शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

गीत- मैं कोई कविता सुनाना चाहता हूं

मैं कोई कविता सुनाना चाहता हूं
भावना को गुनगुनाना चाहता हूँ

शारदे के वंसजों के बीच आकर
खुद को मैं भी आजमाना चाहता हूँ
छंद बिखरे शब्द बिखरे हों भले ही,
बात दिल की मैं बताना चाहता हूँ,
भावना को...

आईने मैंने बहुत देखे बिखरते,
टूटकर मैं अब निखरना चाहता हूँ,
चन्द आखर हों भले ही लाइनों में,
भाव से दिल में उतरना चाहता हूँ,
भावना को....

कलम का छोटा सिपाही हूँ बहुत ही,
उसकी इज़्ज़त मैं बचाना चाहता हूँ,
मंच वैभव की नहीं है भूख मुझको,
मैं दिलों में आसरा एक चाहता हूं,
भावना को....

मानता हूँ साधना आसां नही ये,
पर उसी में डूब जाना चाहता हूँ,
फक्र है मुझको भले ही चन्द सुनते,
बस उन्हीं को मैं सुनाना चाहता हूँ,
भावना को.....


©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित

घनाक्षरी छंद- किसान को समर्पित

घनाक्षरी छंद
*1*
अन्न उपजाता थाली खाली तेरी भरता है,
देश मे किसानों को सम्मान मिलना चाहिये,
जिसने भरा हो पेट सदा सारे भारत का,
उसपे भी हमें अभिमान होना चाहिये,
मंडी में क्यों दाम नहीं मिलते अनाज के हैं,
 सरकारी कोई इंतजाम होना चाहिए,
उपज का सही दाम मिल जाय बात बने,
मुँह पर ही नहीं जय किसान होना चाहिए,
*2*
बोलो जै जवानो की पर भूलों न किसानों की,
सीमा पर वीर वो तो देश की ये शान हैं,
एक को शहादत पे तिरंगा मिले अच्छी बात,
दूजे के कफन का नहीं कोई इंतजाम है,
करें व सुरक्षा तो किसान भूख हर रहे,
फिर क्यों सदा ही एक तरफा जय गान है,
अन्न उपजाना गर इसने भी छोड़ दिया,
सुने हिंदुस्तान सारा आफत में जान है,

*3*
डाल पर लटकी है लाश आज भारत की,
देश की हर उन्नति को मेरा धिक्कार है,
जीवन देने वाला रोज जीवन है हार रहा,
देश को किसानों से क्यों जरा सा न प्यार है,
राजनीति के ही कारण अन्नदाता मरता है,
जिसके लिए ये सारा देश ही व्यापार है,
सारी सुविधाएँ मिल जायें गर किसानों को तो,
देश की तरक्की फिर होनी चहुँद्वार है,

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©®योगेश योगी किसान

गीत- बहुत हो गई विनय हमारी

गीत-बहुत हो गईं विनय हमारी...

कान खोल कर सुन ले दिल्ली अब आवाज उठायेंगे
बहुत हो गई विनय हमारी,अब हथियार उठायेंगे,

रातों दिन की मेहनत का कुछ भी परिणाम नहीं मिलता
खून पसीने से उपजी फसलों का दाम नहीं मिलता,
हद से ज्यादा जुल्म तुम्हारा और नहीं सह पाएंगें,
बहुत जो गई विनय...

सवा अरब की भूख हरें हम खुद भूखे रह जाते हैं,
कर्जे में जीवन डूबा है जीते जी मार जाते हैं,
रोज-रोज मरने से अच्छा एक दिन ही मर जायेंगे,
बहुत हो गई...

नहीं माँगते यश, वैभव न सुख, सुविधाएँ हम चाहें,
फसल हमारी इज्जत है बस उसकी कीमत हम चाहें,
न दे पाए अब तक तुम, अब हम खुद तय कर जाएंगे,
बहुत हो गई विनय...

भूखे बच्चे बद से बदतर हालात न देखी जाती,
 फाँसी पर लटके किसान क्यों तुमको दया नहीं आती,
कसम खा रहे इन मौतों की अब चुप न रह पायेंगे,
बहुत हो गई विनय...

अभी वक्त है ठेकेदारों अंतिम ये पैगाम सुनो,
ये 'किसान' का संदेशा है बहुत बुरा अंजाम सुनो,
तेरे लहू से सींच धरा पर अगली फसल लगाएंगे,
बहुत हो गई विनय हमारी...


सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

गीत- नदिया की महिमा समझाऊँ

गीत-नदिया की महिमा समझाऊँ

आओ तुमको गीत सुनाऊँ,
नदिया की महिमा बतलाऊँ,

जीवन की यह भाग्य विधाता,
जनम मरण से इसका नाता,
इसके जल से हरियाली है,
सारे जग में खुशहाली है,
कितने गुण मैं तुम्हें सुनाऊँ,
नदिया की....

कल-कल, छल-छल निर्मल बहता,
इसके जल से जीवन चलता,
अगर नहीं नदियाँ होतीं तो,
सारा जग ये बंजर होता है,
आज मगर हम भूल गए हैं,
अहंकार में डूब गए हैं,
जल की कीमत क्या समझाऊँ,
नदिया की...

आओ मिलकर इन्हें बचाएँ,
पर्यावरण का साथ निभाएँ,
जल को इनके साफ रखें हम,
प्रदूषण से इन्हें बचाएँ,
जल है तो कल तभी बचेगा,
अगला जीवन यही कहेगा,
बार-बार गुणगान मैं गाउँ,
नदिया की महिमा...


सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान

गीत - इस शहर में क्या है ऐसा

गीत- गाँव से जिंदा हो भाई

महुआ की खुशबू जँहा पर,
आम की है बौर आई,
इस शहर में क्या है ऐसा,
गाँव से जिंदा हो भाई,

नफरतों का घर तुम्हारा,
चाहतें बेघर जँहा पर,
शर्म से डूबे हैं रिश्ते,
वृद्ध आश्रम है वहाँ पर,
हमने रिश्तों को बाँधा,
प्रीत सदियों से निभाई,
इस शहर में क्या.....

लहलहाते खेत देखो,
पेट जो भरते तुम्हारे,
सींच कर अपनव लहू से,
शहर हमने हैं सँवारें,
तुमने दुत्कारा है हमको,
नफरतें हमसे निभाईं,
इस शहर में....


बिष न बोते खेत मे हम,
रिश्तों में रस घोलते हैं,
आँसू बेशक बह रहे हों,
फिर दिल से बोलते हैं,
नफरतें तुमने हैं बोईं,
प्रीत हमने है उगाई,
इस शहर में...

गाय गोबर हमको प्यारे,
खेत ईश्वर हैं हमारे,
चूमते हैं नित्य ही हम,
मिट्टी के ढ़ेलों को सारे,
धरती को माता कहा ये,
चलन हमने है चलाई,
इस शहर में ....

जहर बनता है शहर में,
मर रहे हैं गाँव वाले,
नदियों को दूषित हो करते,
छोड़ कर घर घर के नाले,
हमने पेड़ों को लगाया,
फैक्ट्रियाँ तुमने लगाईं,
इसज शहर में....

जिसको तुम कहते तरक्की,
वह प्रकृति से एक धोखा,
नित नए आयाम छूते,
इन सभी से क्या है होगा,
काटे हैं जंगल तुम्हीं ने,
खोदी तुमने गहरी खाई,
इस शहर में....


सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान

गीत-मैं किसान फिर भी लाचारी

गीत
मैं किसान फिर भी लाचारी

मेरे दुःख समझेगा कौन,
जब चंहुदिश दिखता है मौन,
सबका पेट भरा है मैंने,
मेरी हालत के क्या कहने,
नित नित बढ़ती है बेगारी,
मैं किसान.....

ईश्वर मुझसे रूठ गया है,
गठबंधन सा टूट गया है,
नदिया रूठी झरने रूठे,
 ताल तलैया कोने बैठे,
मेरी बिपदा सबसे भारी
मैं किसान फिर...

सबको भोजन मैं देता हूँ,
फिर भी मैं भूखा सोता हूँ,
तेरी खुशियाँ मेरे गम से,
सारी रौनक मेरे दम से,
नहीं कोई मेरा आभारी,
मैं किसान फिर...

सबको खुशियाँ मिले वतन में,
मैं रहता क्यों सदा पतन में,
जेवर बीबी के बिक जाते,
सीजन की जब फसल लागते,
लागत महँगी उपज बेचारी,
मैं किसान फिर...

कुर्सी में जो-जो हैं बैठे,
सत्ता पाकर मुझसे ऐंठे,
जिनको मतलब नहीं कृषक से,
न उनकी भारी पीड़ा से,
इंतजाम न कुछ सरकारी,
मैं किसान फिर...

हाथ करूँ बेटी के पीले,
इस चिंता में नयन हैं गीले,
बच्चे मेरे कब पढ़ जाएँ,
न जी पाएँ न मार पाएँ,
मेरी किस्मत ही क्यों खारी,
मैं किसान फिर.....

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©®योगेश योगी किसान

गीत- मैं किसान की कुर्बानी का

गीत
मैं किसान की कुर्बानी का

मैं किसान की कुर्बानी का गीत सुनाने आया हूँ।
उसकी मेहनत की पीड़ा मैं तुम्हें सुनाने आया हूँ।

जिसने सींचा हो खून से खेत और खलिहानों को।
जिसने अपना सारा जीवन पूरा सौंप दिया बलिदानों को।
उस किसान की मेहनत पर ईश्वर बीबी आघात करे।
सरकारों की जिम्मेदारी फिर उस पर प्रतिघात करे।
उसके पाँव पड़े छालों का दर्द सुनाने आया हूँ।
उसकी मेहनत....

रात-रात भर जग कर जिसने तुमको रोज सुलाया हो।
अपने कष्टों की पीड़ा को कभी नहीं बतलाया हो।
अपनी मेहनत के अनाज से पेट तुम्हारे भरता हो।
खुद भूखा रहकर भी सोचो कभी नहीं कुछ कहता हो।
उसके दर्दों का थोड़ा आभाष कराने आया हूँ।
उसकी मेहनत .....

बिन माँगे न हक मिलता हो माँगों तो गोली मिलती।
क्या किसान की मेहनत बोलो तुमको है इतनी खलती।
सीने में पीतल भर देते सरकारी सम्मानों का,
घूँट-घूँट वह रोज है पिता मिले हुए अपमानों का।
ईश्वर धरती का किसान है ये दिखलाने आया हूँ।
उसकी मेहनत ....

नहीं चाहिए भीख उसे बदले में चाहे अपमान मिलें।
पर उनकी जीवन की रेखा फसलों को सम्मान मिले।
उसकी फसल की कीमत के भी कुछ पैसे लग जाने दो।
बहुत पड़े हैं कर्जे उसके कुछ थोड़े चूक जाने दो।
फसलों की कीमत न मिलती यही बताने आया हूँ।
मैं किसान की....

©®योगेश योगी किसान
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गीत- शब्द नहीं कुछ कहने को

गीत
शब्द नहीं हैं कुछ कहने को

गीत

शब्द नहीं है कुछ कहने को

शब्द नहीं है कुछ कहने को उसकी पीड़ा भारी है।
कर्जे में है डूब चुका बस फाँसी की तैयारी है।।

देश के लोगों तुम भी सोचो उसके दाने खाते हो।
रात-रात भर वो जगता है तुम कैसे सो जाते हो।
उसके हक पर डाका क्यों है सत्ता क्यों हत्यारी है।
 शब्द नहीं है....

कँहा सोचता इतना वह है जितना तुम हो सोच रहे।
उसकी मेहनत की इज्जत की बोटी-बोटी नोंच रहे।
धरती से क्या भूमिपुत्र के गारत की तैयारी है।
शब्द नहीं हैं....

जरा सोच कर देखो तुम अन्न नहीं उपजायेगा।
चारों ओर चीत्कार मचेगी फिर भारत क्या खायेगा।
सबकी उन्नति दिखती है बस उसकी विपदा भारी है।
शब्द नहीं हैं....

ओला-पाला, धूप-छाँव, बारिश से वो लड़ लेता है।
घुटनो तक कीचड़ में रहकर फिर भी खुश हो लेता है।
फसलों के घटते दामो से उसकी हिम्मत हारी है।
शब्द नहीं हैं...

नहीं करोगे कभी तरक्की चाहे कितने जतन करो।
जो तुमको भोजन देता है उसकी पहले पीर हरो।
व्यापारी की चाँदी है, क्यों उसकी गर्दन पर आरी है।
शब्द नहीं हैं....

कहता 'किसान' हल को छोड़ा तो अन्न कौन उपजायेगा।
चंहुँदिश जँहा नजर जाएगी सब बंजर हो जाएगा।
उसके छालों को देखो जिससे रौनक ये जारी है।
शब्द नहीं हैं....

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©®योगेश योगी किसान

गीत - मैं किसान का बेटा हूँ

गीत

मैं किसान का बेटा हूँ

हाँ किसान का बेटा हूँ मैं दर्द उसी के गाता हूँ।
उसकी हालत देख कहूँ क्या आँसू से भर जाता हूँ।
तुमको बेशक महल मुबारक राजनीति की गद्दी भी।
गोली देते हक माँगों तो मंच से गाली भद्दी सी।।
मेरा तुम हो दाना खाते मैं तेरा क्या खाता हूँ,
मैं किसान का बेटा.....

क्या सोचा है कभी की उसका जीवन यापन कैसा है।
उसकी मेहनत उसकी हालत जीवन से  समझौता है।
मेहनत करता जब जगकर रात दिन परपाटी में।
उसके आँसू का कतरा फिर मिलता तुमको थाली में।
 जरा सोच लो क्यों इतराते खुशियाँ मैं ही लाता हूँ...
मैं किसान का बेटा....

मत भूलो की धरा पुत्र का तुमको जीवन देता है।
बदहाली सी खुशहाली में वह जीवन जी लेता है।
मैं किसान के दर्द समेटे उसका चारण करता हूँ।
उसकी मेहनत को शब्दों से में उच्चारण करता हूँ।
मेरे ही दुश्मन बन बैठे तुमको क्यों न भाता हूँ..
मैं किसान का....

एक दिन आकर उनके जैसी मेहनत गर तुम कर लोगे।
बिस्तर से   उठ पाओगे सब देवों को भज लोगे।
तुम हो नोटों के सौदागर नोटें खाकर रहते हो।
इसलिए मंचों से हमको बुरा भला तुम कहते हो।
गाली मुझको ही मिलती हैं इतना क्यों चुभ जाता हूँ..
मैं किसान का....

सुन ले भारत कान खोलकर भूमिपुत्र यदि रोयेगा।
कितनी चाहे केओ तरक्की अपने अतीत को खोएगा।
भारत माँ का बेटा यदि बलि की बेदी चढ़ जाएगा।
तुमको भोजन देने बोलो कौन पितामह आएगा।
हार मिले हरदम फिर भी मैं अगली फसल लगता हूँ।
मैं किसान....


सर्वाधिकार सुरक्षित
©® योगेश योगी किसान

गीत- लहलहाती फसल

%गीत%

लहलहाती फसल

लहलहाती फसल और ये ठंडी हवा ,
मेरे खेतों की खुशबू की क्या बात है,
आपके पेट का अन्न भोजन बना,
मेरे मेहनत के दानों को सौगात है,
लहलहाती फसल .....

रात दिन मैं जगा उसकी रखवाली में,
जिसका भोजन मिला आपकी थाली में,
मेरी मेहनत का ही सब कुछ परिणाम है,
मेरे दम से सुबह और ये शाम है,
लहलहाती फसल ......

जो भी दिखता यँहा मेरी मेहनत सभी,
ये तरक्की भी मेरी तरक्की से है,
भूल जाओगे गर तुम मेरी मेहनत को,
बस समझ लो की दुनिया ये बर्बाद है,
लहलहाती फसल.....

तुम भी मनो मुझे तुम भी जानो मुझे,
मेरी मेहनत के डीएम से सभी काज है,
आज के दौर की ये नुमाइश सभी ,
झोपडी भी मेरी , मेरे ये ताज हैं,
लहलहाती फसल ......

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©® योगेश योगी किसान

किसानों का दर्द समेटे मुक्तक

मुक्तक
किसानों की किसानी का कोई सानी नहीं जग में।
 इमां का खून बहता है कोई पानी नहीं रग में।
करोगे बेदखल हक से मिलोगे गर्त में सीधे।
है धरती का वह ईश्वर नहीं ईश्वर कोई नभ में।।

समेटे दर्द सीने में करे वो देश की सेवा।
उपज का मूल्य बस देदो नहीं चाहे कभी मेवा,
भले तुम ऐश की सारी हदों को पास में रख लो,
दे दो हक उसे उसका करें जो राष्ट्र की सेवा।।

सितम इतने हुए हम पर कहानी हालात कहती है।
हमारे खेत से नदिया हमेशा सूखी बहती है।
 भरे जो पेट जन जन का वही लाचार है भूखा।
तुम्हारे जुल्म की शोहरत यही हर बार कहती है।।

लहू के कतरे कतरे से फसल को सींचा है हमने।
मिला है भाव माटी सा खरीदा खरीदा हमसे है तुमने।
फसल इज्जत जो मेरी है लुटी है आज मंडी में।
हरे घावों की धरती पर नमक रगड़ा है फिर तुमने।।

करोगे जो कभी मेहनत किसानी जान जाओगे।
कटाई कर लो एकड़ भर तो हमको मान जाओगे।
चलाओ मुँह न मंचों से रहो औकात में अपनी।
दराती जो उठा ली तो हमें पहचान जाओगे।।

नहीं निकलेगा कोई हल अगर हल छोड़ जाएगा।
किसानी बंद कर देगा अगर मुख मोड़ जाएगा।
खनक सिक्कों की कैसे पेट को भरती बताओ तो।
रहेगी थाल फिर खाली जो नाता तोड़ जाएगा।।

पढूंगा दर्द ईश्वर का कहूँगा दर्द ईश्वर का।
नहीं निकला है अब तक हल लिखूँगा मर्ज ईश्वर का।।
किसानों को न मारो तुम सुनो सत्ता के वाशिंदों।
इबादत में करो शामिल जरा सा अर्क ईश्वर का।।

समंदर है बहुत गहरा ये आँसू हैं किसानो के।
तुम्हारे पेट को पाले ये जज़्बे हम दीवानो के।।
कभी भड़की अगन हक की चिताएँ गिन न पाओगे।
ठिकाने ये लगा देंगे वतन के बेईमानों के।।

करे दिन रात रखवाली तुम्हारे  पेट भरने को।
बुरे हालात हैं उसके न साँसे ज़िंदा रहने को।
लगेगी हाय ऐसी की कभी खुश रह न पाओगे।
करो तो काम तुम कुछ ऐसे कृषक की पीर हरने को।।

चलो मैं गीत लिखता हूँ खुशी के साथ गाऊँगा।
तेरे चारण में गाकर के खुशी से झूम जाऊँगा।।
कभी तुम भी समझ लो अन्न के दाता की मजबूरी।।
तुम्हारे दर पे नितदिन मैं सिर को झुकाउँगा।।

भला क्यों उसकी  हालत पर दया तुमको नहीं आती।
बेशर्मी से भरी बातें तुम्हें क्यों शर्म न आती।
बना दी कैसी हालात है यहाँ की राजनीति ने।
किसानी ऐसा रस्ता है कभी मंजिल नहीं आती।।

फसल सुखी लगा उसको लटक वो पेड़ से जाए।
हुई बारिश भयंकर जब वो रोता मेड़ से आए।।
जो थोड़ा कुछ बचे दाने बिकी मंडी में है इज्जत।
मरे न अन्नदाता रो बताओ तुम कँहा जाए।।


बिका ईमान है तेरा नजर  फसलें नहीं आतीं।
बहुत बातें यंहा होतीं मगर असलें नहीं आती।।
न जाने क्यों तुम्हें नफरत हुई मेरे किसानों से।
बने क्यों मुर्ख फिरते हो तुम्हें अकलें नहीं आतीं।।

किसानों की बुरी हालत बताओ दोष किसका है।
तुम्हें जो पलता भू पर नहीं अफ़सोस उसका है।।
जरा भी शर्म आती तो तुम्हें एहसास ये होता।
तुम्हारी इस सफलता में बताओ वोट किसका है।।

समर्पण राष्ट्र भक्ति का चलो तुमको दिखाऊं मैं।
भरे जो पेट जन जन का वही भूँखा दिखाऊँ मैं।।
जरा तुम भी घुसो कीचड़ में आकर संग तो मेरे।
हैं कितने जहन में छाले चलो तुमको दिखाऊँ मैं।।


सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी किसान
योगेश मणि सिंह

ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...