इसमें भी कांग्रेश का हाथ होगा, नही है? फिर वामपंथी, नही है?फिर पक्का माओवादी, नही है?तो फिर देशद्रोही,नही हैं? अरे तो फिर पक्का मजदूरों का काम है,क्या कहा नही है? पाकिस्तान का होगा,नही है? तो फिर शत प्रतिशत किसानों का काम होगा, सही कहा ?
उल जलूल बक रहा हूँ, कैसा कह रहे हैं साहब में तो आपकी सहायता कर रहा हूँ आरोप किसी के सर तो जाना ही है, इसलिए प्रेस कांफ्रेश के लिए पुख्ता नाम बता रहा था?
नाराज क्यों होते हैं? नाराज हो तो सुनो..
आरोप प्रत्यारोप का दौर खत्म करो राजनीति में थोड़ा सा ईमानदारी की शूरुआत करो, काम करो काम, तरक्कियाँ काम से मिलती हैं मंचों से नहीं!
और सुनो देश हित चिल्लाने से नही होता जनमानस का ख्याल रखना कर्तव्य समझोगे ,तभी देश एक होगा और उन्नतशील होगा, वसुधैव कुटुम्बकम कह देने बस से काम नही चलेगा?
विदेशों से उन्नति के नाम पर सभी सरकारें इतना कर्जा लेती हैं और उसका होता क्या है,सब अफसर नेता और ठेकेदारों के पेट मे जाता है ,यकीन मानिए अगर प्रोजेक्ट की लागत का 50%भी खर्च कर पाने का साहस सरकारों ने किया होता तो कभी ये दिन नही देखने पड़ते ? जो नीचे से ऊपर तक रिश्वत के परसेंट मिलजुल कर बाँट रखे हैं न, वह किसी से नही छुपे, रिश्वत को भी यह कह कर प्रोजेक्ट में लिया जाता है कि 3% तो ईमानदारी है, जो हर हर विभाग के मंत्री के पास अपने आप पहुंच जाता है,?
कभी सोचा है किसी ने की 5 साल तक मंत्री ,विधायक,सांसद, ठेकेदार ,या फिर अफसर अचानक से हजारों करोड़ के मालिक कैसे बन जाते हैं? और कैसे??
क्योंकि हकीकत ये है कि हम अपने अधिकारों पर बात करना नही जानते ,सत्ताओं से प्रश्न पूंछना नही जानते? जानते हैं तो बस चाटुकारिता? देश केवल गाय-गाय,हिन्दू-हिन्दू,मुसलमान-मुसलमान, करने से नही सुधरेगा अगर संगठनों के नाम पर हम देशभक्ति का दिखावा करते हैं तो फिर अत्याचार अनाचार पर संगठनो का मौन रवैया क्यों नजर आता हैं यह भी गंभीर प्रश्न है?
कहने का तात्पर्य ये की देश को एक रूपता में पिरोने है तो सत्ताओं से सवाल जवाब करना ही होगा और सबको समानता के हक देने ही होंगे?
©®योगेश योगी
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