शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

हो सकता है आपको यह देखकर आश्चर्य लगे ,कुछ लोगों को यह राजनीति से प्रेरित भी लग सकता है,और कुछ विशेष लोगों को यह नौटंकी लग सकती है,अगर अतिविशेष लोगों की हम बात करें तो उन्हें यह माओवादी नक्सली या वामपंथी भी लग सकते हैं,खैर सोचने की क्षमता आदमी के लालन पालन पर निर्भर करती है,
आखिर क्या कारण है कि किसान की कोई सुनने वाला नहीं हैं ये किसान सिवनी के ज्ञान सिंह और उसका साथी जो आज दिल्ली तक ये बताने पहुँच गए कि उनका कसूर क्या है?
कसूर?
सच में कसूर क्या है ?
क्या किसानों का यह कसूर है कि वह दिन रात मेहनत करके अनाज उत्पादित करता है?
या फिर कसूर यह है कि वह देश के लोगो के मानसिक पटल से निष्कासित व्यक्ति है जिसकी बात कोई नहीं करना चाहता?
या उसका कसूर यह है कि उसे हाथों में गैती फावड़ा,कुल्हाड़ी,दराती थामना चलाना आता तो है लेकिन उसे लोकतंत्र पर अटूट विश्वाश है?
या फिर उसका कसूर यह है कि वह हर बार खेती में घाटा खाने पर भी उसे माता की भाँति सीने से लगाये घूम रहा है?
या उसका कसूर यह है कि वह उद्योगपतियों के इस देश मे सिर्फ अनाज उगाने वाली फैक्ट्री है?
या उसका कसूर यह है कि वह थका हारा लाचार वेवश होने के वावजूद सिर्फ हाथ जोड़े खड़ा है?
भारत देश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है ,ऐसा हम बचपन से सुनते पढते आये हैं लेकिन यँहा की अर्थव्यवस्था में कब्जा हमेशा से पूंजीपतियों उद्योपातियों और राजनेताओं का रहा है, सही मायने में अगर हम यह कहें कि भारत आज़ाद है तो यह एक छलावा होगा ,धोखा होगा एक द्वैज क्षद्म होगा क्योंकि चंद लोगों का विकास और असंख्य का विनास यह पूंजीवादी व्यवस्था की देन है।
आज भी देश का संविधान यह कहता है कि सबका और सबके लिए लेकिन बात उल्टी प्रतीत जान पड़ती है सबका देश कुछ विशेष लोगों के लिए।
आज किसानों की जरुरतों और उनकी हालत से संबंधित बातों  को न कोई कारण चाहता है न सुनना चाहता है।
यदि हम देश के विकास की बात करें तो किसानों का खून पसीना उसके लिए शामिल है लेकिन उसके हक की बात उस व्यवस्था और उस विकास में दूर दूर तक शामिल नहीं है।
यह ठीक उसी प्रकार से है जिस तरह से अंग्रेजों के जुल्मों से तंग आकर लोगों ने आज़ादी का बिगुल फूँक दिया। इसमें कोई दोराय नहीं की आज़ादी अभी भी अधूरी ही है, बस देर है तो बिगुल की । इतिहास साक्षी है कि क्रांति का जन्म अन्याय से ही होता है,बस देर है तो क्रांति की स्वर्णिम इबारत को लिखने वाले योद्धाओं की जो किसानों को अपने मतलब के लिए नहीं उनके हकों और अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार करें तभी इस देश का विकास और उन्नति संभव है।

योगेश योगी किसान
©®लेख सर्वाधिकार सुरक्षित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...