मैं कोई कविता सुनाना चाहता हूं
भावना को गुनगुनाना चाहता हूँ
शारदे के वंसजों के बीच आकर
खुद को मैं भी आजमाना चाहता हूँ
छंद बिखरे शब्द बिखरे हों भले ही,
बात दिल की मैं बताना चाहता हूँ,
भावना को...
आईने मैंने बहुत देखे बिखरते,
टूटकर मैं अब निखरना चाहता हूँ,
चन्द आखर हों भले ही लाइनों में,
भाव से दिल में उतरना चाहता हूँ,
भावना को....
कलम का छोटा सिपाही हूँ बहुत ही,
उसकी इज़्ज़त मैं बचाना चाहता हूँ,
मंच वैभव की नहीं है भूख मुझको,
मैं दिलों में आसरा एक चाहता हूं,
भावना को....
मानता हूँ साधना आसां नही ये,
पर उसी में डूब जाना चाहता हूँ,
फक्र है मुझको भले ही चन्द सुनते,
बस उन्हीं को मैं सुनाना चाहता हूँ,
भावना को.....
©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित
भावना को गुनगुनाना चाहता हूँ
शारदे के वंसजों के बीच आकर
खुद को मैं भी आजमाना चाहता हूँ
छंद बिखरे शब्द बिखरे हों भले ही,
बात दिल की मैं बताना चाहता हूँ,
भावना को...
आईने मैंने बहुत देखे बिखरते,
टूटकर मैं अब निखरना चाहता हूँ,
चन्द आखर हों भले ही लाइनों में,
भाव से दिल में उतरना चाहता हूँ,
भावना को....
कलम का छोटा सिपाही हूँ बहुत ही,
उसकी इज़्ज़त मैं बचाना चाहता हूँ,
मंच वैभव की नहीं है भूख मुझको,
मैं दिलों में आसरा एक चाहता हूं,
भावना को....
मानता हूँ साधना आसां नही ये,
पर उसी में डूब जाना चाहता हूँ,
फक्र है मुझको भले ही चन्द सुनते,
बस उन्हीं को मैं सुनाना चाहता हूँ,
भावना को.....
©®योगेश योगी किसान
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