गीत
मैं किसान का बेटा हूँ
हाँ किसान का बेटा हूँ मैं दर्द उसी के गाता हूँ।
उसकी हालत देख कहूँ क्या आँसू से भर जाता हूँ।
तुमको बेशक महल मुबारक राजनीति की गद्दी भी।
गोली देते हक माँगों तो मंच से गाली भद्दी सी।।
मेरा तुम हो दाना खाते मैं तेरा क्या खाता हूँ,
मैं किसान का बेटा.....
क्या सोचा है कभी की उसका जीवन यापन कैसा है।
उसकी मेहनत उसकी हालत जीवन से समझौता है।
मेहनत करता जब जगकर रात दिन परपाटी में।
उसके आँसू का कतरा फिर मिलता तुमको थाली में।
जरा सोच लो क्यों इतराते खुशियाँ मैं ही लाता हूँ...
मैं किसान का बेटा....
मत भूलो की धरा पुत्र का तुमको जीवन देता है।
बदहाली सी खुशहाली में वह जीवन जी लेता है।
मैं किसान के दर्द समेटे उसका चारण करता हूँ।
उसकी मेहनत को शब्दों से में उच्चारण करता हूँ।
मेरे ही दुश्मन बन बैठे तुमको क्यों न भाता हूँ..
मैं किसान का....
एक दिन आकर उनके जैसी मेहनत गर तुम कर लोगे।
बिस्तर से उठ पाओगे सब देवों को भज लोगे।
तुम हो नोटों के सौदागर नोटें खाकर रहते हो।
इसलिए मंचों से हमको बुरा भला तुम कहते हो।
गाली मुझको ही मिलती हैं इतना क्यों चुभ जाता हूँ..
मैं किसान का....
सुन ले भारत कान खोलकर भूमिपुत्र यदि रोयेगा।
कितनी चाहे केओ तरक्की अपने अतीत को खोएगा।
भारत माँ का बेटा यदि बलि की बेदी चढ़ जाएगा।
तुमको भोजन देने बोलो कौन पितामह आएगा।
हार मिले हरदम फिर भी मैं अगली फसल लगता हूँ।
मैं किसान....
सर्वाधिकार सुरक्षित
©® योगेश योगी किसान
मैं किसान का बेटा हूँ
हाँ किसान का बेटा हूँ मैं दर्द उसी के गाता हूँ।
उसकी हालत देख कहूँ क्या आँसू से भर जाता हूँ।
तुमको बेशक महल मुबारक राजनीति की गद्दी भी।
गोली देते हक माँगों तो मंच से गाली भद्दी सी।।
मेरा तुम हो दाना खाते मैं तेरा क्या खाता हूँ,
मैं किसान का बेटा.....
क्या सोचा है कभी की उसका जीवन यापन कैसा है।
उसकी मेहनत उसकी हालत जीवन से समझौता है।
मेहनत करता जब जगकर रात दिन परपाटी में।
उसके आँसू का कतरा फिर मिलता तुमको थाली में।
जरा सोच लो क्यों इतराते खुशियाँ मैं ही लाता हूँ...
मैं किसान का बेटा....
मत भूलो की धरा पुत्र का तुमको जीवन देता है।
बदहाली सी खुशहाली में वह जीवन जी लेता है।
मैं किसान के दर्द समेटे उसका चारण करता हूँ।
उसकी मेहनत को शब्दों से में उच्चारण करता हूँ।
मेरे ही दुश्मन बन बैठे तुमको क्यों न भाता हूँ..
मैं किसान का....
एक दिन आकर उनके जैसी मेहनत गर तुम कर लोगे।
बिस्तर से उठ पाओगे सब देवों को भज लोगे।
तुम हो नोटों के सौदागर नोटें खाकर रहते हो।
इसलिए मंचों से हमको बुरा भला तुम कहते हो।
गाली मुझको ही मिलती हैं इतना क्यों चुभ जाता हूँ..
मैं किसान का....
सुन ले भारत कान खोलकर भूमिपुत्र यदि रोयेगा।
कितनी चाहे केओ तरक्की अपने अतीत को खोएगा।
भारत माँ का बेटा यदि बलि की बेदी चढ़ जाएगा।
तुमको भोजन देने बोलो कौन पितामह आएगा।
हार मिले हरदम फिर भी मैं अगली फसल लगता हूँ।
मैं किसान....
सर्वाधिकार सुरक्षित
©® योगेश योगी किसान
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