बड़ा दुख होता है जब प्रधान जी कहते हैं कि किसान मेरी पहली प्राथमिकता हैं और वही आज देश मे दुर्भावना का शिकार हैं जिसको आपकी IT सेल मावोवादी, वामपंथी,देशद्रोही करार देकर आपकी बातों को सत्य साबित कर रही है की आपके पहले टारगेट पर हम ही हैं कांग्रेस मुक्त करते करते आज किसान मुक्त भारत करने पर तुले हो,
हम किसानों ने नासिक से मुम्बई तक का सफर अपने हक पाने के लिए किए ,वो हक जिन्हें भारत की आजादी से लेकर आज तक सिर्फ आस्वाशन के रूप में ही मिले हैं, आखिर क्यों तुम्हे दर्द नही, क्यों तुम्हारी जिह्वा से एक शब्द नही निकलता इन बेवस लाचार और देश की मुख्यधारा के नल-नीलों के लिए, क्या किसान का जन्म सिर्फ गरीबी लाचारी बेवसी में मरने के लिए बस हुआ है उसकी जिंदगी कोई ज़िन्दगी नहीं, सबको दुनिया जीतने की ललक उसे ये भी हक़ नही की वह अपनी बुनियादी समस्याओं से निजात पा सके, क्या यह अन्याय नही है? अगर धर्मों की बात करें तो कौन से धर्म में ये लिखा है कि दूसरों का पेट भरने वालों को यूँ तिल तिल मारा जाय,आखिर हमारी गलती क्या है? क्या हमने ये गलत किया कि तुम सबके बच्चे भूँखे न सोएं इसलिए हमने रात रात भर जागकर अनाज को पैदा किया तुम्हारी थाली तक पहुंचाया, और बदले में क्या मिला हमारी लागत से भी कम में हमारी फ़सलों का सौदा किया गया, तुम्हारे बच्चों का पेट तो भर गया लेकिन उस माटी मोल कीमत से हमारे बच्चे भूखे सोते रहे, हर बार इसी आस में कई शायद कुछ बेहतर होगा हमने अपना सब कुछ गिरवी लेकर कर्जा लिया कि शायद इस बार फसल अच्छी होगी तो सब ठीक होगा, ईश्वर से बचे तो तुमने लुटा नही तो तुम्हारी जमात में ईश्वर भी शामिल हो गया किसी ने कसर नही छोड़ी, बची कुची कसर उस दिन पूरी हो गई जब हम आतंकी,माओवादी, वामपंथी की परिभाषा से अलंकृत किया गया यह सम्मान पाकर हमारा सीना चौड़ा हो गया ,जानते हो क्यों?
क्योंकि तुम्हारे पास हमे कुचलने का ये अच्छा बहाना था दंगाइयों की टोली कहकर तुम हमको कुचल सकते हो? और हमारे अरमानों के साथ साथ हमारे हक और हमारी आवाज सब दफन हो जाएगी और सब यह कहकर पल्ला झाड़ लेंगे की ये अलंकृत लोग थे? आज सबकी अट्टालिकाएँ खड़ी हो गईं हम जिस के तस रहे, क्या जरूरत थी हमे बाहर निकलने की धूप में चलकर नासिक के तमाम गाँवो से मुम्बई तक आने की नंगे पांव हम अपने छाले दिखाना चाहते थे न ,न साहब ये गरीबी के छाले हैं चप्पल खरीद पाएं इतनी भी औकात नही बची है हमारी जानते हो क्यों तुम्हारी सुविधाओं में सब लूट गया हमारा ! लेकिन क्या करते साहब भूख सब कुछ करवा सकती हैं, में भी कैसा पागल हूँ भूख की उपमा 56 भोग से भरे हुए पेटों के सामने कर रहा हूँ, नही साहब नही मैं फ़ोटो खिंचवाने आया था चैनल में लाइव होने आया था घर मे बोल कर आया था मुझे देखना मैं लाइव आऊंगा? मुझे इतनी राजनीति नही आती मैं तो इतना जनता हूँ कि मेरी फसलों की इज़्ज़त मंडी में यूँ न नीलम हो उसके कुछ कपड़े बचे रहने दो लागत से ऊपर तो दे दो, मैं खेतों में मरता हुन मेरे बेटे फौज में और ये देशवासी चुप हैं जाने क्यों इन्हें लगता है कि अनाज नेता पैदा करते हैं, कुछ गलत कह दिया क्या? आगा नही कहा तो फिर क्यों तुम्हारे गुलाम हैं सब हमारे हक की बात क्यों नही करता कोई? क्या भारत देश हमारा नही क्या हम विदेशी हैं? देश बनाने में हमारा कोई योगदान नही है? सारा विकास ,सारी मेहनत सिर्फ तुम नेताओं ने ही की है?
अरे कँहा जा रहे हो मुँह छिपाकर कुछ तो बोल दो कुछ तो कह दो चलो गाली ही दे दो, अरे सुनो न चलो समस्या का हल में ही बताता हूँ सुन तो लो , गोली ही दे दो?
©®लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
योगेश योगी वाल से
हम किसानों ने नासिक से मुम्बई तक का सफर अपने हक पाने के लिए किए ,वो हक जिन्हें भारत की आजादी से लेकर आज तक सिर्फ आस्वाशन के रूप में ही मिले हैं, आखिर क्यों तुम्हे दर्द नही, क्यों तुम्हारी जिह्वा से एक शब्द नही निकलता इन बेवस लाचार और देश की मुख्यधारा के नल-नीलों के लिए, क्या किसान का जन्म सिर्फ गरीबी लाचारी बेवसी में मरने के लिए बस हुआ है उसकी जिंदगी कोई ज़िन्दगी नहीं, सबको दुनिया जीतने की ललक उसे ये भी हक़ नही की वह अपनी बुनियादी समस्याओं से निजात पा सके, क्या यह अन्याय नही है? अगर धर्मों की बात करें तो कौन से धर्म में ये लिखा है कि दूसरों का पेट भरने वालों को यूँ तिल तिल मारा जाय,आखिर हमारी गलती क्या है? क्या हमने ये गलत किया कि तुम सबके बच्चे भूँखे न सोएं इसलिए हमने रात रात भर जागकर अनाज को पैदा किया तुम्हारी थाली तक पहुंचाया, और बदले में क्या मिला हमारी लागत से भी कम में हमारी फ़सलों का सौदा किया गया, तुम्हारे बच्चों का पेट तो भर गया लेकिन उस माटी मोल कीमत से हमारे बच्चे भूखे सोते रहे, हर बार इसी आस में कई शायद कुछ बेहतर होगा हमने अपना सब कुछ गिरवी लेकर कर्जा लिया कि शायद इस बार फसल अच्छी होगी तो सब ठीक होगा, ईश्वर से बचे तो तुमने लुटा नही तो तुम्हारी जमात में ईश्वर भी शामिल हो गया किसी ने कसर नही छोड़ी, बची कुची कसर उस दिन पूरी हो गई जब हम आतंकी,माओवादी, वामपंथी की परिभाषा से अलंकृत किया गया यह सम्मान पाकर हमारा सीना चौड़ा हो गया ,जानते हो क्यों?
क्योंकि तुम्हारे पास हमे कुचलने का ये अच्छा बहाना था दंगाइयों की टोली कहकर तुम हमको कुचल सकते हो? और हमारे अरमानों के साथ साथ हमारे हक और हमारी आवाज सब दफन हो जाएगी और सब यह कहकर पल्ला झाड़ लेंगे की ये अलंकृत लोग थे? आज सबकी अट्टालिकाएँ खड़ी हो गईं हम जिस के तस रहे, क्या जरूरत थी हमे बाहर निकलने की धूप में चलकर नासिक के तमाम गाँवो से मुम्बई तक आने की नंगे पांव हम अपने छाले दिखाना चाहते थे न ,न साहब ये गरीबी के छाले हैं चप्पल खरीद पाएं इतनी भी औकात नही बची है हमारी जानते हो क्यों तुम्हारी सुविधाओं में सब लूट गया हमारा ! लेकिन क्या करते साहब भूख सब कुछ करवा सकती हैं, में भी कैसा पागल हूँ भूख की उपमा 56 भोग से भरे हुए पेटों के सामने कर रहा हूँ, नही साहब नही मैं फ़ोटो खिंचवाने आया था चैनल में लाइव होने आया था घर मे बोल कर आया था मुझे देखना मैं लाइव आऊंगा? मुझे इतनी राजनीति नही आती मैं तो इतना जनता हूँ कि मेरी फसलों की इज़्ज़त मंडी में यूँ न नीलम हो उसके कुछ कपड़े बचे रहने दो लागत से ऊपर तो दे दो, मैं खेतों में मरता हुन मेरे बेटे फौज में और ये देशवासी चुप हैं जाने क्यों इन्हें लगता है कि अनाज नेता पैदा करते हैं, कुछ गलत कह दिया क्या? आगा नही कहा तो फिर क्यों तुम्हारे गुलाम हैं सब हमारे हक की बात क्यों नही करता कोई? क्या भारत देश हमारा नही क्या हम विदेशी हैं? देश बनाने में हमारा कोई योगदान नही है? सारा विकास ,सारी मेहनत सिर्फ तुम नेताओं ने ही की है?
अरे कँहा जा रहे हो मुँह छिपाकर कुछ तो बोल दो कुछ तो कह दो चलो गाली ही दे दो, अरे सुनो न चलो समस्या का हल में ही बताता हूँ सुन तो लो , गोली ही दे दो?
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योगेश योगी वाल से
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