"कहानी" हरिया किसान की।
दुखी मन से हरिया अपनी लाठी, बैलों की रस्सी लेकर घर से खेत जाने की कहकर घर से निकला, वह शायद दुखी इसलिए भी था कि उसके दोनों बच्चे नए कपड़े लाने की जिद कर रहे थे,खिलौने तो उसने माटी के बनाकर जैसे तैसे उनको मनाकर दे दिए थे।
बच्चों की जिद सुनकर हरिया की बीबी जो कोने में बैठी थी गंभीरता को भांपते हुए बोली-" बिटवा जिद नाही करा ,तोहार बापू के पास अबै पैसा नाही आय जब होई ता बिना कहे लय अइ"।
उसकी इस बात में शायद ये दर्द भी छुपा था कि खेती में इतनी बचत कँहा होती है कि व्यवस्थाओं के नाम पर खर्च कर लिए जाएं, मन ही मन वह सोच रही थी कि 10 बरस हो गए शादी हुए, हरिया ने उसे महज 2 बार ही साड़ी लेकर दी थी वो भी इतबारी बाजार के ठेले में मिलने वाली क्योंकि उसका बजट बस इतना ही स्वीकृति देता था?
वह अच्छी तरह जानती थी इसलिए बच्चों को सांत्वना दे रही थी जिसकी वह खुद 10 बरसों से कृपा पात्र थी!
मगर बच्चे थे कि जिद पर अड़े थे,बचपन को कँहा पता होता है कि गरीबी क्या होती है फसल क्या होती है और नुकसान क्या होता है?
बचपन तो स्वछन्द होता है जिसकी कोई सीमाएं नही होती वह बिना रोके टोक हर चीज पाने को लालायित रहता है।
माँ ने समझाया उसका समझाना जब व्यर्थ साबित होता नजर आया तो हरिया ने चहेरे पर झूठी मुस्कान के साथ बच्चों की माँग को बदलने का प्रयास करते हुए कहा-"जल्दी जल्दी बतावा बेर(एक फल जो शबरी ने राम को खिलाए थे) अउर जंगल जलेबी केही केही खाने है"
बचपन तो पचपन होता है सारी आकांछाएँ भूल कर अपने मुँह में पानी भरते हुए खुसी से उछल पड़े-"बापू वई बेलहा हार से जौन ल्याये तै,उ ता गजबई गुरतुर रहीं हैं" हरिया ने मंद मुस्कान बिखेरी उसे लगा कि चलो कम से कम बच्चों ने जिद तो छोड़ी।
हरिया की बीबी ने हरिया की तरफ देखकर मानो मन ही मन यह कह दिया हो कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे ,मेरी साड़ी यही कह कर हर बार वादों में ले आते हो कि अबकी फसल अगर अच्छी हुई तो इस बार की और पिछली सारी की सारी साड़ी एक साथ ला दूँगा।
हरिया चैन की साँस लेता इससे पहले ही सोसायटी वाले ग्राम सेवक घर पर आए, भौहें तानते हुए बोले -"हरिया खाद बीज का पैसा कब दे रहे हो ? ये लो नोटिस अमुक तारीख को अगर पैसा नही दोगे तो डिफाल्टर हो जाओगे और ऐसा चलता रहा तो जमीन कुर्क कर लेगी सरकार कहे देता हूँ"।
हरिया ने पानी का गिलास देते हुए कहा-"साहब ई बार सब तो सूख गा है ,खाबे के लाले पड़े हैं कर्जा कइसन देब कुछ समझ मा नहीं आय रहा है,लेकिन हम पाई पाई चुका देब अपना विश्वास रखी"
विश्वास रखी ,तेरे इस विश्वास से सोसायटी और सरकार नही चल रही,विश्वास का तू ही अचार डाल लें,हमे तो वसूली करनी है पैसा तो देना ही पड़ेगें यह कहते हुए ग्राम सेवक दूसरे हरिया की तलाश में निकल गया।
हरिया के माथे पर चिंता की लकीरें एक बार फिर उभरीं, वह सोच रहा था कि वह करे तो क्या करे, बीबी बच्चों को जीने योग्य सुविधाएं ,शिक्षा तक दे नही पा रहा ऊपर से एक नई मुसीबत।
गाँव के व्यौहर से 10 रुपये सैकड़ा प्रति महीना सूद से 10000 ले रखे हैं वो अलग.... तो क्या उधार न लेता तो बिटिया को मर जाने देता अभी तो फूल सी थी ,डॉक्टर सहाब कहते थे बड़े अस्पताल में दिखवाओ बहुत गहरा पीलिया है बचना मुश्किल है।
यह सोचता हुआ वह बच्ची की ओर देखता है आँखों का पानी उसकी पुतलियों को गीला तो करता है लेकिन बाहर नही आ पाता, फिर उसे याद आता है कि 5 साल हो गए लेकिन अब तक मूल नही लौट पाया जाने कितने 10000 उसने सूद में चुका दिए।
हरिया की बीबी ने थाली सामने रखते हुए कहा-"हमार मानो चिन्ता न करो ,राम सब ठीक करिहैं, खाना खाय ल्या ,आज-काल से गेंहूँ केर कटाई भी तो करें खा पड़ी"
हरिया ने एक रोटी खाते हुए कहा-"हर जनम मा तोहार जैसी मेहरिया मिले बस यहै बिनती राम से करी थे"
शाम की लालिमा आकाश में छाई थी ,कोई बड़ी तेजी से हरिया के घर के दरवाजे पीट रहा था-"भौजी दरवाजा ख्वाला.....जल्दी खोला" उसकी आवाज में एक अलग ही कर्कशता थी ।
दरवाजे खोलते ही हरिया की बीबी बोली-"का होइगा पुत्तन भैया,कहे चिल्लाय रहै"
पुत्तन की मानो घिघ्घी बंध गई..."ब्वाला कि अइसय ठाढ़ राहिहा" हरिया की बीबी ने कहा।
भौजी हरिया......हाँ का होइगा!
बड़ी लाईन केर तार टूट गए ता सबरे खेत केर फसल जल गय!
लोग बताउत रहे हरिया बेर के पेड़ मा फाँसी लगा लिहिन हीं?
सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश मणि योगी'किसान'
दुखी मन से हरिया अपनी लाठी, बैलों की रस्सी लेकर घर से खेत जाने की कहकर घर से निकला, वह शायद दुखी इसलिए भी था कि उसके दोनों बच्चे नए कपड़े लाने की जिद कर रहे थे,खिलौने तो उसने माटी के बनाकर जैसे तैसे उनको मनाकर दे दिए थे।
बच्चों की जिद सुनकर हरिया की बीबी जो कोने में बैठी थी गंभीरता को भांपते हुए बोली-" बिटवा जिद नाही करा ,तोहार बापू के पास अबै पैसा नाही आय जब होई ता बिना कहे लय अइ"।
उसकी इस बात में शायद ये दर्द भी छुपा था कि खेती में इतनी बचत कँहा होती है कि व्यवस्थाओं के नाम पर खर्च कर लिए जाएं, मन ही मन वह सोच रही थी कि 10 बरस हो गए शादी हुए, हरिया ने उसे महज 2 बार ही साड़ी लेकर दी थी वो भी इतबारी बाजार के ठेले में मिलने वाली क्योंकि उसका बजट बस इतना ही स्वीकृति देता था?
वह अच्छी तरह जानती थी इसलिए बच्चों को सांत्वना दे रही थी जिसकी वह खुद 10 बरसों से कृपा पात्र थी!
मगर बच्चे थे कि जिद पर अड़े थे,बचपन को कँहा पता होता है कि गरीबी क्या होती है फसल क्या होती है और नुकसान क्या होता है?
बचपन तो स्वछन्द होता है जिसकी कोई सीमाएं नही होती वह बिना रोके टोक हर चीज पाने को लालायित रहता है।
माँ ने समझाया उसका समझाना जब व्यर्थ साबित होता नजर आया तो हरिया ने चहेरे पर झूठी मुस्कान के साथ बच्चों की माँग को बदलने का प्रयास करते हुए कहा-"जल्दी जल्दी बतावा बेर(एक फल जो शबरी ने राम को खिलाए थे) अउर जंगल जलेबी केही केही खाने है"
बचपन तो पचपन होता है सारी आकांछाएँ भूल कर अपने मुँह में पानी भरते हुए खुसी से उछल पड़े-"बापू वई बेलहा हार से जौन ल्याये तै,उ ता गजबई गुरतुर रहीं हैं" हरिया ने मंद मुस्कान बिखेरी उसे लगा कि चलो कम से कम बच्चों ने जिद तो छोड़ी।
हरिया की बीबी ने हरिया की तरफ देखकर मानो मन ही मन यह कह दिया हो कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे ,मेरी साड़ी यही कह कर हर बार वादों में ले आते हो कि अबकी फसल अगर अच्छी हुई तो इस बार की और पिछली सारी की सारी साड़ी एक साथ ला दूँगा।
हरिया चैन की साँस लेता इससे पहले ही सोसायटी वाले ग्राम सेवक घर पर आए, भौहें तानते हुए बोले -"हरिया खाद बीज का पैसा कब दे रहे हो ? ये लो नोटिस अमुक तारीख को अगर पैसा नही दोगे तो डिफाल्टर हो जाओगे और ऐसा चलता रहा तो जमीन कुर्क कर लेगी सरकार कहे देता हूँ"।
हरिया ने पानी का गिलास देते हुए कहा-"साहब ई बार सब तो सूख गा है ,खाबे के लाले पड़े हैं कर्जा कइसन देब कुछ समझ मा नहीं आय रहा है,लेकिन हम पाई पाई चुका देब अपना विश्वास रखी"
विश्वास रखी ,तेरे इस विश्वास से सोसायटी और सरकार नही चल रही,विश्वास का तू ही अचार डाल लें,हमे तो वसूली करनी है पैसा तो देना ही पड़ेगें यह कहते हुए ग्राम सेवक दूसरे हरिया की तलाश में निकल गया।
हरिया के माथे पर चिंता की लकीरें एक बार फिर उभरीं, वह सोच रहा था कि वह करे तो क्या करे, बीबी बच्चों को जीने योग्य सुविधाएं ,शिक्षा तक दे नही पा रहा ऊपर से एक नई मुसीबत।
गाँव के व्यौहर से 10 रुपये सैकड़ा प्रति महीना सूद से 10000 ले रखे हैं वो अलग.... तो क्या उधार न लेता तो बिटिया को मर जाने देता अभी तो फूल सी थी ,डॉक्टर सहाब कहते थे बड़े अस्पताल में दिखवाओ बहुत गहरा पीलिया है बचना मुश्किल है।
यह सोचता हुआ वह बच्ची की ओर देखता है आँखों का पानी उसकी पुतलियों को गीला तो करता है लेकिन बाहर नही आ पाता, फिर उसे याद आता है कि 5 साल हो गए लेकिन अब तक मूल नही लौट पाया जाने कितने 10000 उसने सूद में चुका दिए।
हरिया की बीबी ने थाली सामने रखते हुए कहा-"हमार मानो चिन्ता न करो ,राम सब ठीक करिहैं, खाना खाय ल्या ,आज-काल से गेंहूँ केर कटाई भी तो करें खा पड़ी"
हरिया ने एक रोटी खाते हुए कहा-"हर जनम मा तोहार जैसी मेहरिया मिले बस यहै बिनती राम से करी थे"
शाम की लालिमा आकाश में छाई थी ,कोई बड़ी तेजी से हरिया के घर के दरवाजे पीट रहा था-"भौजी दरवाजा ख्वाला.....जल्दी खोला" उसकी आवाज में एक अलग ही कर्कशता थी ।
दरवाजे खोलते ही हरिया की बीबी बोली-"का होइगा पुत्तन भैया,कहे चिल्लाय रहै"
पुत्तन की मानो घिघ्घी बंध गई..."ब्वाला कि अइसय ठाढ़ राहिहा" हरिया की बीबी ने कहा।
भौजी हरिया......हाँ का होइगा!
बड़ी लाईन केर तार टूट गए ता सबरे खेत केर फसल जल गय!
लोग बताउत रहे हरिया बेर के पेड़ मा फाँसी लगा लिहिन हीं?
सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश मणि योगी'किसान'
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