गुरुवार, 9 जुलाई 2020

गीत - इस शहर में क्या है ऐसा

गीत- गाँव से जिंदा हो भाई

महुआ की खुशबू जँहा पर,
आम की है बौर आई,
इस शहर में क्या है ऐसा,
गाँव से जिंदा हो भाई,

नफरतों का घर तुम्हारा,
चाहतें बेघर जँहा पर,
शर्म से डूबे हैं रिश्ते,
वृद्ध आश्रम है वहाँ पर,
हमने रिश्तों को बाँधा,
प्रीत सदियों से निभाई,
इस शहर में क्या.....

लहलहाते खेत देखो,
पेट जो भरते तुम्हारे,
सींच कर अपनव लहू से,
शहर हमने हैं सँवारें,
तुमने दुत्कारा है हमको,
नफरतें हमसे निभाईं,
इस शहर में....


बिष न बोते खेत मे हम,
रिश्तों में रस घोलते हैं,
आँसू बेशक बह रहे हों,
फिर दिल से बोलते हैं,
नफरतें तुमने हैं बोईं,
प्रीत हमने है उगाई,
इस शहर में...

गाय गोबर हमको प्यारे,
खेत ईश्वर हैं हमारे,
चूमते हैं नित्य ही हम,
मिट्टी के ढ़ेलों को सारे,
धरती को माता कहा ये,
चलन हमने है चलाई,
इस शहर में ....

जहर बनता है शहर में,
मर रहे हैं गाँव वाले,
नदियों को दूषित हो करते,
छोड़ कर घर घर के नाले,
हमने पेड़ों को लगाया,
फैक्ट्रियाँ तुमने लगाईं,
इसज शहर में....

जिसको तुम कहते तरक्की,
वह प्रकृति से एक धोखा,
नित नए आयाम छूते,
इन सभी से क्या है होगा,
काटे हैं जंगल तुम्हीं ने,
खोदी तुमने गहरी खाई,
इस शहर में....


सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान

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