शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

गीत- बहुत हो गई विनय हमारी

गीत-बहुत हो गईं विनय हमारी...

कान खोल कर सुन ले दिल्ली अब आवाज उठायेंगे
बहुत हो गई विनय हमारी,अब हथियार उठायेंगे,

रातों दिन की मेहनत का कुछ भी परिणाम नहीं मिलता
खून पसीने से उपजी फसलों का दाम नहीं मिलता,
हद से ज्यादा जुल्म तुम्हारा और नहीं सह पाएंगें,
बहुत जो गई विनय...

सवा अरब की भूख हरें हम खुद भूखे रह जाते हैं,
कर्जे में जीवन डूबा है जीते जी मार जाते हैं,
रोज-रोज मरने से अच्छा एक दिन ही मर जायेंगे,
बहुत हो गई...

नहीं माँगते यश, वैभव न सुख, सुविधाएँ हम चाहें,
फसल हमारी इज्जत है बस उसकी कीमत हम चाहें,
न दे पाए अब तक तुम, अब हम खुद तय कर जाएंगे,
बहुत हो गई विनय...

भूखे बच्चे बद से बदतर हालात न देखी जाती,
 फाँसी पर लटके किसान क्यों तुमको दया नहीं आती,
कसम खा रहे इन मौतों की अब चुप न रह पायेंगे,
बहुत हो गई विनय...

अभी वक्त है ठेकेदारों अंतिम ये पैगाम सुनो,
ये 'किसान' का संदेशा है बहुत बुरा अंजाम सुनो,
तेरे लहू से सींच धरा पर अगली फसल लगाएंगे,
बहुत हो गई विनय हमारी...


सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान

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