गुरुवार, 9 जुलाई 2020

गीत- शब्द नहीं कुछ कहने को

गीत
शब्द नहीं हैं कुछ कहने को

गीत

शब्द नहीं है कुछ कहने को

शब्द नहीं है कुछ कहने को उसकी पीड़ा भारी है।
कर्जे में है डूब चुका बस फाँसी की तैयारी है।।

देश के लोगों तुम भी सोचो उसके दाने खाते हो।
रात-रात भर वो जगता है तुम कैसे सो जाते हो।
उसके हक पर डाका क्यों है सत्ता क्यों हत्यारी है।
 शब्द नहीं है....

कँहा सोचता इतना वह है जितना तुम हो सोच रहे।
उसकी मेहनत की इज्जत की बोटी-बोटी नोंच रहे।
धरती से क्या भूमिपुत्र के गारत की तैयारी है।
शब्द नहीं हैं....

जरा सोच कर देखो तुम अन्न नहीं उपजायेगा।
चारों ओर चीत्कार मचेगी फिर भारत क्या खायेगा।
सबकी उन्नति दिखती है बस उसकी विपदा भारी है।
शब्द नहीं हैं....

ओला-पाला, धूप-छाँव, बारिश से वो लड़ लेता है।
घुटनो तक कीचड़ में रहकर फिर भी खुश हो लेता है।
फसलों के घटते दामो से उसकी हिम्मत हारी है।
शब्द नहीं हैं...

नहीं करोगे कभी तरक्की चाहे कितने जतन करो।
जो तुमको भोजन देता है उसकी पहले पीर हरो।
व्यापारी की चाँदी है, क्यों उसकी गर्दन पर आरी है।
शब्द नहीं हैं....

कहता 'किसान' हल को छोड़ा तो अन्न कौन उपजायेगा।
चंहुँदिश जँहा नजर जाएगी सब बंजर हो जाएगा।
उसके छालों को देखो जिससे रौनक ये जारी है।
शब्द नहीं हैं....

सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान

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