देश मे हमेशा से बलात्कार छेड़छाड़ की घटनाएं होती रहती हैं,अभी हरियाणा चंडीगढ़ में घटना हुई, सारे सबूत लड़के के खिलाफ है फिर भी हमारा कुंठित समाज जो अपने आप को पुरातन और संस्कारी कहता हैं उसकी घटिया सोच हर ऐसे मामले में खुल कर सामने आती है। हमेशा से औरत को गलत ठहराने की परंपरा सनातन से चली आई है यही हमारे संस्कार हैं।
मैं ये पोस्ट इसलिए लिख रहा हूं कि समाज के पुरुषों की सोच न्यूज़ डिबेट आदि में सुन सुन कर मन बड़ा व्यथित हुआ,चारों ओर से एक बाढ़ सी आ गई की कौन कितना औरत को नीचा दिखा सकता हैं ,कौन उसको और जलील कर सकता है।
औरतों को ऐसे कपड़े पहनना चाहिए,ये करना चाहिए ,9 बजे के बाद बाहर नही निकलना चाहिये, पर्दे में रहनी चाहिए, तमाम बंदिशें ,संस्कृति की दुहाई,हमारे पुण्य पुरातन सभ्यता की दुहाई?
सिर्फ औरत के लिए?
अगर औरत संस्कृति का हिस्सा है, तो हे भारत के पुरुषों क्या तुम इस संस्कृति से नही हो, क्या तुम्हारी रगों में संस्कृति और संस्कारों का खून नही दौड़ रहा,यदि हाँ तो 101 प्रतिशत गलती तुम्हारी है। और यदि नही तो अपने आप को पुरुष कहना छोड़ दो तुम राक्षसों से भी गए गुजरे हो।
याद है संस्कृति जब स्वामी विवेकानंद जी के पास एक विदेसी युवती आई और बोली कि मुझे आपसे प्यार है और आपके जैसा ही पुत्र चाहिए।
मत भूलो याद करो स्वामी जी ने कहा था कि हे देवी आपकी समस्या का हल है आज से मैं आपको अपनी माँ स्वीकार करता हूँ, और मैं आपका बेटा हूँ।
ऐसे हैं हमारे संस्कार, संस्कारों से मत खेलो ।
लड़की कपड़े ओछे पहनती है तो बलात्कार करोगे?
लड़की रात में मिलेगी तो बलात्कार करोगे?
लड़की सिगरेट पीती है शराब पीती है तो बलात्कार करोगे?
लड़की हँस के बात कर दी तो छेड़खानी करोगे?
लड़की अच्छा दोस्त समझती है तो बिस्ततर तक पहुंचने के सपने देखोगे?
लड़की पलट के देख ली तो घर तक पीछा करोगे उसका जीना हराम कर दोगे?
कमी लड़की में नही है कमी तुम्हारे संस्कारों में है,कमी तुम्हारे माँ बाप की परवरिश में हैं, और हे भद्र पुरुषों कमी तुम्हारी 2 कौड़ी की सोच में है।
कपड़ों का क्या है सोच गंदी होती है ,अगर सोच और खुद पे काबू है तो क्या औकात किसी पहनावे में की कोई आपको डिगा दे,
अगर मन में चोर है तो व्यक्ति फिसलेगा,
हमेशा कपड़ो को दोष देते हो ,औरत को देते हो ,सिर्फ आपने को पाक साफ रखने के लिए, असल मे दोषी तुम्ही हो।
अब बताना और अपनी सोच का आकलन करना-
1.पागल औरतें बाजार में नग्न ,अर्द्धनग्न फिरती हैं कितनों के मन ललचाते हैं?
सिर्फ वहशी पुरुषों के!
2. 3-4 साल की मासूम तो ब्रा पहन के नही घूमती कितनो के मन ललचाते हैं ?
सिर्फ वहशी पुरुषों के!
3.बूढ़ी औरतों को देखकर कितनो के मन ललचाते हैं?
सिर्फ वहशी पुरुषों के!
4.हाईवे में रोककर सामूहिक बालात्कार होता है क्या वो भी नग्न घूमती हैं या अंग प्रदर्शन करती हैं।
उनसे भी व्यभिचार कौन करता है?
सिर्फ वहसी पुरुष!
6.स्कूलों में तो सलवार सूट पे लड़कियों रहती हैं, फिर उनपर मन किसका ललचाता है?
सिर्फ वहशी पुरुषों का!
6.काम वालियों जो पेट के लिए घरों का काम करती हैं?
उनपर अत्याचार कौन करता है?
सिर्फ वहसी पुरुष!
7.क्या कभी अपनी बेटी बहन के लिए मन फिसला है?
नही न?
फिर दुसरों के प्रति गंदी मानसिकता क्यों?
पुरुषों को ये धारणा बदलनी होगी कि पहनावा ही सब कुछ है।
सोच बदलो, संस्कारों का रोना मत रोओ।
और हे देश के डिग्रीधारी लेखकों और देश के उत्थान के भगीरथियों अपनी ऊँची मानसिकता की गंगा प्रवाहित मत करो।
औरते गलत हैं इस भरम जाल से बाहर आओ और अपनी गलती मानो।
©लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
मूल रूप में ही शेयर करें
कवि लेखक योगेश मणि योगी
मैं ये पोस्ट इसलिए लिख रहा हूं कि समाज के पुरुषों की सोच न्यूज़ डिबेट आदि में सुन सुन कर मन बड़ा व्यथित हुआ,चारों ओर से एक बाढ़ सी आ गई की कौन कितना औरत को नीचा दिखा सकता हैं ,कौन उसको और जलील कर सकता है।
औरतों को ऐसे कपड़े पहनना चाहिए,ये करना चाहिए ,9 बजे के बाद बाहर नही निकलना चाहिये, पर्दे में रहनी चाहिए, तमाम बंदिशें ,संस्कृति की दुहाई,हमारे पुण्य पुरातन सभ्यता की दुहाई?
सिर्फ औरत के लिए?
अगर औरत संस्कृति का हिस्सा है, तो हे भारत के पुरुषों क्या तुम इस संस्कृति से नही हो, क्या तुम्हारी रगों में संस्कृति और संस्कारों का खून नही दौड़ रहा,यदि हाँ तो 101 प्रतिशत गलती तुम्हारी है। और यदि नही तो अपने आप को पुरुष कहना छोड़ दो तुम राक्षसों से भी गए गुजरे हो।
याद है संस्कृति जब स्वामी विवेकानंद जी के पास एक विदेसी युवती आई और बोली कि मुझे आपसे प्यार है और आपके जैसा ही पुत्र चाहिए।
मत भूलो याद करो स्वामी जी ने कहा था कि हे देवी आपकी समस्या का हल है आज से मैं आपको अपनी माँ स्वीकार करता हूँ, और मैं आपका बेटा हूँ।
ऐसे हैं हमारे संस्कार, संस्कारों से मत खेलो ।
लड़की कपड़े ओछे पहनती है तो बलात्कार करोगे?
लड़की रात में मिलेगी तो बलात्कार करोगे?
लड़की सिगरेट पीती है शराब पीती है तो बलात्कार करोगे?
लड़की हँस के बात कर दी तो छेड़खानी करोगे?
लड़की अच्छा दोस्त समझती है तो बिस्ततर तक पहुंचने के सपने देखोगे?
लड़की पलट के देख ली तो घर तक पीछा करोगे उसका जीना हराम कर दोगे?
कमी लड़की में नही है कमी तुम्हारे संस्कारों में है,कमी तुम्हारे माँ बाप की परवरिश में हैं, और हे भद्र पुरुषों कमी तुम्हारी 2 कौड़ी की सोच में है।
कपड़ों का क्या है सोच गंदी होती है ,अगर सोच और खुद पे काबू है तो क्या औकात किसी पहनावे में की कोई आपको डिगा दे,
अगर मन में चोर है तो व्यक्ति फिसलेगा,
हमेशा कपड़ो को दोष देते हो ,औरत को देते हो ,सिर्फ आपने को पाक साफ रखने के लिए, असल मे दोषी तुम्ही हो।
अब बताना और अपनी सोच का आकलन करना-
1.पागल औरतें बाजार में नग्न ,अर्द्धनग्न फिरती हैं कितनों के मन ललचाते हैं?
सिर्फ वहशी पुरुषों के!
2. 3-4 साल की मासूम तो ब्रा पहन के नही घूमती कितनो के मन ललचाते हैं ?
सिर्फ वहशी पुरुषों के!
3.बूढ़ी औरतों को देखकर कितनो के मन ललचाते हैं?
सिर्फ वहशी पुरुषों के!
4.हाईवे में रोककर सामूहिक बालात्कार होता है क्या वो भी नग्न घूमती हैं या अंग प्रदर्शन करती हैं।
उनसे भी व्यभिचार कौन करता है?
सिर्फ वहसी पुरुष!
6.स्कूलों में तो सलवार सूट पे लड़कियों रहती हैं, फिर उनपर मन किसका ललचाता है?
सिर्फ वहशी पुरुषों का!
6.काम वालियों जो पेट के लिए घरों का काम करती हैं?
उनपर अत्याचार कौन करता है?
सिर्फ वहसी पुरुष!
7.क्या कभी अपनी बेटी बहन के लिए मन फिसला है?
नही न?
फिर दुसरों के प्रति गंदी मानसिकता क्यों?
पुरुषों को ये धारणा बदलनी होगी कि पहनावा ही सब कुछ है।
सोच बदलो, संस्कारों का रोना मत रोओ।
और हे देश के डिग्रीधारी लेखकों और देश के उत्थान के भगीरथियों अपनी ऊँची मानसिकता की गंगा प्रवाहित मत करो।
औरते गलत हैं इस भरम जाल से बाहर आओ और अपनी गलती मानो।
©लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
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कवि लेखक योगेश मणि योगी
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