क्या इस फैशले को उच्च कोटि का कहा जा सकता है,या फिर यह फैशला एक सोची समझी साजिश का नतीजा है,यह आने वाला वक्त तय करेगा,यह उन प्रतिभाओं के लिए एक झटके से कम नही जो 15-20 साल तक तैयारी करते हैं,
अगर निजी कंपनियों के अधिकारियों को इस बेस पर नियुक्ति दी जा सकती है कि अमुक व्यक्ति ने 15 साल का अनुभव प्राप्त किया है,तो यह एक हास्यास्पद बात है,क्योंकि अगर 15 साल या उससे अधिक के कार्यानुभव वाले व्यक्ति पर सरकार को दया आ रही तो ,इस देश मे ऐसे तमाम लोग हैं जिनका हर क्षेत्र में कार्यानुभव 15 साल या 50 साल है,
मसलन
1.कृषि करने वाले को कृषि विभाग के उच्च पद ,
2.सफाई कर्मचारियों को सफाई विभाग के उच्चधिकारियों के पद,
3.खेलकूद में अनुभव रखने वालों को खेल मंत्रालय के उच्च पद,
4.शिक्षा विभाग में कार्य करने वाले संविदा अतिथि विद्वानों या अन्यत्र जगह काम करने वालों को उच्च पद,
5.रोड बनाने वाले ठेकेदारों को कार्यानुभव आधार पर उच्च शासकीय पद,
6.निजी स्वास्थ्य कर्मियों को स्वास्थ्य के उच्च पद,
7.पेट्रोल पंप पर कार्य करने वाले दैनिक कर्मियों को उच्च पद,
8.दैनिक वेतन भोगियों मजदूरों को उच्च पदों पर मौका कार्यानुभव के आधार पर,
ऐसे कई सारे क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को कार्यानुभव के आधार पर उच्च पदों के मौके दिया जाना चाहिए,क्योंकि काम तो काम होता है।
यह विडंबना है कि सरकार हमेशा अपने चन्द लोगों को लाभ देने के लिए ऐसे कूटनीतिक षड्यंत्रों को रचती है जो आम जन की समझ के बाहर होते हैं। कंही न कंही नौकरशाह देश को नई दिशा देने का प्रयत्न करते है लेकिन हर मौके पर राजनीति उनके ऊपर भारी साबित होती है ऐसे में इस फैशले से नौकरशाही को खत्म करने की शुरुआत का यह पहला कदम है।
Upsc जैसी संस्था को एक झटके में ही नीचा दिखाने का प्रयास यह लोकतंत्र के साथ एक खिलवाड़ ही है, यह सबको विदित है कि निजी कंपनियां और उसके कर्मचारी निजी स्वार्थ और निजी लाभ के लिए ही कार्य करते आये हैं उनसे देश सेवा की उम्मीद करना बेमानी होगी,यह तो वही बात है कि 100 चूहे खाकर बिल्ली हज करने को चली है।
इस कुंठा के पीछे उस सोच का हाथ है जो यह चाहती है कि देश मे राजनैतिक और प्रसाशनिक दोनो तरीके से कब्जा कर के मनमाने ढंग से देश को चलाया जाय, आप इसको दुषरे तरीके से कह सकते हैं कि यह एक मानसिक आतंकवाद है जिसके परिणाम बहुत है भयंकर होंगे।
आज जिस तरह से सरकार ने नई नौकरियों का सृजन करने की जगह उल्टे पुरानी नौकरियों को ही विलोपित किया है उसका यह कदम करोड़ों युवाओं के सपनो पर एक डाका है उनकी प्रतिभा की हत्या है।
यह कहना कंही से कंही तक अतिषन्योक्ति न होगी कि यह पूरे देश को निजी हाथों में सौपने का आरंभ है।
लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
©® योगेश मणि योगी 'किसान'
अगर निजी कंपनियों के अधिकारियों को इस बेस पर नियुक्ति दी जा सकती है कि अमुक व्यक्ति ने 15 साल का अनुभव प्राप्त किया है,तो यह एक हास्यास्पद बात है,क्योंकि अगर 15 साल या उससे अधिक के कार्यानुभव वाले व्यक्ति पर सरकार को दया आ रही तो ,इस देश मे ऐसे तमाम लोग हैं जिनका हर क्षेत्र में कार्यानुभव 15 साल या 50 साल है,
मसलन
1.कृषि करने वाले को कृषि विभाग के उच्च पद ,
2.सफाई कर्मचारियों को सफाई विभाग के उच्चधिकारियों के पद,
3.खेलकूद में अनुभव रखने वालों को खेल मंत्रालय के उच्च पद,
4.शिक्षा विभाग में कार्य करने वाले संविदा अतिथि विद्वानों या अन्यत्र जगह काम करने वालों को उच्च पद,
5.रोड बनाने वाले ठेकेदारों को कार्यानुभव आधार पर उच्च शासकीय पद,
6.निजी स्वास्थ्य कर्मियों को स्वास्थ्य के उच्च पद,
7.पेट्रोल पंप पर कार्य करने वाले दैनिक कर्मियों को उच्च पद,
8.दैनिक वेतन भोगियों मजदूरों को उच्च पदों पर मौका कार्यानुभव के आधार पर,
ऐसे कई सारे क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को कार्यानुभव के आधार पर उच्च पदों के मौके दिया जाना चाहिए,क्योंकि काम तो काम होता है।
यह विडंबना है कि सरकार हमेशा अपने चन्द लोगों को लाभ देने के लिए ऐसे कूटनीतिक षड्यंत्रों को रचती है जो आम जन की समझ के बाहर होते हैं। कंही न कंही नौकरशाह देश को नई दिशा देने का प्रयत्न करते है लेकिन हर मौके पर राजनीति उनके ऊपर भारी साबित होती है ऐसे में इस फैशले से नौकरशाही को खत्म करने की शुरुआत का यह पहला कदम है।
Upsc जैसी संस्था को एक झटके में ही नीचा दिखाने का प्रयास यह लोकतंत्र के साथ एक खिलवाड़ ही है, यह सबको विदित है कि निजी कंपनियां और उसके कर्मचारी निजी स्वार्थ और निजी लाभ के लिए ही कार्य करते आये हैं उनसे देश सेवा की उम्मीद करना बेमानी होगी,यह तो वही बात है कि 100 चूहे खाकर बिल्ली हज करने को चली है।
इस कुंठा के पीछे उस सोच का हाथ है जो यह चाहती है कि देश मे राजनैतिक और प्रसाशनिक दोनो तरीके से कब्जा कर के मनमाने ढंग से देश को चलाया जाय, आप इसको दुषरे तरीके से कह सकते हैं कि यह एक मानसिक आतंकवाद है जिसके परिणाम बहुत है भयंकर होंगे।
आज जिस तरह से सरकार ने नई नौकरियों का सृजन करने की जगह उल्टे पुरानी नौकरियों को ही विलोपित किया है उसका यह कदम करोड़ों युवाओं के सपनो पर एक डाका है उनकी प्रतिभा की हत्या है।
यह कहना कंही से कंही तक अतिषन्योक्ति न होगी कि यह पूरे देश को निजी हाथों में सौपने का आरंभ है।
लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
©® योगेश मणि योगी 'किसान'
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