है अपने धर्म की इज़्ज़त करनी चाहिए अच्छा है लेकिन दूसरे के धर्म की इज़्ज़त न करें यह गलत है?
भारत संविधानिक देश है जँहा सबको बराबर हक है यंहा अनेकता में एकता है ऐसा हम नहीं हमारा संविधान और मौलिक अधिकार कहते हैं?


आशा है आप सब समझ गए होंगे मैं कहना क्या चाहता हूँ!

🙏🙏🙏
©योगेश योगी किसान
मुसलमानों को देश से निकाल दो , हलवा पूड़ी समझ रखा है क्या? यह क्षद्म बातें हैं जिसका मकसद सिर्फ राजनीति है, और वह दोनो धर्म के नेताओं के तरफ से बखूबी चल रही है । गद्दार मुसलमानों में हैं तो हिंदुओं में भी कमी नहीं है?
यह जानते हुए भी की देश से 20 करोड़ मुसलमानों को अलग नहीं किया जा सकता ,यदि किया जाएगा तो फिर देश का एक टुकड़ा अलग होगा,
फिर ये तथाकथित राष्ट्रवादी यह कहकर लोगों को मूर्ख क्यों बना रहे हैं कि हम अखंड भारत का निर्माण करेंगे???
और इनके तमाम संगठन अपनी जेब भरने और देश तोड़ने के लिए ही तो काम कर रहे हैं ?

हिंदुओं की इतनी ही फिक्र है तो क्यों नहीं ईसाइयों जैसे मल्टीस्पेसलिटी फ्री हॉस्पिटल,स्कूल जैसी निःशुल्क सेवाएं स्टार्ट कर रहे हैं ,
मंदिर बनाएंगे और फिर भगवान के दर्सन के लिए vip कोटा vvip कोटा से दर्सन की भी उगाही करेंगे! अरे क्यों उसे मंदिर का नाम दे रहे हो ,सीधे कहो बिज़नेस है !
ईश्वर तो कण  कण में है हर जीव में है, उसे महलों की और संगमरमर की जरूरत नहीं है।
अगर मुसलमान और ईसाई को यह कहकर आरोप लगाते हो कि वो देश तोड़ते हैं तो यकीन मानो हिन्दू संगठन कोई देश जोड़ने की बात नहीं कर रहे।
धर्म एक ऐसी लड़ाई है जिसमे बेशक इंसान तो जीत जाएगा लेकिन इंसानियत हार जाएगी।

ब्लॉग से
©योगेश योगी किसान

रविवार, 23 दिसंबर 2018

उत्तरप्रदेश में बेटी को अपराधियों द्वारा ज़िंदा जला देने पर सिस्टम से सवाल करती मेरी रचना-

फिर जली है बेटी देखो रामराज्य के आँगन में,
देशभक्त फिर दुबक गए हैं किस गणिका के दामन में,

मंदिर मंदिर मुस्लिम मुस्लिम कब तक आग लगाओगे,
बेटी को कल कहने वालो कब तक यूँ लजवाओगे,

कँहा गया एन्टी रोमियो कँहा गए अब योगी जी,
सत्ता की चासनी में डूबे चुप बैठे क्यों मोदी जी,

कँहा गए वो कवि महोदय मंचों से चिल्लाते हैं,
रामराज्य अब देश मे होगा हर दम यही बताते हैं,

राष्ट्रवाद की बातें करके उल्लू खूब बनाते हो,
जनता के हक की बातों पर कैसे चुप हो जाते हो,

आखिर क्यों अपराध हो रहे बेटी क्यों शिकार बने,
कितने काम सुरक्षा खतिर जुमलों से अखबार भरे,

दलित, ब्राम्हणी, जैन सिख न बेटी को इंसाफ मिले,
गाय की कीमत ज्यादा लगती मौत का नहीं जवाब मिले,

सारे राह लुटती है इज़्ज़त ज़िंदा वह जल जाती है,
रामराज्य की बात मुझे भी जुमला नजर ही आती है,

अगर यही है रामराज्य तो वन में रहना ठीक लगे,
ज़िंदा रहना अपने वतन में जैसे कोई भीख लगे,

घण्टों तक चिल्लाने वाली मीडिया नजर नही आई,
क्योंकि उसको बेटी में टीआरपी नजर नहीं आई,

इंसाफ नहीं मिलता आखिर क्यों जाति जाति में फर्क हुआ,
राजनीति के कारण मेरा भारत सच मे नर्क हुआ,

अपराधी से सांठगांठ की  राजनीति अब बंद करो,
देश की जनता सुख में रह ले कुछ ऐसे प्रबंध करो,



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©®योगेश योगी किसान

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

*बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दी प्रस्तुतियां, बताया हैल्दी और जंक फूड में अंतर..*

*#JANSANDESHNEWS*
 https://jansandeshnews.com/?p=2113

   *✍🏻योगेश योगी*
*जनसंदेश न्यूज़,सतना*

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

प्रतिक्रिया

बार बार एक
सोसल मीडिया में एक मैसेज चल रहा है,  काँग्रेस आ गई अब कलमा पढ़ना पड़ेगा, कुरान पढ़ना पड़ेगा बच्चे नक्सली बन जाएंगे ,हिंदुओं की खैर नहीं हिंदुओं ने अपने पैर पर  कुल्हाड़ी मारी है कांग्रेस को चुनकर।

तो शालीनता से सुनिए-
यह देश भाजपा का नहीं है ,और न ही कांग्रेस का है यह देश है यँहा की जनता का ,यहाँ रहने वाले लोगों का, राजनीति का जन्म लोगों ने किया है न कि लोगों का जन्म राजनीति से हुआ,जो देश तोड़ने वाले कांग्रेस का या मुसलमानों का डर दिखाकर हिंदुओं के मन मे भरम फैलाना चाहते हैं वह एक बात नोट कर लें, कि सत्ता हमेशा से परिवर्तनशील रही हैं ,सत्ता को बपौती मानने की गलती न भाजपा को करनी चाहिए, न ही कांग्रेस को,। कौन कितने समय तक देश की सत्ता में रहेगा यह फ़ैशला जनता करती है वो भी उसके किये गए जमीनी कार्यों का मूल्यांकन करके । अगर कोई दल सत्ता से बाहर होता है तो होने का कारण स्वयं हैं,ये खुद का आकलन करने की बजाए दोषारोपण हिंदुओं पर कर रहे हैं साथ ही सारे देश को भयभीत कर रहे हैं, हिन्दू हिन्दू की रट लगाने वाले राजनीतिक संगठन और लोग जिन्होंने रट तो हमेशा हिंदुओं को लगाई है लेकिन हिंदुओं को वोट बैंक के अलावा कुछ नहीं दिया,ये भूल गए कि 110 करोड़ हिंदुओं में से 25 करोड़ हिंदुओं की स्थिति ही अच्छी है शेष हिन्दू आज भी जीवन के लिए सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं ,हिंदुओं का ठेका लेने वाले जरा ये भी तो बताएँ की अपने भंडार भरने के अलावा उन्होंने किया क्या है, बड़े बड़े मंदिर ,मठ और अखाड़े बना लेंने से हिंदुओं का कल्याण न कभी हुआ है और न होगा, हिंदुओं का कल्याण तब होगा जब वो आर्थिक और शैक्षणिक रूप से सम्रद्ध बनेंगे, ऐसा कब होगा? ऐसा जभी होगा जब गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा ,स्वास्थ्य, रोजगार, मिलेगा,और भृस्टाचार खत्म होगा। लेकिन इन सब की फिक्र इन हिन्दू प्रेमियों को क्यों नहीं है, क्या हिन्दू सिर्फ इनके कराए दंगों में मारे जाने के लिए ही बना है ? क्या उसका हक ये नहीं है कि वह अपनी बुनियादी सुविधाएं प्राप्त कर सके? क्या वह अपने ही देश मे बहुसंख्यक होते हुए भी इन हिंदुओं के मसीहाओं के कारण देश का हिन्दू ब्रेन वाश होकर, बस हिन्दू मुस्लिम तक ही सीमित रहकर महज एक वोट बैंक रह गया है? क्या  उन्नति पर उसका अधिकार नहीं है? जब हर व्यक्ति स्वतंत्र है तब बेवजह मानसिक प्रताड़ना वो भी धर्म के नाम पर क्यों?
इतिहास की बात की जाय तो यँहा हमेशा से ही शक ,हूण, कुषाण, और फिर 850 साल लगातार मुगल शासक रहे,इसके बाद फिर 250 साल अंग्रेजों का शासन रहा , अब प्रश्न ये उठता है कि 1100 साल से अधिक की परतंत्रता में हिन्दू सलामत कैसे रहा,क्या अपने आप को हिंदुओं का मसीहा कहने वाले बताएंगे कि उस वक्त तो तुम जैसे नफरत फैलाकर हिन्दू हित की बात करने वाले नहीं थे तब क्यों नहीं यँहा से हिंदुओं का विनाश हो गया,
जानते हो क्यों क्योंकि भारत भूमि में जो भी आया इसकी पवित्रता और भाईचारे को देखकर यँही का हो गया रही बात युद्ध और सत्ताओं की तो वो हर राजा करते आये हैं चाहे वह बाहरी हों या भारत देश के और तब के युध्दों को अब राजनैतिक रंग देकर हिन्दू मुसलमानों में बाँटा जा रहा है, क्यों ? क्योंकि तब सत्ताएँ तलवारों से प्राप्त की जाती थीं और अब धर्म जाति की गंदी राजनीति से। एक उदाहरण बताता हूँ इन क्षद्म राष्ट्रभक्तों को,
अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह(गाजी) जफर को 84 साल की उम्र में अंग्रेजों ने कैद करके रंगून की जेल में नजर बंद कर दिया और बहादुर शाह जफर के नाम अंग्रेजों ने एक चिट्ठी भिजवाई जिसमें 2 लाइनें लिखी थी-
*"दमदमे में दम नहीं है खैर माँगों जान की।*
*अब जफर झुकने लगी शमशीर हिंदुस्तान की।।"*

तब उस बूढ़े बहादुर शाह ने कील उठाकर जेल की दीवार में उन दो पंक्तियों के जवाब में कुरेदा -
*"गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की।*
 *तख़्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।।"*

इस देश की परंपरा हमेशा देशभक्ति से परिपूर्ण रही है। यँहा जो आया इसी की मिट्टी का हो गया।
इस देश को सभी से प्यार रहा है इस धर्म के नाम पर बाँटने और अपनी सत्ता के सपने देखना बंद करो ये देश सबका है, इसे टुकड़ों में मत बाटों। हिन्दू मुश्लिम के चूल्हों पर अपने घरों की रोटियाँ मत सेकों।
सच कड़वा होता है लेकिन सच सच ही होता है और सच यही है कि इस देश की राजनीति ही इस देश को गर्त में धकेलने को उतारू है। राजनीति ने नफरत की वो आग लगाई है जिससे उसकी रोटी तो बखूबी सेंकी जा रही है किन्तु उसकी लपटों से पूरा हिंदुस्तान आपसी नफरत के रूप में झुलस गया है,एक दूसरे पर भरोषा खो रहा है। कैसे लोग हैं जो अपने आपको राष्ट्रभक्त कहते हैं और इंसानों को धर्म के नाम पर आहुति चढ़ जाने को कहते हैं,राष्ट्रभक्त की परिभाषा शायद ऐसे लोगों ने कभी पढ़ी ही नहीं,एक छोटे से बच्चे से भी पूंछों की भगत, सुखदेव, असफाक, ऊधम,राजगुरु,हामिद जैसे तमाम महामना शहीद क्यों और किसलिए हुए तो जवाब मिलेगा देश के लिए,कोई भी यह नहीं कहेगा कि हिंदुओं के लिए ,मुस्लिमों के लिए ,धर्म के लिए। फिर ये नफरत आई कँहा से,जाहिर है कुर्सी और मैं-मैं की होड़ ने इस देश को राजनीति सिखा दी और इसी राजनीति ने देश को किनारे लगाने की ठान ली ।कैसे इस देश के विकास की बात करते हो जबकि सत्य ये है कि भृस्टा चार तुम राजनीति वालों की नसों में है और तो और खून की अंतिम बूँद तक मे मिलेगा। अगर किसी से सीखना है तो इतिहास जान लो , हम पर शासक रहे लोगों से सीखो जिनकी बिछाई पटरियाँ ,भवन,पुल आज भी जस के तस हैं और तुम्हारे विकास तुम्हारी ही तरह हैं कोई गारंटी नहीं ,कि आज बने कल खत्म। घटिया प्लानिंग जिन्हें यही नहीं पता कि सड़क बनने के बाद पाइप लाइन डालनी है की पहले, जिन्हें आज 70 साल बाद भी यही नहीं पता चला कि किसान भी इस देश का नागरिक है ,जिसे यही नहीं पता कि रोजगार कैसे दें, वो क्या देश को सोने की चिड़िया बनाएंगे ,जिन्हें हर प्रोजेक्ट में अपना फायदा और कमीशन दिखता हो,जो अरबों खरबों चुनाव में खर्च करते हो उनके मुँह से देशसेवा शब्द देश की बेज्जती है।
इस देश का हर व्यक्ति जिसने इस देश की उन्नति में योगदान दिया है चाहे वह किसी भी धर्म ,जाति का हो उसका इस देश मे बराबर हक है। और हाँ देश है तो पार्टी है, कोई भी पार्टी अपने आप को देश समझने की भूल न करे।


लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
©®
योगेश योगी किसान

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

*सिद्धार्थ नीलांशु ने किया कमाल, कक्का की वापसी,नागेन्द्र बचे बाल बाल,रामखेलावन, विक्रम, नारायण, जीते..*

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रविवार, 9 दिसंबर 2018

*आंखों देखी: गाय हिंसा का जरिया या सेवाभाव..*

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*करोड़ों पाठकों* के बीच अपना मुकाम स्थापित करने वाली हिंदी की सुप्रसिद्ध अन्तरताना हिन्दीभाषा. कॉम में प्रकशित मेरी रचना *'कुछ सवालात'* जरूर पढ़ें और शेयर करें। आपका एक शेयर लेखनी को संबल प्रदान करेगा।
🙏🙏🙏🙏
जय हिंद-जय हिंदी


योगेश योगी *किसान*

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

*खरी-खरी: राजनीति से जनता या जनता से राजनीति..*

*#JANSANDESHNEWS*
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*विशेष रिपोर्ट :  मेडिकल वरदान या खुली लूट…*
*#JANSANDESHNEWS*
 https://jansandeshnews.com/?p=1704
*सतना: चुनाव हुआ सम्पन्न ईवीएम गड़बड़ी का मुद्दा फिर छाया रहा,केंद्र क्रमांक 58 रहा जीरो प्रतिशत वोटिंग वाला केंद्र..*
*#JANSANDESHNEWS*
 https://jansandeshnews.com/?p=1580
योगेश योगी किसान की कलम ✍️से




*निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. रश्मि सिंह बिगाड़ सकती है भाजपा/कांग्रेस का चुनावी गणित..*
*#JANSANDESHNEWS*
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शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

अगर आपको लगा हो की इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटनाओं पर मेरी कलम ने आपके #क्रोध और #प्रश्नों को उठाया है  तो इतना #शेयर करें कि अपराधियों के पितामहों तक बात पहुँचे।


इंसानियत का हश्र क्यों है, क्यों बुरे हालात हैं?
शासकों से पूँछता हूँ, कुछ मेरे सवालात हैं?
बैठे हो क्यों कुर्सियों पर, मौन यूँ धारण किये,
घूमते क्यों कुकुरमुत्ते,जिनकी जगह हवालात है,
बेटियों की अस्मिता पर, बादल घनेरे छा गए,
जिनको जिम्मा सौंपा,वो भी नोचने को आ गए,
डर नहीं न खौफ़ मन में, बढ़ रहे अपराध हैं,
क्यों अचानक देश मे, पैदा हुए ये साँप हैं,
दूध आँचल से लगाकर, पी रही अनजान थी,
देश दुनिया से अभी वो, लाड़ली नादान थी,
क्यों नहीं है हक उसे, वह क्यों नहीं महफूज है,
इंसा हो या जानवर हो, क्यों घृणित ये रूप है,
हवश के ऐसे दरिंदों को, खुला क्यों छोड़ते,
राजनीतीक मुद्दों से, उनको भला क्यों जोड़ते,
ऐसे वहसी की भला क्यों धर्म से पहचान हो,
इतने टुकड़े कर भी दो न बोटियों में जान हो,
क्यों नहीं कानून का भय, देश की अवाम को,
आँखें क्यों अन्धी हुईं,न देखते इंसान को,
कुर्सियाँ सरकारों की अपराधियों से भर रहीं,
हुक्मरां कानून में संसोधने न कर रही,
राजनीतिक यरियाँ अपराधियों संग जारी हैं,
इसलिए अपराध होते देश पर जो भारी हैं,
मोमबत्ती की जगह तलवारों से तुम लैश हो,
गर्दनें कर दो अलग कठघरे में न बहस हो,
अब वंही हों फैसले जैसे जँहा अपराध हो,
खून से अपराधियों के इक नया इंकलाब हो,

#मंदसौर_शरद
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©®योगेश मणि योगी 'किसान'
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ब्लॉग-yogeshmanisinghlodhi.blogspot.in
हो सकता है आपको यह देखकर आश्चर्य लगे ,कुछ लोगों को यह राजनीति से प्रेरित भी लग सकता है,और कुछ विशेष लोगों को यह नौटंकी लग सकती है,अगर अतिविशेष लोगों की हम बात करें तो उन्हें यह माओवादी नक्सली या वामपंथी भी लग सकते हैं,खैर सोचने की क्षमता आदमी के लालन पालन पर निर्भर करती है,
आखिर क्या कारण है कि किसान की कोई सुनने वाला नहीं हैं ये किसान सिवनी के ज्ञान सिंह और उसका साथी जो आज दिल्ली तक ये बताने पहुँच गए कि उनका कसूर क्या है?
कसूर?
सच में कसूर क्या है ?
क्या किसानों का यह कसूर है कि वह दिन रात मेहनत करके अनाज उत्पादित करता है?
या फिर कसूर यह है कि वह देश के लोगो के मानसिक पटल से निष्कासित व्यक्ति है जिसकी बात कोई नहीं करना चाहता?
या उसका कसूर यह है कि उसे हाथों में गैती फावड़ा,कुल्हाड़ी,दराती थामना चलाना आता तो है लेकिन उसे लोकतंत्र पर अटूट विश्वाश है?
या फिर उसका कसूर यह है कि वह हर बार खेती में घाटा खाने पर भी उसे माता की भाँति सीने से लगाये घूम रहा है?
या उसका कसूर यह है कि वह उद्योगपतियों के इस देश मे सिर्फ अनाज उगाने वाली फैक्ट्री है?
या उसका कसूर यह है कि वह थका हारा लाचार वेवश होने के वावजूद सिर्फ हाथ जोड़े खड़ा है?
भारत देश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है ,ऐसा हम बचपन से सुनते पढते आये हैं लेकिन यँहा की अर्थव्यवस्था में कब्जा हमेशा से पूंजीपतियों उद्योपातियों और राजनेताओं का रहा है, सही मायने में अगर हम यह कहें कि भारत आज़ाद है तो यह एक छलावा होगा ,धोखा होगा एक द्वैज क्षद्म होगा क्योंकि चंद लोगों का विकास और असंख्य का विनास यह पूंजीवादी व्यवस्था की देन है।
आज भी देश का संविधान यह कहता है कि सबका और सबके लिए लेकिन बात उल्टी प्रतीत जान पड़ती है सबका देश कुछ विशेष लोगों के लिए।
आज किसानों की जरुरतों और उनकी हालत से संबंधित बातों  को न कोई कारण चाहता है न सुनना चाहता है।
यदि हम देश के विकास की बात करें तो किसानों का खून पसीना उसके लिए शामिल है लेकिन उसके हक की बात उस व्यवस्था और उस विकास में दूर दूर तक शामिल नहीं है।
यह ठीक उसी प्रकार से है जिस तरह से अंग्रेजों के जुल्मों से तंग आकर लोगों ने आज़ादी का बिगुल फूँक दिया। इसमें कोई दोराय नहीं की आज़ादी अभी भी अधूरी ही है, बस देर है तो बिगुल की । इतिहास साक्षी है कि क्रांति का जन्म अन्याय से ही होता है,बस देर है तो क्रांति की स्वर्णिम इबारत को लिखने वाले योद्धाओं की जो किसानों को अपने मतलब के लिए नहीं उनके हकों और अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार करें तभी इस देश का विकास और उन्नति संभव है।

योगेश योगी किसान
©®लेख सर्वाधिकार सुरक्षित

बुधवार, 19 सितंबर 2018

भारतीय सैनिक की फिर से पाकिस्तानी सेना द्वारा आँख निकाल कर गला काटने और टाँग काटने जैसे बीभत्स कृत्य की निंदा करती और सत्ता से सवाल करती मेरी रचना-


भारत की खुद्दारी को साँप सूँघ क्यों जाता है,
सीमा की परपाटी पर क्यों सैनिक मारा जाता है,
पीठ के पीछे से लगती है  दिल्ली तेरी गोली भी,
एक के बदले दस सिर लाते कँहा गई वह बोली जी,
सैनिक न गाजर मूली है सत्ता क्यों फिर समझ रही,
केसर की क्यारी क्यों नित ही खुनों से है दहक रही,
आग लगा दो 56 इंची सीने में जज्बात नहीं,
गीदड़ के आगे शेरों की जब कोई औकात नहीं,
सत्ता  को कुर्सी से मतलब सैनिक और किसान मरे,
दो कौड़ी के राजनीति पर कैसे कोई गर्व करे,
राजनीति कोठे पर बैठी सत्ता का मुजरा देखे,
मंचों से फिर चीखचीख़ कर जुमलों की बातें फेंके,
कभी चीन को कभी पाक को जाकर गले लगाते हो,
कैसे देश के रक्षक हो और कैसा धरम निभाते हो,
रोज रोज की चिकचिक छोड़ों एक बार आह्वान करो,
पाकिस्तानी कुत्तों का अब तो  अतिसंधान करो,


©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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रविवार, 17 जून 2018

क्या हम इंसानियत ज़िंदा रख पाएंगे?

एक तरफ हम विश्व शांति के प्रयाशों के लिए इस दुनिया मे जाने जाते हैं दूसरी ओर ऐसी परिस्थियों का निकलक्ट हमारे देश से आना अपने आप मे एक गंभीर सवाल खड़ा करता हैं,या फिर धर्म की आड़ में कुछ लोग सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।
अगर धर्म की बात की जाय तो कोई भी धर्म कभी अपराधन का समर्थन नहीं करता जब तक उसे तोड़ा मरोड़ा न जाये ,आज यही हो रहा है धर्म को तोड़ मरोड़ कर उसके ऐसे पहलू पेश किए जाते हैं जो वास्तव में हैं ही नहीं, बस उनके सहारे अपना मकसद पूरा किया जाता हैं और उसके पीछे होता है एक गुप्त षड्यंत्र या धर्म को ही खत्म करने की एक कुंठित मानसिकता ।
#इस्लाम की अगर हम बात करें तो यह कभी सिद्ध नही हुआ है कि इस्लाम आतंकवाद ,मानवता हनन जैसी बातें सीखाता हो उल्टे यह धर्म अपने भाईचारे और एकता के लिए जाना जाता है,किन्तु इस्लाम को तोड़ मरोड़ कर कुंठित मानसिकता के व्यक्तियों ने धर्म से जोड़कर अधर्मियों की ऐसी फौज तैयार की जो आज पूरी कौम के विनाश और उसकी साख पर बट्टा लगाने को उतारू है।
धर्म के नाम पर , युवाओं का ब्रेनवाश किया जाना फिर उनका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करना यह किसी धर्म मे नहीं है यह खुद की विचारधारा है जिसका घ्रणित रूप आतंकवाद और   इस्लामिक स्टेट आतंकवाद विचारधारा है।
अगर आतंकवाद का पहलू देखा जाय तो आज तक जिस लड़ाई को वो लड़ रहे हैं उसके कोई मायने नहीं निकले वरन उसके नुकान हर देश को भुगतने पड़े हैं।
धर्म के नाम पर लड़ाई करने वाले कई संगठन आज आतबककयों की लिस्ट में हैं, सबसे बड़ी बात ये है कि किसी भी धर्म के लिए अनुयायियों की फौज या उनका ब्रेनवाश यह कहकर ही किया जाता है कि धर्म खतरे में है और हमे उसके लिए कुछ करना हैं।
आज हालात ये हो गए कि इस्लामिक देश जो अब तक खुस थे और इन्हें धर्म की लड़ाई बताते थे वो आज सबसे ज्यादा आतन्कवाद और अन्य समस्याओं का दंश झेल रहे हैं।
यह मानसिक पटल में रखने योग्य बात है धर्म ने शांति से अशांति की ओर रुख किया है और अब जनमानस खुद परेशान है।
#हिन्दू विश्व पटल पर अपने कर्म धर्म और शांति के लिए अग्रणी स्थान रखने वाली कौम, भारत और उसकी संस्कृति का प्रभुत्व प्राचीन काल से लेकर अब तक सर्वोच्च ही रह है, आज भी हिन्दू धर्म शांति के लिए अपनी पहचान और  रुतवा कायम किये हुए है।
धर्म के नाम पर रोज बन रहे नित नए संगठन कितनी धर्म रक्षा करते हैं यह किसी से छुपा नहीं है, अपने आप को स्वतंत्र या फिर बड़े संगठनो से संबद्धता बाटने वाले हजारों लाखों संगठन और समितियाँ आपको मिल जायेंगीं।
अब प्रश्न ये उठता है कि धर्म की रक्षा क्या सिर्फ आक्रमकता से ही कि जा सकती है, कालान्तर से अब तक हमारा अस्त्तिव हमेशा बना रहा है, किन्तु हमारी मानसिकता भी क्या अब धर्म के नाम पर प्रदूषित होने लगी है,हम ईश्वर ,धर्म,पाप पुण्य से ऊपर उठकर क्या एक नई व्यवस्था चाहते हैं जँहा अशांति का माहौल हो
क्या कुछ चन्द लोग हिन्दू धर्म को खत्म करना चाहते हैं उनकी मानसिकता की अकन्हि किसी और से प्रभावित हैं ,इन संगठनों के युवाओं का भी क्या ब्रेन वाश किया जाता है यह सोचनीय हैं?
जिस तरह से आज आक्रमकता धर्म को लेकर बढ़ी है वह अपने आप मे बहुत ही गंभीर प्रश्न है, लोग जँहा अपने अपने कामों और कर्मों में व्यस्त थे क्या उन्हें अब धर्म की लड़ाइयों के लिए विवश या ब्रेनवाश किया जाता है।
सोशल मीडिया का जँहा एक ओर सदुपयोग हुआ हैं वहीं इसका दुरुपयोग भी बहुत तेजी से हो रहा है,आपसी रंजिशें और कट्टर बनाने में इसका बहुत बड़ा हाथ है,बिना सोचे समझे मेसेज पर अमल या उसपर प्रतिक्रिया भारतीयों की कमजोरी रही है।
काफी दिन पहले #गौरी_लंकेश (एक पत्रकार) की हत्या हुई थी उस केश में आरोपी #वाघमारे का प्रायश्चित करना कि उसे महिला को नही मारना चाहिए था और यह कहना कि 2017 में उसे यह कहा गया कि उसे #धर्म_को_बचाने_के_लिए_किसी_को_जान_से_मारना_होगा, और मैं तैयार हो गया ,पर मुझे नही पता था कि मारना किसे है?
शब्दों पर ध्यान देने योग्य है उसे धर्म के नाम पर तैयार किया गया जबकि टारगेट उसे पहले नही पता था ?
क्या यह ठीक उसी प्रकार है जिस तरह से इस्लाम के नाम पर आतंकियों को ब्रेनवाश करके अपने खाश मंसूबों के लिए भेज जाता है।
अगर ऐसा है तो यह हिन्दू धर्म के लिए भी बहुत बड़े खतरे की झलक है,बड़े संघठन  उन्हें यह देखना होगा कि हिन्दू एकता और धर्म के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह फैल हुए संगठन कंही किसी विशेष भावनाओं से प्रेरित होकर या किसी के इशारों पर तो ऐसे कृत्यों को अंजाम नही दे रहे।
बहरहाल अमेरिका सीआईए का भारत देश के दो बड़े संगठनों को आतंकी संगठन की लिस्ट में सुसज्जित किया जाना बड़े शर्म की बात है।
मंसूबों के लिए धर्म का ध्रुवीकरण गहरी चिंता का विषय है,युवाओं को ज्यादा सक्रिय और समझदार रहने की जरूरत है,न कि शिकारियों के चंगुल में फंसने की।
क्योंकि सभी आतंकियों का उपयोग मात्र चारे के रूप में किया जाता है।

लेख सर्वाधिकार सुरक्षित,

©®योगेश योगी 'किसान'
Blog-yogeshmanisinghlodhi.blogspot.in

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सोमवार, 11 जून 2018

क्या इस फैशले को उच्च कोटि का कहा जा सकता है,या फिर यह फैशला एक सोची समझी साजिश का नतीजा है,यह आने वाला वक्त तय करेगा,यह उन प्रतिभाओं के लिए एक झटके से कम नही जो 15-20 साल तक तैयारी करते हैं,
अगर निजी कंपनियों के अधिकारियों को इस बेस पर नियुक्ति दी जा सकती है कि अमुक व्यक्ति ने 15 साल का अनुभव प्राप्त किया है,तो यह एक हास्यास्पद बात है,क्योंकि अगर 15 साल या उससे अधिक के कार्यानुभव वाले व्यक्ति पर सरकार को दया आ रही तो ,इस देश मे ऐसे तमाम लोग हैं जिनका हर क्षेत्र में कार्यानुभव 15 साल या 50 साल है,
मसलन
1.कृषि करने वाले को  कृषि विभाग के उच्च पद ,
2.सफाई कर्मचारियों को सफाई विभाग के उच्चधिकारियों के पद,
3.खेलकूद में अनुभव रखने वालों को खेल मंत्रालय के उच्च पद,
4.शिक्षा विभाग में कार्य करने वाले संविदा अतिथि विद्वानों या अन्यत्र जगह काम करने वालों को उच्च पद,
5.रोड बनाने वाले ठेकेदारों को कार्यानुभव आधार पर उच्च शासकीय पद,
6.निजी स्वास्थ्य कर्मियों को स्वास्थ्य के उच्च पद,
7.पेट्रोल पंप पर कार्य करने वाले दैनिक कर्मियों को उच्च पद,
8.दैनिक वेतन भोगियों मजदूरों को उच्च पदों पर मौका कार्यानुभव के आधार पर,

ऐसे कई सारे क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को कार्यानुभव के आधार पर उच्च पदों के मौके दिया जाना चाहिए,क्योंकि काम तो काम होता है।
यह विडंबना है कि सरकार हमेशा अपने चन्द लोगों को लाभ देने के लिए ऐसे कूटनीतिक षड्यंत्रों को रचती है जो आम जन की समझ के बाहर होते हैं। कंही न कंही नौकरशाह देश को नई दिशा देने का प्रयत्न करते है लेकिन हर मौके पर राजनीति उनके ऊपर भारी साबित होती है ऐसे में इस फैशले से नौकरशाही को खत्म करने की शुरुआत का यह पहला कदम है।
Upsc जैसी संस्था को एक झटके में ही नीचा दिखाने का प्रयास यह लोकतंत्र के साथ एक खिलवाड़ ही है, यह सबको विदित है कि निजी कंपनियां और उसके कर्मचारी निजी स्वार्थ और निजी लाभ के लिए ही कार्य करते आये हैं उनसे देश सेवा की उम्मीद करना बेमानी होगी,यह तो वही बात है कि 100 चूहे  खाकर बिल्ली हज करने को चली है।
इस कुंठा के पीछे उस सोच का हाथ है जो यह चाहती है कि देश मे राजनैतिक और प्रसाशनिक दोनो तरीके से कब्जा कर के मनमाने ढंग से देश को चलाया जाय, आप इसको दुषरे तरीके से कह सकते हैं कि यह एक मानसिक आतंकवाद है जिसके परिणाम बहुत है भयंकर होंगे।
आज जिस तरह से सरकार ने नई  नौकरियों का सृजन करने की जगह उल्टे पुरानी नौकरियों को ही विलोपित किया है उसका यह कदम करोड़ों युवाओं के सपनो पर एक डाका है उनकी प्रतिभा की हत्या है।
यह कहना कंही से कंही तक अतिषन्योक्ति न होगी कि यह पूरे देश को निजी हाथों में सौपने का आरंभ है।


लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
©® योगेश मणि योगी 'किसान'
फ़ोटो-पत्रिका 11.06.2018

शनिवार, 9 जून 2018

सैनिक किसान के मरने पर क्यों नामर्दी दिखलाते हो,
आतंकी पत्थरबाजों से क्यों हमदर्दी दिखलाते हो,
देशभक्त कहते हो खुद को शर्म करो या डूब मरो,
सैनिक किसान की हत्या में ऐसे न सहयोग करो,
आतंकी को गले लगा लो, घुँघरू पांवों में पहनो
बालों में गजरा धारण कर ,उनके आँगन में नचलो,
जरा बताओ मंदसौर में क्या किसान आतंकी है?
कितने जमानत पर हैं बाहर, जाने कितने बंदी हैं?
महबूबा के गठबंधन की, सहज गुलामी क्यों करते,
क्यों बैठे हो सत्ता में ,जब इतना ही हो तुम डरते,
न जाने क्यों सबकुछ दिखता, पर किसान न दिखता है,
देश को पाले जो मेहनत से, वो तिल तिल कर मरता है,
आखिर क्यों अनजान बने हो, बहुत उम्मीदें पाली थीं,
तेरा गुल्लक जब जब फूटा सारी खुशियाँ खाली थीं,




सर्वाधिकार सुरक्षित
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©®योगेश मणि योगी 'किसान'

रविवार, 3 जून 2018

#किसानों से लगातार बेरुखी देश का #अन्नदाता मर रहा है,जो वादा हुआ आज तक नही निभाया गया , सिर्फ उद्योगपतियों के लिए दनादन फैसले,
किसानों का दर्द क्या दर्द नही है???
खैर महलों वालों से अपेक्षा ही क्या??

महबूबा को कभी चीन को जाकर गले लगाते हो,
छाती पर रखकर किसान की हरी चीनी ले आते हो,

इतने निर्मम इतने निर्दयी कैसे तानाशाह बने,
मंचों से जो वादे करते सबके सब उपहास बने,

देश की खतिर जीता मरता वही आज परेशान है,
पूँछ रही थी भारत माता क्या मोदी इंसान है,

भूमिपुत्र की हालात पर क्यों तुमको तरस नही आती,
सीना 56 सिकुड़ा कैसा तुमको शरम नहीं आती,

बुलडोजर चलवा दो सबपर कहो किसानी बंद करें,
हाथों में ले हथियारों को खुद अपना प्रबंध करें,

किसानो के पैरों की तुम धूल नही हो मोदी जी,
किसने तुमको सत्ता सौंपी भूल रहे हो मोदी जी,

सर्वाधिकार सुरक्षित
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©®लोधी योगेश योगी 'किसान'

मंगलवार, 8 मई 2018

"कहानी" हरिया किसान की।


दुखी मन से हरिया अपनी लाठी, बैलों की रस्सी लेकर घर से खेत जाने की कहकर घर से निकला, वह शायद दुखी इसलिए भी था कि उसके दोनों बच्चे नए कपड़े लाने की जिद कर रहे थे,खिलौने तो उसने माटी के बनाकर जैसे तैसे उनको मनाकर दे दिए थे।
बच्चों की जिद सुनकर हरिया की बीबी जो कोने में बैठी थी गंभीरता को भांपते हुए बोली-" बिटवा जिद नाही करा ,तोहार बापू के पास अबै पैसा नाही आय जब होई ता बिना कहे लय अइ"।
उसकी इस बात में शायद ये दर्द भी छुपा था कि खेती में इतनी बचत कँहा होती है कि व्यवस्थाओं के नाम पर खर्च कर लिए जाएं, मन ही मन वह सोच रही थी कि 10 बरस हो गए शादी हुए, हरिया ने उसे महज 2 बार ही साड़ी लेकर दी थी वो भी इतबारी बाजार के ठेले में मिलने वाली क्योंकि उसका बजट बस इतना ही स्वीकृति देता था?
वह अच्छी तरह जानती थी इसलिए बच्चों को सांत्वना दे रही थी जिसकी वह खुद 10 बरसों से कृपा पात्र थी!
मगर बच्चे थे कि जिद पर अड़े थे,बचपन को कँहा पता होता है कि गरीबी क्या होती है फसल क्या होती है और नुकसान क्या होता है?
बचपन तो स्वछन्द होता है जिसकी कोई सीमाएं नही होती वह बिना रोके टोक हर चीज पाने को लालायित रहता है।
माँ ने समझाया उसका समझाना जब व्यर्थ साबित होता नजर आया तो हरिया ने  चहेरे पर झूठी मुस्कान के साथ बच्चों की माँग को बदलने का प्रयास करते हुए कहा-"जल्दी जल्दी बतावा बेर(एक फल जो शबरी ने राम को खिलाए थे) अउर जंगल जलेबी केही केही खाने है"
बचपन तो पचपन होता है सारी आकांछाएँ भूल कर अपने मुँह में पानी भरते हुए खुसी से उछल पड़े-"बापू वई बेलहा हार से जौन ल्याये तै,उ ता गजबई गुरतुर रहीं हैं" हरिया ने मंद मुस्कान बिखेरी उसे लगा कि चलो कम से कम बच्चों ने जिद तो छोड़ी।
हरिया की बीबी ने हरिया की तरफ देखकर मानो मन ही मन यह कह दिया हो कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे ,मेरी साड़ी यही कह कर हर बार वादों में ले आते हो कि अबकी फसल अगर अच्छी हुई तो इस बार की और पिछली सारी की सारी साड़ी एक साथ ला दूँगा।
हरिया चैन की साँस लेता इससे पहले ही सोसायटी वाले ग्राम सेवक घर पर आए, भौहें तानते हुए बोले -"हरिया खाद बीज का पैसा कब दे रहे हो ? ये लो नोटिस अमुक तारीख को अगर पैसा नही दोगे तो डिफाल्टर हो जाओगे और ऐसा चलता रहा तो जमीन कुर्क कर लेगी सरकार कहे देता हूँ"।
हरिया ने पानी का गिलास देते हुए कहा-"साहब ई बार सब तो सूख गा है ,खाबे के लाले पड़े हैं कर्जा कइसन देब कुछ समझ मा नहीं आय रहा है,लेकिन हम पाई पाई चुका देब अपना विश्वास रखी"
विश्वास रखी ,तेरे इस विश्वास से सोसायटी और सरकार नही चल रही,विश्वास का तू ही अचार डाल लें,हमे तो वसूली करनी है पैसा तो देना ही पड़ेगें यह कहते हुए ग्राम सेवक दूसरे हरिया की तलाश में निकल गया।
हरिया के माथे पर चिंता की लकीरें एक बार फिर उभरीं, वह सोच रहा था कि वह करे तो क्या करे, बीबी बच्चों को जीने योग्य सुविधाएं ,शिक्षा  तक दे नही पा रहा ऊपर से एक नई मुसीबत।
गाँव के व्यौहर से 10 रुपये सैकड़ा प्रति महीना सूद से 10000 ले रखे हैं वो अलग.... तो क्या उधार न लेता तो बिटिया को मर जाने देता अभी तो फूल सी थी ,डॉक्टर सहाब कहते थे बड़े अस्पताल में दिखवाओ बहुत गहरा पीलिया है बचना मुश्किल है।
यह सोचता हुआ वह बच्ची की ओर देखता है आँखों का पानी उसकी पुतलियों को गीला तो करता है लेकिन बाहर नही आ पाता, फिर उसे याद आता है कि 5 साल हो गए लेकिन अब तक मूल नही लौट पाया जाने कितने 10000 उसने सूद में चुका दिए।
हरिया की बीबी ने थाली सामने रखते हुए कहा-"हमार मानो चिन्ता न करो ,राम सब ठीक करिहैं, खाना खाय ल्या ,आज-काल से गेंहूँ केर कटाई भी तो करें खा पड़ी"
हरिया ने एक रोटी खाते हुए कहा-"हर जनम मा तोहार जैसी मेहरिया मिले बस यहै बिनती राम से करी थे"

शाम की लालिमा आकाश में छाई थी ,कोई बड़ी तेजी से हरिया के घर के दरवाजे पीट रहा था-"भौजी दरवाजा ख्वाला.....जल्दी खोला" उसकी आवाज में एक अलग ही कर्कशता थी ।
दरवाजे खोलते ही हरिया की बीबी बोली-"का होइगा पुत्तन भैया,कहे चिल्लाय रहै"
पुत्तन की मानो घिघ्घी बंध गई..."ब्वाला कि अइसय ठाढ़ राहिहा" हरिया की बीबी ने कहा।
भौजी हरिया......हाँ का होइगा!
बड़ी लाईन केर तार टूट गए ता सबरे खेत केर फसल जल गय!
लोग बताउत रहे हरिया बेर के पेड़ मा फाँसी लगा लिहिन हीं?



सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश मणि योगी'किसान'

सोमवार, 7 मई 2018

किसानों की आत्महत्या या हत्या??



पूरा पढ़ना अगर इंसान हो तो???

अगर आप सुबह शाम की थाली चट कर जाते हैं और एक बार भी उस #अन्नदाता के बारे में नही सोचते तो जान लीजिए आप चाहे जितना कर्म कर लो सब व्यर्थ है?

#नेताओं,#उद्योगपतियों के खानदान में कितने लोगों ने तंगी और आर्थिक परेशानी के कारण #आत्महत्या की है, हमको आपको ये नेता, सत्ता,संगठन, भारत आजद होने के बाद विकास की जगह  मंदिर-मस्जिद,हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई,गाय ,धर्म, जाति आदि आदि के प्रपंच रचकर व्यस्त रखते हैं और हम इनके जाल में उलझे हैं ,यह बात याद रखना की इनका मकसद सिर्फ राजनीति है आम जन और किसानों का विकास नही।
इनका मकसद अँग्रेजों,मुगलों से भी गया गुजरा है ये आपकी खून की अंतिम बूँद तक चूष लेंगे,ये उद्योगपतियों के पाले पोषे वो नाग हैं जिनके चेहरे पर तो मासूमियत है लेकिन जहर कोबरा से भी खतरनाक है!
जागो यह भारत किसी के बाप की बपौती नहीं किसानों और गरीबों तुम्हें तुम्हारा हक नही मिलता तो ये अट्टालिकाएँ छीन लो और इनकी हुकूमत में आग लगा दो, घुट घुट के आखिर कब तक जिओगे, ये मलाई छाने और हम जहर पियें आत्महत्या करें, ऐसा कब तक चलेगा आज़ादी के बाद से आज तक सिर्फ नारे और भाषण विकास का सारा धन चन्द लोगों की मुट्ठी में,हालात जैसे के तैसे???

पहन कर लखलखा खद्दर वतन के रहनुमा बनते,
निभाते एक न वादा सजे मंचों से जो कहते,
बना जन रट्टू तोता है जो तेरे जाल में फंसता,
तुम्हें खुद याद न रहता कँहा किससे हो क्या कहते,

बिका ईमान है तेरा नजर फसलें नहीं आतीं,
बहुत बातें यँहा होतीं मगर असलें नहीं आतीं,
न जाने क्यों तुम्हें नफरत हुई मेरे किसानों से,
बने क्यों मूर्ख फिरते हो तुम्हें अकलें नहीं आतीं,

करोगे जो कभी मेहनत किसानी जान जाओगे,
कटाई कर लो एकड़ भर तो हमको मान जाओगे,
चलाओ मुँह न मंचों से रहो औकात में अपनी,
दराती जो उठा ली तो हमें पहचान जाओगे,



सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश मणि योगी 'किसान



गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

देश की बुनियादी समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराती और मृतक बच्चों को श्रद्धांजलि देती रचना-

बुनियादी सुविधाएं चाहिए मेरे हिंदुस्तान में,
ऐश अमीरी जिनको प्यारी जाएं पाकिस्तान में,
फिर मासूमों ने बलि दी है जिनको कुछ भी पता नहीं,
देश की घटिया राजनीति को फिर भी कोई खता नहीं,
कितने फाटक खुले पड़े हैं उनमें कोई रोक नहीं,
आने जाने वालों की क्यों उनमें कोई टोक नहीं,
बजट नही क्या इतना भी की फाटक कोई लग जाये,
बुलेट ट्रेन से नीचे सोचो तो दुर्घटना टल जाए,
नही जरूरत बुलट ट्रेन की नही चाँद में जाने की,
इंसानो को सिर्फ जरूरत बेसिक चीजें पाने की,
राजनीति की होड़ में तुम भी देश बनाना भूल गए,
जिन सपनो को सींचा हमने वो सारे ही शूल भए,
कभी ख़तम होती ऑक्सिजन कभी दवाई न मिलती,
फिर भी बाँछे खिली तुम्हारी कुर्सी तक है न हिलती,
क्योंकि तुमको मतलब न है जन मानस की पीड़ा से,
उनकी तुलना शायद करते तुछ नाली के कीड़ा से,
राजनीति में जनता के दुख दर्दों से तुम प्यार करो,
जैसा जिम्मा तुमको सौंपा वैसा तो अब काम करो,

सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी


मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

दलित के नाम पर थाली का ऐसे भोज न खाओ,
हकीकत जानते सब हैं न ऐसे ढंग दिखलाओ,
नही सुविधाएं घर पर हैं किराए का समां देखो,
जरा बेवकूफियों से तुम नेताओं खार तो खाओ,
कभी हालात न सुधरे तुम्हारे भोज खाने से,
वतन तो खा रहे हो सब हमारा चैन न खाओ,
कभी जो सोचते हमको दलित सा नाम न होता,
हमें सोचो ह्रदय से और रोटी बेटी अपनाओ,
नही कर सकते हो ऐसा तो कैसे उन्नति आये,
बने हैं वोट के ही बैंक जरा ये सच तो बतलाओ,

©सर्वाधिकार सुरक्षित
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योगेश योगी

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

सुन लो नेताओं तुम्हारी औकात सिर्फ तुम्हारे लिए अर्ज किया है,और उनके लिए भी जो किसान को आतंकी नक्सली और हिंसक कहते हैं-

दर्द कभी न समझ सकोगे भूमिपुत्र किसानों के,
पैदाइश हो लगता मुझको सच मे तुम हैवानों के,
तुम क्या जानो कभी खेत मे कैसे क्या क्या होता है,
कतरा कतरा उसके खूँ का कँहा समाहित होता है,
तुमने समझा वोट बैंक है जिसका काम किसानी है,
उनके हक को न देते यह सीधी सी बेईमानी है,
कभी उतरकर देखो थल पर ठंडी की उन रातों में,
या फिर धान की पौध लगाते कीचड़ के बरसातों में,
घुटने तक जब गड़कर भू में थोड़ा समय बिताओगे,
शायद उसके दर्द को काफिर महसूस कर पाओगे,
कमर लचक कर *निहुरे-निहुरे दिनभर करे निदाई है,
उसकी हालत उसकी पीड़ा कहती फटी बिमाई है,
सर पर रखकर बोझा उसने फसल दुपहरी में ढोई
उसकी किस्मत उसके दर्दों पर व्याकुल होकर रोई,
लिए दराती हाथ पकड़कर खेत काटता दिनभर है,
उसकी पीड़ा पर ऊपर से *लेत परीक्षा दिनकर है,
कोल्हू के हाँ कोल्हू के बैल के जैसा पिसता है,
सत्ता के हाँ सत्ता के दल्लों तुम्हे न दिखता है,
जिस किसान का जीवन सारा देश बनाने में गुजरा,
उसके हक पर चढ़कर तुमने नित्य जमाया है मुजरा,
तुमने उस ईश्वर का रुतवा पैरों तले है कुचल दिया,
उसके हक को सत्ता की कुर्सी की खतिर कुचल दिया,
उसकी फसल का पैमाना क्या कभी नही तुम चाहोगे,
कब तक तलवे उद्योगों के पतियों के तुम चाटोगे,
एक छोटी सी सुई की कीमत तय करते वो कैसे हैं,
हमने देश का पेट भरा है हम जैसे के तैसे हैं,
क्या हमको अधिकार नही है लागत को तय करने का,
इतना भी क्या हक न दोगे ,हक देदो फिर मरने का,
#बलात्कार मेरी फसलों का मंडी पर नित होता है,
मेरे लिए ये मेरा भारत खड़ा कभी न होता है,
ऐसा चलता रहा तो सुन लो फिर हथियार उठायेंगे,
जो जो हक में न बोलेगें, सर उनके काटे जाएंगे,

बघेली शब्द-
*निहुरे-निहुरे =कमर के बल झुकना,झुक जाना
*लेत- लेना
छायाचित्र-साभार

योगेश मणि 'योगी'
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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

#बेटियों के चीरहरण पर दुष्सासनों से सवाल करती और बेटियों को श्रद्धांजली देती मेरी रचना-

चीखों में जब बेटी की किलकारी का दम घुट जाए,
हैवानों के आगे जब जब नारी बेवस हो जाए,
तब तब भारत प्रश्न पूँछता सत्ता के अय्याशों से,
राजनीति की देश विरोधी टेढ़ी मेढ़ी चालों से,
क्यों बेटी की अस्मत लूटी जाती है दरबारों में,
मंदिर मस्जिद स्कूलों और भीड़ भरे बाजारों में,
जब सत्ता भी हामी भरकर सबको धता बताती हो,
बेटी की अस्मत ही जब घर इनके लूटी जाती हो,
भारत का उत्थान करोगे कैसे हमें बताओ जी,
कोठे बंगले में चीखें हैं उनसे खार तो खाओ जी,
धर्म और भारत के रक्षक तुमको कैसे मानें हम,
नारी के ऊपर हमला हो चुप्पी कैसे साधें हम,
नारी कोई वस्तु नही है जब जी चाहे भोग करो,
हिम्मत है तो एक बार, खुद की बेटी से योग करो,
नामर्दों की भीड़ जुटा के भगवा राष्ट्र बनाओगे,
विश्व गुरु के सपने देकर ऐसे कृत्य कराओगे,
तुमसे अच्छी नगर वधू है तन का सौदा करती है,
घर के अंदर पेट की खातिर चाहे जो भी करती है,
तुमने तो सपने दिखलाकर के हरकत ओछी करते हो,
किस मुँह से फिर वंदे वंदे भारत की जय कहते हो,
जिस मुद्दे में देश जलेगा कोर्ट भी उस पर बोलेगा,
यस सी,यस टी/तीन तलाक की ही फ़ाइल खोलेगा,
आँखों से पट्टी खोलो और इनपर भी संज्ञान करो,
न्यायपालिका की आत्मा को न ऐसे नीलम करो,
सत्ता सुनले कान खोल गर इज़्ज़त लुटती जाएगी,
बेटी पैदा कौन करेगा कोख में मारी जाएगी,



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©®योगेश मणि योगी
१३०४२०१८
#जम्मू_कठुआ अबोध बालिका #आसिफा पर बदले की भावना से की गई वहशी क्रूरता पर बालिका को श्रद्धांजलि अर्पित करते मेरे विचार-

यह मेरे भारत की विचारधारा नही हो सकती,हिन्दू धर्म कभी बदला नही लेता वह सहिष्णु है वह मानव धर्म का पालन करने वाला है, लेकिन अब क्या??
धर्म के ठेकदरों ने धर्म को तहस नहस कर दिया, कँही यह तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा धर्म और ईश्वर के अस्तित्व को निस्तोनाबूत करने की साज़िश तो नहीं।
रावण को हर साल मात्र इसलिए जलाया जाता है कि उसने माता सीता का मात्र अपहरण किया था?
इन रावणों का क्या माफ करियेगा इनको रावण कहना उचित नही ,इन दुष्ट, पापी,कलंकी,नीच,अधर्मी, जो धर्म की आड़ में भगवे की आड़ में ऐसे कुकृत्य को कर रहे हैं ,क्या कोई राम है जो इन भेड़ियों का मर्दन करेगा?
और उन लोगों का क्या होगा जो इन पापियों को बचाने के लिए आगे आएंगे,क्या उनकी बेटी के साथ इतनी ही दरिंदगी के साथ 7 लोगों ने यह अनाचार किया होता तो वह न्याय न माँगते?
हे राम यह तुम्हारे होने पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देगा? अगर ऐसा ही चलता रहा??दुनिया अट्टाहास करेगी कि देखो देखो एक छोटी सी भूल की सजा रावण को देने वाले, अपने आप को मर्यादा पुरुषोत्तम कहने वाले राम ने इन दुष्टों पर अपना वज्रपात क्यों नही किया?


लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

दो कौड़ी के #मुसलमान_बाबर_कादरी को #हिंदुस्तान_मुर्दाबाद बोलने पर उसको हजारों जूते मारती और औकात बताती
मेरी रचना-



सुन ले बाबर कान खोलकर नारे गलत लगाएगा,
जूते चप्पल बहुत हुए चौराहे पर टाँगा जाएगा,
तेरी इतनी जुर्रत कैसे नमक हरामी करता है,
खाता पीता इसी देश का पाक परस्ती करता है,
मुर्दाबाद बोलकर तूने भारत का अपमान किया,
कैसे सुनने वालों तुमने सुनकर कड़वा घूँट पिया,
मुझे शर्म आती है भड़वे अब तक कैसे ज़िंदा है,
तेरे पक्ष में जो बोलेगा वो भी तेरा वाशिंदा है,
तुझको मारेंगे हम सुनले अगर नजर आ जायेगा,
जो बोलेगा तेरी भाषा वो संग कुचला जाएगा,
तुझ जैसे नाजायज भड़वे भारत मे क्यों रहते हैं,
गोली मारो कुत्तों को जो उल्टा सीधा कहते हैं,
इनका वतन साफ दिखता है पाकिस्तानी भाषा है,
इन जैसों की बोटी बोटी मोदी तुमसे आशा है,
कँहा गए हो राष्ट्रवादियों छूप कर क्यों अब बैठे हो,
या फिर खाली हवा हवाई बातों पर ही ऐठे हो,
देश बंद बस राजनीति के कारण ही क्या होता है,
ऐसी बहकी बातों पर क्यों खून गरम न होता है,
घर मे इसके घुस जाने का आंदोलन हो जाने दो,
या फिर अपना भगवा छोड़ो कालिख यूँ पुत जाने दो,


भारत माता की जय
इंकलाब जिंदाबाद
जय जवान जय किसान

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रचनाकार
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शुक्रवार, 30 मार्च 2018

हमे मंदिर चाहिए हमे मस्जिद चाहिए,हमे धर्म चाहिए,हमे ये चाहिए हमे वो चाहिए???????????

आखिर क्यों कभी व्यवस्थाओं को सुधारने और बुनियादी समस्याओं के लिए कभी आवाज नही उठाते हो ,देश को इनके अलावा भी जरूरत है बहुत सारी चीजों की ,आज तक एक रैली नही निकाली कभी किसानों के लिए ,न ही किसी सैनिक के लिए ,न ही किसी बलात्कारी के लिए,???
आज देश को इसके अलावा भी ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है,
किसानो की 90 एकड़ फसल जलकर राख हो जाती है व्यवस्था के नाम पर तुम्हारे पास क्या है 1 दमकल गाड़ी,
क्यों??
चारों तरफ 11000 वोल्ट के बिजली वायर ठेकेदारी की भेंट चढ़े इतने लूज हैं कि न जाने कौन से खेत मे किसान की बलि ले लें,
आखिर क्यों इन पर कोई बहस और बात नही करना चाहता?
राष्ट्र की धुरी हैं हम किसान!
फसल हमारी कर्मभूमि है , और व्यवस्था हमारा अधिकार?
शहरों में विकास के नाम पर गंगा बहाए जा रहे हो ,मतलब क्या है तुम्हारा क्या गांवों में कीड़े मकोड़े रहते हैं, शहरों को AIMS, IIT, IIM, मेट्रो,एयरपोर्ट,पार्क, सब कुछ ,
गाँवो में विकास के नाम पर सिर्फ मोहल्लों में घटिया RCC रोड बस!!
हो गया विकास??
याद रखो धर्म गांवों में ही जिंदा है,खेत और खलिहानों में जिंदा है, जिस दिन बगावत पर उतरे तो सम्हालना मुश्किल हो जाएगा।
सबके साथ साथ बुनियादी समस्याओं पर भी ध्यान दो?

©®योगेश योगी
लेख 

मंगलवार, 20 मार्च 2018

इसमें भी कांग्रेश का हाथ होगा, नही है? फिर वामपंथी, नही है?फिर पक्का माओवादी, नही है?तो फिर देशद्रोही,नही हैं? अरे तो फिर पक्का मजदूरों का काम है,क्या कहा नही है? पाकिस्तान का होगा,नही है? तो फिर शत प्रतिशत किसानों का काम होगा, सही कहा ? 
उल जलूल बक रहा हूँ, कैसा कह रहे हैं साहब में तो आपकी सहायता कर रहा हूँ आरोप किसी के सर तो जाना ही है, इसलिए प्रेस कांफ्रेश के लिए पुख्ता नाम बता रहा था?
नाराज क्यों होते हैं? नाराज हो तो सुनो..
आरोप प्रत्यारोप का दौर खत्म करो राजनीति में थोड़ा सा ईमानदारी की शूरुआत करो, काम करो काम, तरक्कियाँ काम से मिलती हैं मंचों से नहीं!
और सुनो देश हित चिल्लाने से नही होता जनमानस का ख्याल रखना कर्तव्य समझोगे ,तभी देश एक होगा और उन्नतशील होगा, वसुधैव कुटुम्बकम कह देने बस से काम नही चलेगा?
विदेशों से उन्नति के नाम पर सभी सरकारें इतना कर्जा लेती हैं और उसका होता क्या है,सब अफसर नेता और ठेकेदारों के पेट मे जाता है ,यकीन मानिए अगर प्रोजेक्ट की लागत का 50%भी खर्च कर पाने का साहस सरकारों ने किया होता तो कभी ये दिन नही देखने पड़ते ? जो नीचे से ऊपर तक रिश्वत के परसेंट मिलजुल कर बाँट रखे हैं न, वह किसी से नही छुपे, रिश्वत को भी यह कह कर प्रोजेक्ट में लिया जाता है कि 3% तो ईमानदारी है, जो हर हर विभाग के मंत्री के पास अपने आप पहुंच जाता है,?
कभी सोचा है किसी ने की 5 साल तक मंत्री ,विधायक,सांसद, ठेकेदार ,या फिर अफसर अचानक से हजारों करोड़ के मालिक कैसे बन जाते हैं? और कैसे??
क्योंकि हकीकत ये है कि हम अपने अधिकारों पर बात करना नही जानते ,सत्ताओं से प्रश्न पूंछना नही जानते? जानते हैं तो बस चाटुकारिता? देश केवल गाय-गाय,हिन्दू-हिन्दू,मुसलमान-मुसलमान, करने से नही सुधरेगा अगर संगठनों के नाम पर हम देशभक्ति का दिखावा करते हैं तो फिर अत्याचार अनाचार पर संगठनो का मौन रवैया क्यों नजर आता हैं यह भी गंभीर प्रश्न है?
कहने का तात्पर्य ये की देश को एक रूपता में पिरोने है तो सत्ताओं से सवाल जवाब करना ही होगा और सबको समानता के हक देने ही होंगे?
©®योगेश योगी
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ब्लॉग -आओ कुछ नया करें

सोमवार, 12 मार्च 2018

बड़ा दुख होता है जब प्रधान जी कहते हैं कि किसान मेरी पहली प्राथमिकता हैं और वही आज देश मे दुर्भावना का शिकार हैं जिसको आपकी IT सेल मावोवादी, वामपंथी,देशद्रोही करार देकर आपकी बातों को सत्य साबित कर रही है की आपके पहले टारगेट पर हम ही हैं कांग्रेस मुक्त करते करते आज किसान मुक्त भारत करने पर तुले हो,
हम किसानों ने नासिक से मुम्बई तक का सफर अपने हक पाने के लिए किए ,वो हक जिन्हें भारत की आजादी से लेकर आज तक सिर्फ आस्वाशन के रूप में ही मिले हैं, आखिर क्यों तुम्हे दर्द नही, क्यों तुम्हारी जिह्वा से एक शब्द नही निकलता इन बेवस लाचार और देश की मुख्यधारा के नल-नीलों के लिए, क्या किसान का जन्म सिर्फ गरीबी लाचारी बेवसी में मरने के लिए बस हुआ है उसकी जिंदगी कोई ज़िन्दगी नहीं, सबको दुनिया जीतने की ललक उसे ये भी हक़ नही की वह अपनी बुनियादी समस्याओं से निजात पा सके, क्या यह अन्याय नही है? अगर धर्मों की बात करें तो कौन से धर्म में ये लिखा है कि दूसरों का पेट भरने वालों को यूँ तिल तिल मारा जाय,आखिर हमारी गलती क्या है? क्या हमने ये गलत किया कि तुम सबके बच्चे भूँखे न सोएं इसलिए हमने रात रात भर जागकर अनाज को पैदा किया तुम्हारी थाली तक पहुंचाया, और बदले में क्या मिला हमारी लागत से भी कम में हमारी फ़सलों का सौदा किया गया, तुम्हारे बच्चों का पेट तो भर गया लेकिन उस माटी मोल कीमत से हमारे बच्चे भूखे सोते रहे, हर बार इसी आस में कई शायद कुछ बेहतर होगा हमने अपना सब कुछ गिरवी लेकर कर्जा लिया कि शायद इस बार फसल अच्छी होगी तो सब ठीक होगा, ईश्वर से बचे तो तुमने लुटा नही तो तुम्हारी जमात में ईश्वर भी शामिल हो गया किसी ने कसर नही छोड़ी, बची कुची कसर उस दिन पूरी हो गई जब हम आतंकी,माओवादी, वामपंथी की परिभाषा से अलंकृत किया गया यह सम्मान पाकर हमारा सीना चौड़ा हो गया ,जानते हो क्यों?
क्योंकि तुम्हारे पास हमे कुचलने का ये अच्छा बहाना था दंगाइयों की टोली कहकर तुम हमको कुचल सकते हो? और हमारे अरमानों के साथ साथ हमारे हक और हमारी आवाज सब दफन हो जाएगी और सब यह कहकर पल्ला झाड़ लेंगे की ये अलंकृत लोग थे? आज सबकी अट्टालिकाएँ खड़ी हो गईं हम जिस के तस रहे, क्या जरूरत थी हमे बाहर निकलने की धूप में चलकर नासिक के तमाम गाँवो से मुम्बई तक आने की नंगे पांव हम अपने छाले दिखाना चाहते थे न ,न साहब ये गरीबी के छाले हैं चप्पल खरीद पाएं इतनी भी औकात नही बची है हमारी जानते हो क्यों तुम्हारी सुविधाओं में सब लूट गया हमारा  ! लेकिन क्या करते साहब भूख सब कुछ करवा सकती हैं, में भी कैसा पागल हूँ भूख की उपमा 56 भोग से भरे हुए पेटों के सामने कर रहा हूँ, नही साहब नही मैं फ़ोटो खिंचवाने आया था चैनल में लाइव होने आया था घर मे बोल कर आया था मुझे देखना मैं लाइव आऊंगा? मुझे इतनी राजनीति नही आती मैं तो इतना जनता हूँ कि मेरी फसलों की इज़्ज़त मंडी में यूँ न नीलम हो उसके कुछ कपड़े बचे रहने दो लागत से ऊपर तो दे दो, मैं खेतों में मरता हुन मेरे बेटे फौज में और ये देशवासी चुप हैं जाने क्यों इन्हें लगता है कि अनाज नेता पैदा करते हैं, कुछ गलत कह दिया क्या? आगा नही कहा तो फिर क्यों तुम्हारे गुलाम हैं सब हमारे हक की बात क्यों नही करता कोई? क्या भारत देश हमारा नही क्या हम विदेशी हैं? देश बनाने में हमारा कोई योगदान नही है? सारा विकास ,सारी मेहनत सिर्फ तुम नेताओं ने ही की है?
अरे कँहा जा रहे हो मुँह छिपाकर कुछ तो बोल दो कुछ तो कह दो चलो गाली ही दे दो, अरे सुनो न चलो समस्या का हल में ही बताता हूँ सुन तो लो , गोली ही दे दो?

©®लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
योगेश योगी वाल से

गुरुवार, 1 मार्च 2018

ये हैं पूंजीपतियों का विश्व बनाने का सपना, विकसित और विकासशील देशों को बनाने में हम मानवता को दफन कर चुके हैं ,तन पर छाल लपेटे हुए हमारे पूर्वज, जिन्हें आज की दुनिया मे नंगा कहा जाता है, वह बहुत सभ्य और शालीन थे! अरे नंगे तो तुम लोग हो जिनकी भावनाएं पैसों और तरक्की के बोझ तले दबकर सिसकियाँ लेती हैं, तुम्हारे उत्थान ने इंसानियत को शर्मशार कर दिया है ।आज मानवता का भविष्य ही खत्म होता दिख रहा है,झूठी आकांछा,झूठा रौब झाड़कर मासूम बच्चों की लाशों के ढेर लगाकर कौन सी तरक्की की ओर जा रहे हो कौन से विश्व की कल्पना कर रहे हो,कभी सोचा है कि तुम्हारी इस नापाक सोच ने कितने मासूमों का कत्ल किया है,कत्ल नही किया तुमने हैवानियत का वो नंगा नाच किया है जिसे देखकर शैतान भी शर्म से धरातल में चला जाय, लेकिन तुम क्यों जाओगे तुम्हे तो चाँद में जाना है मंगल में जाना है वँहा जीवन की संभावना तलाशना है फिर वँहा इंसानी बस्तियां बनाना है,क्या करोगे बस्तियाँ बनाकर भला तुम,जब तुम बसी हुई बस्तियों के दुश्मन हो उन्हें विकसित करने की जगह उन्हें विनासित करने में लगे हो ,भला कैसे यकीन हो कि तुम चाँद, मंगल पर घर बसाओगे, आज तुम जिसे तरक्की कहते हो वह तरक्की नही हैं,तरक्की होती है भूखे को खाना खिलाना गिरते को उठाना,मरते को बचाना लेकिन तुमने किया क्या है,इसका उल्टा ! आश्चर्य होता है कि लोग तुम्हे महाशक्ति कहते हैं तुममे शक्ति लायक कुछ नही है? तुम कायर हो ,शक्तिवान वो होता है जो दूसरों की रक्षा करता है, जीवन लेने वाला कभी शक्तिवान नही हो सकता, याद रखना तुम्हारा ये अहम तुम्हे इतना भारी पड़ेगा कि दुनिया से इंसानियत खत्म हो जाएगी फिर रह लेना अकेले और जीत लेना विश्व ,बन जाना विश्व विजेता, जिस तरह सिकंदर, बाबर, हिटलर ने सपना देखा था? पर ये क्यों भूलते हो वो जब दुनिया से गए थे खाली हाथ थे,मुझे याद है मेरे बाबा मुझे सिकंदर की कहानी सुनाते थे तब उसमे एक प्रसंग था? जब सिकंदर मरने वाला था, उसने कहा था मुझे कब्र में दफनाना तो मेरे दोनों हाथों की हथेलियों को बाहर रखना ताकि दुनिया देख सके कि सब कुछ जीत के भी मैं हार गया? मैंने बचपन मे ही सीख लिया, तुम महाशक्ति बनने के बाद भी अनभिज्ञ हो,हो या बनते हो? शातिर हो तुम, तुम्हारा यही शातिरपन दुनिया के विनाश के लिए ज़िम्मेदार होगा ,याद रखना!मानवता के हत्यारे!

लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशनार्थ
©® लोधी योगेश मणि योगी
www.yogeshmanisinghlodhi.blogspot.in 

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

लूट भरी है झूठ भरी है,
रग-रग ,नस-नस लूट भरी है,
संस्कारों की बात न करना,
हर बाला में नजर गोश्त है,
हीरोइन अब न्यूड खड़ी है,
कोई काम नही मिलता है,
जब डिग्री के मारों को,
जब सत्ता में कुंडली मारे,
बहुत से नमक हरामों को,
जब नफरत की आग जलाकर,
रोटी सेंकी जाती है,
दंगें झगड़ा करवाने को,
बोटी फेंकी जाती है
जाति धर्म की आग लगाकर,
मजहब पाठ पढ़ाते हैं,
खुश होते हैं आग लगाकर,
अपना वतन जलाते हैं,
जब वोटों की खातिर सारे,
तिकड़म पाले जाते हैं,
जाने कितने बच्चे भूखे,
सड़कों पर सो जाते हैं,
बुनियादी बातों से जब जब,
ध्यान हटाया जाता है,
समझो राजनीति से उसका,
बेहद गहरा नाता है,
कर्ज तले जब ईश्वर रोता,
खेत और खलिहानों में,
माटी मोल है कीमत मिलती,
साँठ गाँठ बेईमानो में,
जब बेटी की बीच बजरिया,
अस्मत लूटी जाती है,
मेरे मन मे एक शंका तब,
यूँ ही घर कर जाती है,
क्या कानूनों की बेदी पर,
कोई हवन नही करता,
आग लगा दो जब तेरे,
कानूनों से कोई नही डरता,
राजनीति ने देश धर्म पर,
ऐसी कालिख पोती है,
देश तोड़ती इनकी चालें
हरकत इनकी ओछी है,
वतन जान है वतन मान है,
हम सबका अभिमान है,
इससे हम हैं हमसे ये है,
रग रग में हिंदुस्तान हैं
मिलकर रहना होगा सबको,
तभी देश बन पाएगा,
बिना वतन के बोलो कैसे,
कौन यँहा रह पायेगा,

©®योगेश मणि योगी
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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

जम्मू की सुंजवा सैन्य छावनी पर हुए आतंकी हमले पर पर आक्रोश जताती मेरी रचना-

जम्मू की गलियों में फिर से सैनिक पर है घात हुआ,
सत्ता के अय्याशों को जबसे सत्ता से प्यार हुआ,
56 इंची सीने पर कोहराम मचाते भड़वे हैं,
तेरे गठबंधन पर तुझको चना चबाते कड़वे हैं,
भगवा भगवा करते करते झोली में हो बैठ गए,
जाने किस मद में डूबे हो या फिर अहम में ऐंठ गए,
रोज रोज सैनिक मरता है मरता रोज किसान है,
घर में घुस कर तांडव करते जीना यँहा हराम है,
सैनिक के जीवन को समझे खादी की औकात नहीं,
56 इंची सीना सुन ले उसमे अब वो बात नहीं,
जयचंदों से समझौता जब सत्ता खतिर हो जाए,
जनहित के मुद्दे भी जब घोर तिमिर में खो जाए,
मेरी कलम है प्रश्न पूँछती सत्ता के चटुकारों से,
पद लोलुप पैसे में डूबे घर के उन मक्कारों से,
ऐसे कैसे देश चलेगा रक्षक मारे जाते हैं,
नित नित हमलों से घर के सब बेटे मारे जाते हैं,
इतना तो एहसान करोगे एक आदेश थमाने का,
दुनिया जश्न मनाएगी फिर नक्शे से मिट जाने का,

©®योगेश योगी
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मंगलवार, 2 जनवरी 2018

पटवारी की होड़ मची है सबको बनने पटवारी,
ऐरे गैरे नत्थू खैरे चाहिये नौकरी सरकारी,
काका-काकी,चाचा-चाची सबने करो अवेदन है,
कहते घर को काम न कहियो हाथ जोड़ निवेदन है,
बहु-सास ने साथ में भर दओ कर्री चल रई तैयारी,
मोड़ा-मोदी सेटिंग जमा रये कैसे बनने पटवारी,
पटवारी की आड़ में चल रई घर वारन से गद्दारी,
जिओ फ़ोन में गप्पें चल रई ऐसे हो रई तैयारी,
शिवराज के राज में देखो पटवारी की धूम मची,
अंधी होके सारी जनता नाचे देखो गली गली,
डीजे में भी गाना सुनलो पटवारी को बज रओ है,
झूठ बोलकर दुल्हनिया से दूल्हा घोड़ी चढ़ रओ है,
रोजई पेलम-पेल मची है कोचिंग कोचिंग जावे की,
पटवारी आसान समझ रए गप्प से हलुवा खाबे की,
सालन से जो लगे हते बस ओई बाज़ी मार रहे,
बाकी टाइम पास करें है सुन लो सबरे हार रहे,
हमरी सुन लो तुक्का से तुम कोउ न बनहो पटवारी,
जो व्यापम की आय परीक्षा नोई कोनऊ दरबारी,
हमहुँ सब के साथ मे विनती करबी बनबे पटवारी,
काहे से की मक्कारी की नौकरी होती सरकारी,

©® कविता कॉपीरायट
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कवि लोधी योगेश मणि 'योगी'

ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...