अगर आपको लगा हो की इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटनाओं पर मेरी कलम ने आपके #क्रोध और #प्रश्नों को उठाया है तो इतना #शेयर करें कि अपराधियों के पितामहों तक बात पहुँचे।
इंसानियत का हश्र क्यों है, क्यों बुरे हालात हैं?
शासकों से पूँछता हूँ, कुछ मेरे सवालात हैं?
बैठे हो क्यों कुर्सियों पर, मौन यूँ धारण किये,
घूमते क्यों कुकुरमुत्ते,जिनकी जगह हवालात है,
बेटियों की अस्मिता पर, बादल घनेरे छा गए,
जिनको जिम्मा सौंपा,वो भी नोचने को आ गए,
डर नहीं न खौफ़ मन में, बढ़ रहे अपराध हैं,
क्यों अचानक देश मे, पैदा हुए ये साँप हैं,
दूध आँचल से लगाकर, पी रही अनजान थी,
देश दुनिया से अभी वो, लाड़ली नादान थी,
क्यों नहीं है हक उसे, वह क्यों नहीं महफूज है,
इंसा हो या जानवर हो, क्यों घृणित ये रूप है,
हवश के ऐसे दरिंदों को, खुला क्यों छोड़ते,
राजनीतीक मुद्दों से, उनको भला क्यों जोड़ते,
ऐसे वहसी की भला क्यों धर्म से पहचान हो,
इतने टुकड़े कर भी दो न बोटियों में जान हो,
क्यों नहीं कानून का भय, देश की अवाम को,
आँखें क्यों अन्धी हुईं,न देखते इंसान को,
कुर्सियाँ सरकारों की अपराधियों से भर रहीं,
हुक्मरां कानून में संसोधने न कर रही,
राजनीतिक यरियाँ अपराधियों संग जारी हैं,
इसलिए अपराध होते देश पर जो भारी हैं,
मोमबत्ती की जगह तलवारों से तुम लैश हो,
गर्दनें कर दो अलग कठघरे में न बहस हो,
अब वंही हों फैसले जैसे जँहा अपराध हो,
खून से अपराधियों के इक नया इंकलाब हो,
#मंदसौर_शरद
सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश मणि योगी 'किसान'
मूलरूप में ही शेयर करें
ब्लॉग-yogeshmanisinghlodhi.blogspot.in
इंसानियत का हश्र क्यों है, क्यों बुरे हालात हैं?
शासकों से पूँछता हूँ, कुछ मेरे सवालात हैं?
बैठे हो क्यों कुर्सियों पर, मौन यूँ धारण किये,
घूमते क्यों कुकुरमुत्ते,जिनकी जगह हवालात है,
बेटियों की अस्मिता पर, बादल घनेरे छा गए,
जिनको जिम्मा सौंपा,वो भी नोचने को आ गए,
डर नहीं न खौफ़ मन में, बढ़ रहे अपराध हैं,
क्यों अचानक देश मे, पैदा हुए ये साँप हैं,
दूध आँचल से लगाकर, पी रही अनजान थी,
देश दुनिया से अभी वो, लाड़ली नादान थी,
क्यों नहीं है हक उसे, वह क्यों नहीं महफूज है,
इंसा हो या जानवर हो, क्यों घृणित ये रूप है,
हवश के ऐसे दरिंदों को, खुला क्यों छोड़ते,
राजनीतीक मुद्दों से, उनको भला क्यों जोड़ते,
ऐसे वहसी की भला क्यों धर्म से पहचान हो,
इतने टुकड़े कर भी दो न बोटियों में जान हो,
क्यों नहीं कानून का भय, देश की अवाम को,
आँखें क्यों अन्धी हुईं,न देखते इंसान को,
कुर्सियाँ सरकारों की अपराधियों से भर रहीं,
हुक्मरां कानून में संसोधने न कर रही,
राजनीतिक यरियाँ अपराधियों संग जारी हैं,
इसलिए अपराध होते देश पर जो भारी हैं,
मोमबत्ती की जगह तलवारों से तुम लैश हो,
गर्दनें कर दो अलग कठघरे में न बहस हो,
अब वंही हों फैसले जैसे जँहा अपराध हो,
खून से अपराधियों के इक नया इंकलाब हो,
#मंदसौर_शरद
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