सोमवार, 16 अप्रैल 2018

सुन लो नेताओं तुम्हारी औकात सिर्फ तुम्हारे लिए अर्ज किया है,और उनके लिए भी जो किसान को आतंकी नक्सली और हिंसक कहते हैं-

दर्द कभी न समझ सकोगे भूमिपुत्र किसानों के,
पैदाइश हो लगता मुझको सच मे तुम हैवानों के,
तुम क्या जानो कभी खेत मे कैसे क्या क्या होता है,
कतरा कतरा उसके खूँ का कँहा समाहित होता है,
तुमने समझा वोट बैंक है जिसका काम किसानी है,
उनके हक को न देते यह सीधी सी बेईमानी है,
कभी उतरकर देखो थल पर ठंडी की उन रातों में,
या फिर धान की पौध लगाते कीचड़ के बरसातों में,
घुटने तक जब गड़कर भू में थोड़ा समय बिताओगे,
शायद उसके दर्द को काफिर महसूस कर पाओगे,
कमर लचक कर *निहुरे-निहुरे दिनभर करे निदाई है,
उसकी हालत उसकी पीड़ा कहती फटी बिमाई है,
सर पर रखकर बोझा उसने फसल दुपहरी में ढोई
उसकी किस्मत उसके दर्दों पर व्याकुल होकर रोई,
लिए दराती हाथ पकड़कर खेत काटता दिनभर है,
उसकी पीड़ा पर ऊपर से *लेत परीक्षा दिनकर है,
कोल्हू के हाँ कोल्हू के बैल के जैसा पिसता है,
सत्ता के हाँ सत्ता के दल्लों तुम्हे न दिखता है,
जिस किसान का जीवन सारा देश बनाने में गुजरा,
उसके हक पर चढ़कर तुमने नित्य जमाया है मुजरा,
तुमने उस ईश्वर का रुतवा पैरों तले है कुचल दिया,
उसके हक को सत्ता की कुर्सी की खतिर कुचल दिया,
उसकी फसल का पैमाना क्या कभी नही तुम चाहोगे,
कब तक तलवे उद्योगों के पतियों के तुम चाटोगे,
एक छोटी सी सुई की कीमत तय करते वो कैसे हैं,
हमने देश का पेट भरा है हम जैसे के तैसे हैं,
क्या हमको अधिकार नही है लागत को तय करने का,
इतना भी क्या हक न दोगे ,हक देदो फिर मरने का,
#बलात्कार मेरी फसलों का मंडी पर नित होता है,
मेरे लिए ये मेरा भारत खड़ा कभी न होता है,
ऐसा चलता रहा तो सुन लो फिर हथियार उठायेंगे,
जो जो हक में न बोलेगें, सर उनके काटे जाएंगे,

बघेली शब्द-
*निहुरे-निहुरे =कमर के बल झुकना,झुक जाना
*लेत- लेना
छायाचित्र-साभार

योगेश मणि 'योगी'
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