मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

महमूद ग़ज़नवी और सोमनाथ मंदिर के बारे में चौंका देने वाला खुलासा। पोस्ट बड़ा है पर इतिहास को खोलने वाला है पूरा ज़रूर पढ़े..

गुजरात का सोमनाथ आज फिर दलितों के अत्याचार पर अपने हक़ीक़ी मोहसिन को पुकार रहा है।
.... महमूद गजनवी का ज़हूर एक ऐसे समुद्री तूफ़ान की तरह था जो अपनी राह में मौजूद हर मौज को अपनी आगोश में ले लेती है, वह ऐसा फातेह था जिसकी तलवार की आवाज़ कभी तुर्किस्तान से आती तो कभी हिंदुस्तान से आती, उसके कभी न् थकने वा
ले घोड़े कभी सिंध का पानी पी रहे होते तो कुछ ही लम्हो बाद गांगा की मौजों से अटखेलियां करते । वह उन मुसाफिरों में से था जिसने अपनी मंजिल तै नही की थी, और हर मंजिल से आगे गुजर जाता रहा...
उसे फ़तेह का नशा था, जीतना उसकी आदत थी, वैसे तो वह इसी आदत की वजह से अपने परचम को खानाबदोश की तरह लिए फिरता रहा और जीतता गया, पर अल्लाह रब्बुल इज्जत ने उसे एक अज़ीम काम के लिए चुना था ..

और अल्लाह अपना काम ले कर रहता है।।

...... भारत का पुराना इतिहास खगालने पर यहाँ का सामाजिक ताना बाना पता लगता है, वेस्ट एशिया से एक फ़तेह कौम का भारत पर वर्चस्व हुआ, तो उन्होंने अपनी रिहायश के लिए, हरे भरे मैदान चुने और हारे हुए मूल निवासियों को जंगल दर्रों और खुश्क बंजर ज़मीनों पर बसने के लिए विवश किया गया, चूँकि मूल भारतियों की तुलना में आर्य कम थे इसलिए उन्होंने सोशल इंजीनियरींग का ज़बरदस्त कमाल् दिखाते हुए, मूल भारतियों को काम के हिसाब से वर्गों में और जातियों में बाँट दिया, और इस व्यवस्था को धर्म बता कर हमेशा के लिए इंसानो को गुलामी की न् दिखने वाली जंजीरों में जकड़ लिया । ब्राह्मणों ( आर्य) के देवता की नज़र में मूल भारतीय एक शूद्र, अछूत, और पिछले जन्म का पाप भोगने वाले लोगों का समूह बन गया, ब्राह्मणों के धर्म रूपी व्यवस्था की हिफाज़त के लिए एक समूह को क्षत्रिय कहा गया, वह क्षत्रिय, ब्राह्मणों के आदेश को देवता का हुक्म मानते और इस तरह सदियों-सदियों से लेकर आज तक वह ब्राह्मणवादी व्यवस्था से शूद्र बाहर नही निकल सके
....
महमूद गजनवी को राजा नन्दपाल की मौत की खबर मिल चुकी, अब ग़ज़नवी की फौज नन्दना के किले को फ़तेह करने के लिए बेताब थी, इधर तिर्लोचन पाल को राज़ा घोसित करके गद्दी सौंप दी गयी, त्रिलोचन पाल को जब ग़ज़नवी की फौजों की पेश कदमी की खबर मिली तो उसने किले की हिफाज़त अपने बेटे भीम पाल को सौंप दी, भीम पाल की फ़ौज गज़नबी के आगे एक दिन भी न ठहर सकी, उधर कश्मीर में तिरलोचन ने झेलम के शुमाल में एक फ़ौज को मुनज्जम किया जो एक सिकश्त खोरदा लश्कर साबित हुई।।

रणवीर एक राजपूत सरदार का बेटा था जो भीम सिंह से साथ नन्दना के किले पर अपनी टुकड़ी की क़यादत कर रहा था, रणवीर बहुत बहादुरी से लड़ा और यहाँ तक कि उसके जौहर देख कर गज़नबी मुतास्सिर हुए बिना न् रह सका, वह तब तक अकेला ग़ज़नवी के लश्कर को रोके रहा जब तक उसके पैरों में खड़े रहने की ताकत थी, उसके बाद ज़मीन पर गिर कर बेहोश हो गया, आँखे खोली तो गज़नबी के तबीब उसकी मरहम पट्टी कर रहे थे, रणवीर ने गज़नबी के मुताल्लिक बड़ा डरावनी और वहशत की कहानियां सुनी थीं, लेकिन यह जो हुस्ने सुलूक उसके साथ हो रहा था, उसने कभी किसी हिन्दू राज़ा को युद्ध बंदियों के साथ करते नही देखा । उसे लगा कि शायद धर्म परिवर्तन करने के लिए बोला जायेगा, तब तक अच्छा सुलूक होगा, मना करने पर यह मुस्लिम फ़ौज उसे
अज़ीयत देगी, उसने इस आदशे का इज़हार महमूद से कर ही दिया, कि अगर तुम क़त्ल करना चाहते हो तो शौक से करो पर मै धर्म नही बदलूंगा, उसके जवाब में ग़ज़नवी के होंठों पर बस एक शांत मुस्कराहट थी, गज़नबी चला गया, रणवीर के जखम तेज़ी से भर रहे थे, वह नन्दना के किले का कैदी था पर न् उसे बेड़ियां पहनाई गयी और न् ही किसी कोठरी में बंद किया गया। कुछ वक़्त गुजरने के साथ ही कैदियों की एक टुकड़ी को रिहा किया गया जिसमें रणबीर भी था, रिहाई की शर्त बस एक हदफ़ था कि वह अब कभी गज़नबी के मद्दे मुकाबिल नही आएंगे, यह तिर्लोचन पाल के सैनिकों के लिए चमत्कार या हैरान कुन बात थी, उन्हें यक़ीन करना मुश्किल था, खैर रणवीर जब अपने घर पहुंचा तो उसे उम्मीद थी कि उसकी इकलौती बहन सरला देवी उसका इस्तकबाल करेगी और भाई की आमद पर फुले नही समाएगी, पर घर पर दस्तक देने बाद भी जब दरवाज़ा नही खुला तो उसे अहसास हुआ कि दरवाज़ा बाहर से बंद है , उसे लगा बहन यहीं पड़ोस में होगी, वह पड़ोस के चाचा के घर गया तो उसने जो सुना उसे सुन कर वह वहशीपन की हद तक गमो गुस्से से भर गया, उसकी बहन को मंदिर के महाजन के साथ कुछ फ़ौजी उठा कर ले गए, चाचा बड़े फ़ख्र से बता रहा था कि, रणवीर खुश किस्मत हो जो तुम्हारी बहन को महादेव की सेवा करने का मौका मिला है, लेकिन यह लफ्ज़ रणवीर को मुतास्सिर न् कर सके, रणबीर चिल्लाया कि किसके आदेश से उठाया, चाचा बोले, पुरोहित बता रहा था कि सोमनाथ से आदेश आया है कि हर गाँव से तीन लड़कियां देव दासी के तौर पर सेवा करने जाएंगी, हमारे गाँव से भी सरला के साथ दो और लड़कियां ले जाई गयी हैं। रणवीर खुद को असहाय महसूस कर रहा था, कहीं से उम्मीद नज़र नही आ रही थी, ज़हनी कैफियत यह थी कि गमो गुस्से से पागल हो गया था, वह सोच रहा कि वह एक ऐसे राज़ा और उसका राज़ बचाने के लिए जान हथेली पर लिए फिर रहा था, और जब वह जंग में था तो उसी राज़ा के सिपाही उसकी बहन को पुरोहितों के आदेश पर उठा ले गए, उसने सोचा कि राज़ा से फ़रयाद करेगा, अपनी वफादारी का हवाला देगा, नही तो एहतिजाज करेगा,,,चाचा से उसने अपने जज़्बात का इजहार किया, चाचा ने उसे समझाया कि अगर ऐसा किया तो धर्म विरोधी समझे जाओगे और इसका अंजाम मौत है। उसे एक ही सूरत नज़र आ रही थी कि वह अपने दुश्मन ग़ज़नवी से अपनी बहन की इज़्ज़त की गुहार लगायेगा। लेकिन फिर सोचने लगता कि ग़ज़नवी क्यू उसके लिए जंग करेगा, उसे उसकी बहन की इज़्ज़त से क्या उज्र, वह एक विदेशी है और उसका धर्म भी अलग है,, लेकिन रणवीर की अंतरात्मा से आवाज़ आती कि उसने तुझे अमान दी थी, वह आबरू की हिफाज़त करेगा और बहन के लिए न् सही पर एक औरत की अस्मिता पर सब कुछ दाव पर लगा देगा, क्यू कि वह एक मुसलमान है।।

रणवीर घोड़े पर सवार हो उल्टा सरपट दौड़ गया.....इधर सोमनाथ में सालाना इज़लास चल रहा था, इस सालाना इज़लास में सारे राज़ा और अधिकारी गुजरात के सोमनाथ में जमा होते, जो लड़कियां देवदासी के तौर पर लायी जातीं उनकी पहले से ट्रेनिंग दी जाती, जो लड़की पहले नम्बर पर आती उस पर सोमनाथ के बड़े भगवान का हक़ माना जाता, बाकी लड़कियां छोटे बड़े साधुओं की खिदमत करने को रहतीं और अपनी बारी का इंतज़ार करतीं, उन सभी लड़कियों को कहा जाता कि साज़ श्रृंगार और नाज़ो अदा सीखें, जिससे भगवान को रिझा सकें। एक दिन ऐसा आता कि जीतने वाली लड़की को कहा जाता कि आज उसे भगवान् ने भोग विलास के लिए बुलाया है, उसके बाद वह लड़की कभी नज़र नही आती, ऐसा माना जाता कि महादेव उस लड़की को अपने साथ ले गए और अब वह उनकी पटरानी बन चुकी है। यह बातें रणवीर को पता थीं, उसकी सोच-सोच कर जिस्मानी ताक़त भी सल हो गयी थी, ताहम उसका
घोडा अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था, ग़ज़नवी से मिल कर उसने अपनी रूदाद बताई, एक गैरत मन्द कौम के बेटे को किसी औरत की आबरू से बड़ी
और क्या चीज़ हो सकती थी, वह हिंदुत्व या सनातन को नही जानता था, उसे पता भी नही था कि यह कोई धर्म भी है, और जब परिचय ही नही था तो द्वेष का तो सवाल ही नही था, हाँ उसके लिए बात सिर्फ इतनी थी कि एक बहादुर सिपाही की मज़लूम तनहा बहन को कुछ लोग उठा ले गए हैं और अब उसका भाई उससे मदद की गुहार लगा रहा है, वह गैरत मन्द सालार अपने दिल ही दिल में अहद कर लिया कि वह एक भाई की बहन को आज़ाद कराने के लिए अपने आखरी सिपाही तक जंग करेगा ,।

ग़ज़नवी जिसके घोड़ो को हर वक़्त जीन पहने रहने की आदत हो चुकी थी, और हर वक़्त दौड़ लगाने के लिए आतुर रहते, वह जानते थे कि सालार की बेशतर जिंदगी आलीशान खेमो और महलों में नही बल्कि घोड़े की पीठ पर गुजरी है, गज़नबी ने फ़ौज को सोमनाथ की तरह कूच का हुक्म दिया । यह अफवाह थी कि सोमनाथ की तरफ देखने वाला जल कर भस्म हो जाता है और गज़नबी की मौत अब निश्चित है, वह मंदिर क्या शहर में घुसने से पहले ही दिव्य शक्ति से तबाह हो जायेगा, अफवाह ही पाखंड का आधार होती है, गज़नबी अब मंदिर परिसर में खड़ा था, बड़े छोटे सब पूरोहित बंधे पड़े थे, राजाओं और उनकी फ़ौज की लाशें पुरे शहर में फैली पड़ीं थीं, और सोमनाथ का बुत टूट कर कुछ पत्थर नुमा टुकड़ों में तब्दील हो गया था,, दरअसल सबसे बड़ी मौत तो पाखंड रूपी डर की हुई थी, कमरों की तलाशी ली जा रही थी जिनमे हज़ारो जवान और नौ उम्र लडकिया बुरी हालत में बंदी पायी गईं, वह लड़कियां जो भगवान के पास चली जाती और कभी नही आती, पूछने पर पता चला कि जब बड़े पुरोहित के शोषण से गर्भवती हो जातीं तो यह ढोंग करके कत्ल कर दी जाती, इस बात को कभी नही खोलतीं क्यू कि धर्म का आडंबर इतना बड़ा था कि यह इलज़ाम लगाने पर हर कोई उन लड़कियों को ही पापी समझता ।

महमूद ने जब अपनी आँखों से यह देखा तो हैरान परेशान, और बे यकीनी हालात देख कर तमतमा उठा, रणवीर जो कि अपनी बहन को पा कर बेहद खुश था, उससे गज़नबी ने पुछा कि क्या देवदासियां सिर्फ यहीं हैं, रणवीर ने बताया कि ऐसा हर प्रांत में एक मंदिर है। उसके बाद गज़नबी जितना दौड़ सकता था दौड़ा , और जुल्म, उनके बुत कदों को ढहाता चला गया, पुरे भारत में न् कोई उसकी रफ़्तार का सानी था और न कोई उसके हमले की ताब ला सकता था, सोमनाथ को तोड़ कर अब वह यहाँ के लोगों की नज़र में खुद एक आडंबर बन चूका था, दबे कुचले मज़लूम लोग उसे अवतार मान रहे थे, गज़नबी ने जब यह देखा तो तौहीद की दावत दी, वह जहाँ गया वहां प्रताड़ित समाज स्वेच्छा से मुसलमान हो उसके साथ होता गया, उसकी फ़ौज में आधे के लगभग हिन्दू धर्म के लोग थे जो उसका समर्थन कर रहे थे ।उसकी तलवार ने आडंबर, ज़ुल्म और पाखंड को फ़तेह किया तो उसके किरदार ने दिलों को फ़तेह किया ।वह् अपने जीते हुए इलाके का इक़तिदार मज़लूम कौम के प्रतिनिधि को देता गया और खुद कहीं नही ठहरा । वह जो .... महमूद गज़नबी था।

नोट :
 उक्त लेख इतिहास की सत्य घटनाओ पर आधारित है, किसी की धार्मिक अथवा किसी भी प्रकार की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो वो सच्चाई को स्वीकार करने की आदत डाल लें।

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

उन्नाव के दोषियों का बचाव ब्राम्हण कहकर क्यों?

"उन्नाव के नरपिशाच दोषियों का बचाव ब्राम्हण कहकर क्यों"

मैं यह लेख लिखना नहीं चाहता था लेकिन वास्तविकता को छुपाना और उनके पहलुओं पर बात करना भी एक तरह का अन्याय ही है। जैसे विवेचना के दौरान यदि सही साक्ष्यों को कानून के नुमाइंदे छुपा लें या बदल दें तो पूरा केस प्रभावित होता है ठीक इसी तरह सत्य भी है। उन्नाव में जो घटना हुई उससे केवल उन्नाव ही नहीं वरन पूरा विश्व अछूता नहीं रहा। विदेशी मीडिया ने तो भारत को #रेप_कैपिटल_ऑफ_वर्ल्ड तक नाम दे डाला। बलात्कार जैसे मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए, एक बड़ी पार्टी की तरफ से ये बयान आया। शायद वो ये भूल गए कि हर वो मैटर जिस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए उस पर राजनीति, वह आपकी ही पार्टी की देन है। उत्तरप्रदेश में इसी साल अकेले 88 से अधिक बलात्कारों(रजिस्टर्ड पता नहीं कितने मुकदमे पुलिस ने न लिखे और कितनों पर सुलह कराई) ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वँहा चल क्या रहा है। अगर इसके पहले वाली सरकारों में जंगलराज था तो इसे रामराज्य कहना कँहा तक सारगर्भित है।
देश मे कई बलात्कार हुए आरोपी दो तरीके के ही रहे एक मानसिक विकलांगता वाले और दूजे रसूख़ वाले। मानसिक विकलांगता वालों ने तो यदा कदा ही व्यभिचार किया लेकिन इन रसूख़ वालों ने तो बलात्कार की परिभाषा ही बदल दी। क्रूरता की वो मिसालें पेश की हैं कि बलात्कार के मानसिक विकलांगता वाले आरोपी भी तुच्छ लगने लगे, मानो ये यह कह रहे हों कि रसूख़ वाले तो रसूख़ वाले ही होते हैं।
बलात्कारों का भी ध्रुवीकरण हुआ उनको भी वोटों के लिए और राजनीति के हथकंडों के लिए उपयोग किया जाने लगा जिसमें कोई पार्टी कमतर नहीं थी, सबने अपनी अपनी तख्तियाँ अपने अपने हिसाब से उठाईं बलात्कार तो कई हुए लेकिन तख़्तियाँ राजनीति की ही पोषक रहीं। लेकिन यँहा एक बात स्पष्ठ कर देना चाहता हूँ कि बहुत सी आवाजें और तख़्तियाँ ऐसी भी थी जिन्हें ह्रदय से पीड़ा हुई और वो इंसाफ की गुहार लगाने लगे और उन्हीं की बदौलत देश मे कुछ मामलों पर न्याय मिला या प्रोसेस में है वरना गरीब और नींव की बात इस देश मे कोई नहीं करता।
राजनीति वालों ने कभी भी बलात्कार की पीड़िता और उसके आँसू, उसका असहनीय दर्द, उसके परिवार की वेदना नहीं देखी, उन्होंने उसमे देखा तो सिर्फ हिन्दू, मुस्लिम, दलित और इसके पीछे मकसद था सत्ता! उनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ यही रही।
आज वही हो रहा है। उन्नाव में जघन्य सामूहिक बलात्कार और फिर जमानत से छूटने के बाद रसूख़ के नशे में चूर सत्ता का दुशाला ओढ़े दुर्दांत अपराधियों ने पीड़िता के ऊपर घासलेट डालकर आग लगा दी। पीड़िता एक किमी तक दौड़ती रही। धू-धू करके जलती रही। मदद की गुहार लगाती रही। लेकिन ये उत्तरप्रदेश है साहब यँहा अपराधियों की ही तूती बोलती है।
अपराध अपराध होता है और अपराधी सिर्फ अपराधी यह बात भूलकर फिर कुछ देश और समाज तोड़ने वाले  लोग जो बलात्कार में हिन्दू-मुस्लिम करते हैं उनके स्वर फिर मुखर हो उठे और इन बलात्कारियों को बचाने के लिए जातिवाद का सहारा लेने लगे।
इन अपराधियों का बचाव यह कह कर किया जा रहा है की यह पूरे ब्राम्हण समाज पर हमला है। लगातार इनको बचाने सोसल मीडिया पर मुहिम चलाई जा रही है। इसे धर्म पर हमला कहा जा रहा है। किसी अव्वल दर्जे के नीच ने जो अपने आप को एस्ट्रोलॉजर कहता है उसने तो जनता से प्रश्नोत्तरी ही खेल ली -"क्या नाजायज संबंधों का आरोप लागकर जेल कराने वाली को जला कर मारना सही है?" और उससे भी घ्रणित मानसिकता देखिए साहब उच्च वर्ग के ही अधिकांस प्राणियों ने कॉमेंट में कहा कि बिल्कुल सही किया! ऐसा ही करना चाहिए! आदि आदि। इतनी दोयम दर्जे की मानसिकता का प्रदर्शन क्यों? क्या जाति विशेष होने के कारण ऐसा किया जा रहा है? या फिर देश मे एक नए तरह का जहर घोला जा रहा है? वो वरिष्ठ जन जिनकी पोस्ट पर हैदराबाद की घटना पर उनके वालपोस्ट ट्विटर पर मुस्लिम मुस्लिम करके घृणा फैलाई जा रही थी, अचानक से हिंदुओं के शामिल होने का पता चलने पर खंडन भी न कर सके। वही कौम फिर से एक बार ब्राम्हण का नाम लेकर सक्रिय हो उठी है। ब्राम्हणों ने किया मतलब सही होगा? या ब्राम्हण ऐसा नहीं कर सकते? या ब्राम्हणो के खिलाफ साजिश रची जा रही है? अरे भाई सब कुछ आपको ही निर्धारण करना है तो फिर देश का संविधान किसलिए, और अगर आपकी बात सही है तो हैदराबाद के एनकाउण्टर सही कैसे? दरअसल आप आज तक ये निर्धारण नहीं कर सके कि गलत को गलत की नजर से देखना कैसे है? यकीन मानें आप ब्राम्हणों को नहीं बचा रहे बल्कि आज तक किए गए उनके #तप को पूर्णतः ज़मीदोज़ करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हो। आप देश के जनमानस में वो नफरत भर रहे हो जिसका अंदाजा आपने सपने में नहीं सोचा। कोई ब्राम्हण सिर्फ जाति से नहीं बनता। ब्राम्हण बनता है कर्म से और इन अपराधियों के कर्म इतने ओछे हैं कि इन्हें ब्राम्हण समाज की तरफ से सामूहिक बहिष्कार और फाँसी की माँग किया जाना ही हितकर है।
वैसे भी ये देश ऊँच नीच और भेदभाव के दंश को झेल रहा है अगर इन आरोपियों को बचाया गया तो पिछड़ा वर्ग की वह पीड़िता जिसे जला कर मार दिया गया उसकी कौम आपको कैसे माफ कर पायेगी, क्यूँकि बलात्कार करने के बाद उसे जलाने के बाद भी यदि आप पाक होने का नाटक करोगे तो दुसरा वर्ग विशेष जिसने सामूहिक बलात्कार झेला और जिंदा जला देना क्या होता है अपनी आंखों से देखा उसका अस्तित्व कँहा रहेगा? और आगे भी उसके साथ क्या होगा क्या नहीं इसका जवाब कौन देगा?

सिर्फ और सिर्फ न्याय की आस में।

#उन्नाव_पीड़िता_को_न्याय_दो

©®योगेश योगी किसान
लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
फ़ोटो-साभार ( बहुत ही दुःखद)

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

हे नारी फूलन बन जाओ। #हे नारी फूलन बन जाओ

हे_नारी_फूलन_बन_जाओ , गीत मातृशक्ति पर नित हो रहे अत्याचार से आहत होकर महिलाओं के सम्मान में, नारी शक्ति को समर्पित, आप सबके आशीष की चाह में,


अब समय नहीं थामो बल्ला,
गोस्वामी झूलन बन जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
हे नारी #फूलन बन जाओ।।

ये सत्ताएं मदमस्त हुईं,
न फिकर इन्हें तेरी होती।
पैसे कुर्सी की लालच में,
बस इनकी है फेरी होती।।
इनको मारो ये जँहा मिलें,
धर पाँव वक्ष मे चढ़ जाओ।
हथियार उठा गोली दागो
        हे नारी.....

तुमने सृष्टि को जन्म दिया,
अपमान तेरा ही भारत मे।
तुमसे दुनिया है टिकी हुई,
फिर भी महिमा है गारत में।।
जिसने तेरा अपमान किया,
मारो उसको न मर जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
         हे नारी....

हे नारी यूँ न घूँट पियो,
अपमानों वाले प्यालों का।
हल गोली है ये याद रखो,
इन ह्रदय के गहरे छालों का।।
इज़्ज़त का बदला लेने को,
रणचंडी सी तुम तन जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
     हे नारी....

ये पुरुष सदा जो अहम करें,
समझें तुमको मनमौजी का।
सीने इनके छलनी कर दो,
अब रूप धरो तुम फौजी का।।
मन तनिक नहीं अधीर करो,
मारो इनको औ इतराओ।
हथियार उठा गोली दागो,
   हे नारी....

इनकी हस्ती का नाश करो,
सारे भारत पर राज करो।
सारे पुरुषों को दफन करो,
ज़िंदा गाड़ो ये काज करो।।
मरने पर इनके तनिक नहीं,
सोचो याकि तुम घबराओ।
हथियार उठा गोली दागो,
    हे नारी.....

मत सोच रखो ये हैं जीवन,
पुरुषों को न अभिमान कहो।
जो चुप बैठे वो भी दोषी,
इनको भी तुम शैतान कहो।।
प्रण इन दुष्टों के मर्दन का,
अबकी ऐसी सौगंध खाओ,
हथियार उठा गोली दागो,
      हे नारी फूलन..

ये ही वकील ये जज तेरे,
ये बलात्कार कर जाते हैं।
हो थाने या की राजनीति,
अपराधी बन कर आते हैं।।
साधु सन्याशी हो हकीम,
बंदूक कँहा जल्दी लाओ,
हथियार उठा गोली दागो,
          हे नारी....

इनकी चुप्पी से ही तेरी,
असमत को लूटा जाता है।
गलती पुरुषों की होती पर,
सब तुझ पर थोपा जाता है।।
इसलिए उठो ये धर्म कहे,
इनको मारो और तर जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
         हे नारी.....

गर भारत मे तुमको रहना,
हे नारी तुम टंकार करो।
न रहे शेष सर एक कोई,
सब पुरुषों का संहार करो।।
फिर कहता हूँ न एक बचे,
गौरव ऐसा तुम ही पाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
       हे नारी फूलन बन जाओ।।
       हे नारी फूलन.....



©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित
मूलरूप में ही कॉपी पेस्ट शेयर करें।

रविवार, 3 नवंबर 2019

पराली पर हो हल्ला भूमाफिया की देन

हमारी #फसल साल में 2 बार आती है देश भर के तमाम प्रदूषणों से अगर किसानी के कचरे(पराली=गेंहू+धान)के प्रदूषण की तुलना की जाए तो वह मात्र 6% है।
जी हाँ सही पढ़ा आपने #छः प्रतिशत मात्र।
सारे देश मे किसानों के खिलाफ जो प्रपोगेंडा चलाया जा रहा है और उसे बिना सोचे समझे लोग किसानों को गालियाँ दे रहे हैं, उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पूरी दिल्ली तख्तियाँ लेकर घूम रही है और वो भड़वे जो अपने आप को पर्यावरणविद कहते हैं वो भी इन प्रपोगेंडा वालों के साथ मिलकर विधवा विलाप कर रहे हैं।

आखिर #किसानों का इतना विरोध क्यों?

किसान इस देश का #अन्नदाता है यह हम सब जानते हैं बस मानते नहीं क्योंकि राजनीति की धृष्टता और सरकारों की मनमानी के साथ साथ दौलत वाली शहरी चमक से हमारी आँखें चौंधिया गई हैं। सरकार और अफसरशाही मिलकर दिल्ली के आसपास की सारी जमीनों से खेती बंद करवाना चाहती है ऐसा सिर्फ और सिर्फ #भूमाफिया के प्रभाव के चलते किया जा रहा है। क्योंकि सीना तान कर जो गगनचुम्बी इमारतें खड़ी की जा रही हैं वह कोई अंतरिक्ष मे नहीं खड़ी होनी वह खड़ी होनी है किसान के खेत पर और जब खेत बिकेगा ऐसा तभी सम्भव होगा।
और इस असम्भव से काम को संभव बनाने का सबसे अच्छा तरीका है , भूमाफिया+मीडिया+सरकार+अफसरशाही, भूमाफिया पूरा ब्लू प्रिंट तैयार करती है, दलाल #मीडिया इस प्लान को लोगों तक पहुँचाती है और सरकार उस ब्लू प्रिंट के हिसाब से नियम कानून बनाती है और जब इन थोपे गए नियम कानून को किसान सिरे से नकराते हैं तब अफसरशाही सामने आती है उन्हें हर तरीके से निपटाने के लिए।
कुल मिलाकर किसानों के खिलाफ एक ऐसा षड्यंत्र चल रहा है जिसकी कल्पना करना सबके बस की बात नहीं।
जाहिर है आप सोचते होंगे ऐसा नहीं और ऐसा सरकार क्यों करेगी उसे तो लोगों की सेहत का ख्याल है इसलिए जनहित में इतनी परेशान है।
यकीन मानिए अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आपकी सोच को जंग लग चुकी है।
किसी ने कहा था आदमी से सबकुछ छीनकर इतना मजबूर कर दो की साँस लेने मात्र को ही ज़िन्दगी समझने लगे और उसी को अहसान माने, बस यही तो ब्लू प्रिंट है जिस पर बड़ी तेजी से काम चल रहा है।
संगठित लूट इसे ही कहते हैं इस बात को आप उदाहरण से समझिए, कोई किसान फसल लेकर मंडी गया वँहा पर व्यपारियों का एक समूह जो फसल की खरीदी बोली लगाता है। वह किसान की फसल जिसका मूल्य 5000प्रति क्विंटल है को बोली संगठित रूपसे 3500से स्टार्ट करता है और 4000पर आकर खत्म कर देता है और किसान मजबूरी में फसल दे देता है।
लेकिन इसमे लुटता कौन है किसान।
बस कुछ इसी तरह का काम सरकार कर रही है, संगठित रूप से दलालों के साथ मिलकर किसानों को चारों तरफ से इतना मजबूर कर देगी,  किसान सरकार से खुद कहेगा कि अब किसानी बस में नहीं जीवन यापन का कुछ प्रबन्ध कर दो।
फिर क्या जिसका इंतेज़ार खत्म, सारी जमीने सरकार उद्योगपतियों को सौंप देगी जिनकी फैक्टरियाँ सरकार के हिसाब से शुद्ध ऑक्सीजन देती हैं और इको फ्रेंडली है ।

औऱ ये जनता सरकार से पूंछने की जगह किसानों को दोष देती है।
 मेरा भी एक प्रश्न है आज किसानों का विरोध वालों से? जब किसानों की फसल जल जाती है और किसान फाँसी लगा लेता है, तब क्या तुमने यही तख्तियाँ सरकार के खिलाफ कितनी बार उठाईं, कितनी बार कहा कि किसानों को न्याय दो, नहीं न! बस इसी हरकत और इसी घटिया सोच को शास्त्रों में हरामीपन की पराकाष्ठा कहा गया है।

फिक्र है जन की फसल को बो रहा हूँ मैं।
हर बार घाटा देख करके रो रहा हूँ मैं।
तूम भला क्या दर्द जानो मेरी मेहनत का,
देखकर हालात आपा खो रहा हूँ मैं।

©®
योगेश योगी किसान
फ़ोटो- 94% प्रदूषण(शहर) v/s 6% प्रदूषण(गाँव)

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

राम रावण

मेरी कविता #रावण का एक प्रश्न लिखने का दुस्साहस #रावण_क्यों_तुमसे_आज_जले प्रस्तुत है, आपकी प्रतिक्रिया आशिर्वाद स्वरूप आपेक्षित।

हे राम युद्ध मैं हार गया, सीता माता को छुआ नहीं।अपमान हुआ मेरा भी था, उसका बदला तक लिया नहीं।
तुमने मारा मेरे कुल को, सब सर्वनाश कर डाला था।
क्या ऐसा था अपराध मेरा, या आँखों में तेरी जाला था।

सीता कुल गौरव तेरी थीं, मैंने उनको तो छुआ नहीं।
क्यों सर्वनाश मेरा इतना, मुझसे ऐसा कुछ हुआ नहीं।
गौरव थी मेरी सूर्पनखा, जिसकी नसिका को काट दिया।
हे राम सत्यपथ के गामी, न लक्ष्मण को क्यों डाँट दिया।

गौरव तेरा  तो मेरा भी, बस इतना ही समझाना था।
मकसद बस मेरा इतना सा सीता को लेकर आया था।
हो सकती बात बैठकर भी, तुम तो ईश्वर के अवतारी।
मैं पढ़ा लिखा वेदों का था, माना था थोड़ा अभिमानी।।

मुझको मारा गलती छोटी, हो आज तलक तुम मार रहे।
रावण-रावण, रावण-रावण, कह करके सब दुत्कार रहे।
ऐसा प्रतिमान बनाया की मेरी थू-थू सारे जग में।
तुम राजा सिर्फ अयोध्या के, था राज मेरा पत,धर,नभ में।

इक काम करो हे राम सुनो, मैं माफ तुम्हें कर देता हूँ।
तुम फूंको रोज भले मुझको, मैं उसको भी सह लेता हूँ।
पर राम मेरे न चुप बैठो, जो बलात्कार लाखों होते।
महसूस करो उस नारी को, अन्याय सदा जिस पर होते।

उस बच्ची की क्या गलती थी, जो स्तनपान किया करती।
उस रावण का कुछ हुआ नहीं,क्या राम तुम्हारी थी मर्जी।
उस धर्म पुजारी को देखो, जो नाम तिहारा लेता था।
बस इसी नाम के पीछे वह, कृत्य सभी कर लेता था।

हे राम कहो अवतार तेरा, मर्दन को मेरे ही होता।
छुपे कँहा तुम रहते हो, शर धनुष कँहा तेरा होता।।
हे राम तेरी ये चुप्पी अब, सारा जग को है खूब खले।
तुम स्वयं बताओ राम मेरे, रावण क्यों तुमसे आज जले।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
मूलरूप में ही रखें
©®योगेश योगी किसान
फ़ोटो- साभार

सोमवार, 23 सितंबर 2019

देश जागरण करने वाले काव्य के पुरोधा राष्ट्र गौरव #रामधारी_सिंह_दिनकर जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन।
एक रचना समर्पित-

लिखता हूँ मैं देश का #वंदन, लिखता जन की पीर को।
लिखता हूँ #किसान की माटी, लिखता सीमा के वीर को।।
लिखता हूँ मैं #राजनीति से, उपजे देश के छालों को।
जाति #व्यवस्था के सीने पर, पार हुए उन भालों को।।
लिखता हूँ मैं नींव का पत्थर, #दबी हुई आवाजों को।
जो जनता को हक़ न देते, लिखता उन #सरताजों को।।
जब तक भारत मे #शोषण है, बात लिखूँ अपमानों की।
गाथा कैसे कलम लिखेगी, चाटुकार #बेईमानों की।।
मैं #दिनकर का वंशज हूँ, मैं #संविधान की बात करूँ।
माँ शारद ने जिम्मा सौंपा, कैसे मैं #आघात करूँ।।
सुन लो कोई #कवि नहीं, दर्दों को गाने वाला हूँ।
माँ के दामन का जिम्मा है, उसका मैं #रखवाला हूँ।।
समरसता जब न मिलती तब, #इंकलाब लिख जाता हूँ।
जनमानस की #पीड़ा को तब, मैं शब्दों में गाता हूँ।।

©®योगेश योगी किसान

सर्वाधिकार सुरक्षित
मूलरूप में ही आगे भेजें

सोमवार, 5 अगस्त 2019

आज जिसने जिसने 370 का विरोध किया उनकी एक लिस्ट सार्वजनिक तैयार होनी चाहिए चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, और सभी LoC में एकत्रित करके डायनामाइट लगा कर उड़ा देना चाहिए, ताकि दुनिया देखे की भारत गद्दारों के साथ क्या करता है। सुवर के नाजायजों,हरामीयों सीधी बात देशद्रोहियों की कमी नहीं है हिंदुस्तान में उनको जवाब देती और देश के शौर्य का गुणगान करती मेरी रचना।



लाखों शीश चढ़ा देंगे हम देश तेरे आह्वान पर।
माँ का मस्तक नहीं झुकेगा कमी न होगी शान पर।।

मोदी की सेना ने अबकी देश को एक बनाया है।
कश्मीर से दक्षिण तक इक संविधान चलाया है।।

धारा 370 का यह दाग देश पर धब्बा था।
चाहने वाले इसको सुनलें पाक तुम्हारा अब्बा था।।

कश्मीर जागीर नहीं है सुनो किसी के बाप की।
फन जिसका ऊपर निकलेगा कुचलेंगे उस सांप की।।

महबूबा हो या  फारुख हो सुन ले नहीँ निवेदन है।
बार बार जो समझाते थे न ही वो प्रतिवेदन है।।

अबकी तुमको जाना होगा पाक तुम्हारा देश है।
कश्मीर में नहीं इंच भर धरा तुम्हारी शेष है।।

LOC की बात छोड़ दो इंच इंच गारत कर देंगे।
कराची इस्लामाबाद पेशावर पूरा भारत कर देंगे।।

गले लगाया कश्मीर को तब-तब पत्थर खाए हैं।
अब आँसू दिखलाते क्यों हो तब क्यों नहीं बहाए हैं।।

एक एक पत्थर का सुन लो हिसाब किया है मोदी ने।
अलगावी जेहादी सुन लें जवाब दिया है मोदी ने।।

अभी वक्त है चरण थाम लो गले लगाकर देख लिया।
हमने भी है वक्त से सीखा घावों को अब सेंक लिया।।

जो जैसा अब बोलेगा उसको वैसा इनाम मिले।
तमगे जूते गोली लायक जैसा जो सम्मान मिले।।

शुरुवात है स्वर्णिम युग की शहंशाह अब बोला है।
इक-इक करके कामों वाला नया पिटारा खोला है।।

होगा नव निर्माण देश का सब्र करो यह जान लो।
भारत विश्व गुरु अब होगा बात मेरी तुम मान लो।।

कहता योगी देश बड़ा ,जन-जन का  ये सम्मान है।।
तन मन धन हर जन्म मेरा सबकुछ इस पर कुर्बान है।।


सर्वाधिकार सुरक्षित  मूलरूप में ही शेयर करें।
©®योगेश योगी किसान

मंगलवार, 18 जून 2019

पहले उप्र फिर बिहार फिर सूरत फिर बिहार अगला स्थान क्या आपका शहर या गाँव...बच्चों की लगातार मौत से दिल आहत हुआ बस शब्द निकल पड़े😭

मरते बच्चे देख रहे हो, दर्द हुआ या नही हुआ।
हेरोइन जब मरती है तब, दुख में साहब ट्वीट हुआ।।
देश चाहता बुलेट नहीं है, न ही मंदिर मस्जिद अब।
बच्चे सब मर जाएंगे तो, पूजा होगी कैसे कब।।
बुनियादी सुविधाएं रोएं, शिक्षा स्वास्थ्य बड़ी घटिया।
देशभक्ति का रंग चढ़ा कर, बातों से डालो पटिया।।
नहीं जरूरत मंगल जाना, न बुलेट ट्रेन की बातें हो।
लाल मेरे ज़िंदा रह जाएं, चैन से उनकी रातें हो।।
ऑक्सीजन कि कमी से मर गए, गोरखपुर हम भूल गए।
सूरत में किस कमी से बच्चे, सीधे छत से कूद गए।।
देखो हाल बिहार का साहब, दो बारी दुहराया है।
एसी में बैठे प्लानर को, अब तक समझ न आया है।।
क्यों होती हैं मौतें इतनी, बच्चे मरें किसान मरें।
बिना युद्ध के रोज रोज ही, सीमा पर जवान मरें।।
बच जाए यदि बेटी तो, कब लूट जाएगी पता नहीं।
कुछ हठधर्मी कहते हैं कि, घटना है यह खता नहीं।।
संताने यदि होती तो, शायद तुम दर्द समझ पाते।
एक बच्चे के मर जाने पर, बदहवास से हो जाते।।
खुद के लिए सैलरी भत्ता, रोज रोज बढ़वाते हो।
राष्ट्रभक्ति जब करते हो सब, क्यों वेतन ले जाते हो।।
इस वेतन से ही कुछ कर दो, शायद मौतें रुक जाएँ।
राष्ट्रवाद की जय-जय होगी, नतमस्तक सब हो जाएँ।।
ऐसा ही गर चला तो साहब, बच्चे सब मर जाएँगे।
सीमा पर लड़ने को सैनिक, कहो कँहा से लाएँगे।।



सर्वाधिकार सुरक्षित
मूलरूप में ही शेयर करें

©®योगेश योगी किसान

मंगलवार, 4 जून 2019

बुलेट नहीं जनरल ट्रेन लाओ

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई,
एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।
दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।
जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।
टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।
" ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।"
कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।
सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे।
 बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे।
 लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे।
" साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।"
टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।"
इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो।
 पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे।
" ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? "
" बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है, और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा, बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए।
सुना है, "अच्छे दिन " इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। "
उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे ,मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक  में जा रहे हो।
कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए?
 क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा?
नहीं-नहीं।
आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।"
पत्नी के कहा।
 " मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "
कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-
" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-"
 इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।"
उसकी आँख फिर छलक पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें
मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।

(विनम्र प्रार्थना है जो भी इस कहानी को पढ़ चूका है उसे इस घटना से शायद ही इत्तिफ़ाक़ हो पर अगर ये कहानी शेयर करे ,कॉपी पेस्ट करे ,पर रुकने न दे शायद रेल मंत्रालय जनरल बोगी की भी परिस्थितियों को समझ सके। उसमे सफर करने वाला एक गरीब तबका है जिसका शोषण चिर कालीन से होता आया है।)

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

कश्मीर की महबूबा को चेतवानी देती मेरी रचना

कश्मीर में आतंकियों की पोषक #महबूबा को चेतवानी देती मेरी रचना-

भारत के तिरंगे को गर धोखे से हाथ लगाओगी।
महबूबा अबकी इश्क नहीं गर्दन अपनी कटवाओगी।।

गद्दारी की जात देख लो फिर महबूबा बोली है।
भारत को धमकी देने में जुबा न उसकी डोली है।।
कैसे कैसे साँप पले हैं भारत की इस माटी पर।
आग लगाने तुले हुए हैं पुरखों की परिपाटी पर।।
2 कौड़ी की महबूबा ने फिर अपनी जात बताई है।
आतंकी की लड़की है उसने औकात दिखाई है।।
जैसा जिसका बाप रहा हो वैसी उसकी फसल हुई।
कुत्तों के घर कुत्ते होते घोड़ों की न नसल हुई।।
कश्मीर में आतंकी के आका की ये बोली है।
खून से छाती लाल करो ये आतंकी की टोली है।।
कश्मीर न बाप का इसके भारत का सम्मान है।
घाटी के चप्पे चप्पे पर बसता हिदुस्तान है।।
जुबा नहीं क्यों काटी इसकी जिंदा नहीं जलाया क्यों?
झंडे को जब गाली दी तो गरदन नहीं उड़ाया क्यों?
इन जैसे गद्दारों के ही कारण सैनिक मरता है।
गठबंधन क्यों इन भड़वों से सत्ता खतिर करता है।।
महबूबा को आज बता दो घर मे घुस कर मारेंगे।
आँख उठी जो भारत पर तो दोनों आखँ निकालेंगे।।
घाटी के शैतानों को अब खत्म तुम्हें करना होगा।
पाक परस्ती वाले लोगों से पहले लड़ना होगा।।
बहुत हो चुका खत्म करो महबूबा मुफ्ती का किस्सा।
भरकर पीतल सीने लिख दो भारत का ये है हिस्सा।।


©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित
मूलरूप में ही शेयर करें

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

पुलवामा में जवानों के काफिले पर हमला कई जवान शहीद, आखिर कब तक??
मेरी अश्रुपूरित #श्रद्धान्जलि उन अमर #शहीद सैनिकों को ,और उनके परिवारजनों की ओर से सुनी कोखों और कलाइयों का दर्द आपके सामने , *शेयर करें अगर देश से प्यार है ताकि फिर एक सर्जीकल स्ट्राइक हो*
💐💐💐

बहुत हो रहा समझौता इन दो कौड़ी के नागों से।
फिर कहता हूँ न हल निकलेगा मीठी मीठी बातों से।।
घर मे घुसकर इनको मारो दम दिखलाओ मोदी जी।
या फिर सत्ता करो हवाले सैनिक को तुम मोदी जी।।
राजनीति के बस में कुछ न राजनीति ही दिखती है।
देश भूलकर सारी कोशिस मुद्दों पर ही टिकती है।।
समझौता क्यों मुद्दों खातिर सैनिक की है लाशों से।
रोज रोज है कोख उजड़ती चरण चाटती बातों से।।
कुछ कुत्ते दाखिल हो जाते सीमा के दरवाजों से।
तेरे cctv कँहा गए क्या लगे हुए दरबारों में।।
कहते थे सीमा पर कोई नहीं परिंदा पर मारे।
एक के बदले 10 सर लेंगे लगते थे ऐसे नारे।।
कोख पूछती तुमसे है क्यों बार बार सैनिक मरता।
कहते रहते हो मोदी से अखिल विश्व हलहल कँपता।।
अगर इंच है 56 वाला तो दिखला दो मोदी जी।
दूध छठी का नामर्दों को चलो पिला दो मोदी जी।।
आगे आगे मैं जाऊँगा कसम सैन्य की खाता हूँ।
पाकिस्तान पर गर हमले का एक निमंत्रण पाता हूँ।।
एक बार घर मे घुस करके इनका दमन जरूरी है।
इनके काले मंसूबों पर काला कफन जरूरी है।।
बस इक मौका सेना को दो पाकिस्तान मिटाने का।
माँ का जितना दूध पिया है उसका कर्ज निभाने का।।

जय हिंद! जय भारत🇮🇳
©®योगेश योगी किसान
9755454999
मूलरूप में ही शेयर करें
सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

सतना कलेक्टर सत्येंद्र सिंह सतना के लिए वरदान

*सतना कलेक्टर सत्येंद्र सिंह सतना के लिए वरदान..*
*#JANSANDESHNEWS*

*कलेक्टर सतनावासियों के लिए बने मसीहा कार्यशैली ऐसी की हर कोई हो जाए फ़िदा* https://jansandeshnews.com/?p=2757
*योगेश योगी/सतना/जनसंदेश न्यूज़*

बुधवार, 9 जनवरी 2019

आँगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ

*आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ ने माँगों को लेकर दिया परियोजना अधिकारी को ज्ञापन..*

*#JANSANDESHNEWS* https://jansandeshnews.com/?p=2734
*योगेश योगी/सतना/जनसंदेश न्यूज़*

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

कर्ज माफी किसानों के साथ धोखा

*सरकार की कर्ज माफी, 31 मार्च के बाद कर्ज लेने वाले किसानों के साथ धोखा..*

*#JANSANDESHNEWS*
 https://jansandeshnews.com/?p=2665
*सतना/जनसंदेश ब्यूरो*

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

https://jansandeshnews.com/?p=2559

जनसंदेश न्यूज में प्रकशित मेरा लेख👇

*अपने ही देश मे विस्थापित किसान*




भारत एक कृषि प्रधान देश है यह हम सब सुनते हुए जमाने से आ रहे हैं लेकिन इसी कृषि प्रधान देश की एक कड़वी सच्चाई यह है कि किसान जो इस देश की रीढ़ है उसे कमजोर करने की तैयारी आजादी के बाद से ही शनैःशनैः जारी रही और अपने चरम पर पहुचने को तैयार खड़ी है। हम यूँ कहें कि किसान की रोटी के टुकड़ों पर पलने वाले इस देश ने आज किसान को ही टुकड़ों पर पलने वाला बना दिया है तो कोई अतिसंयोक्ति नहीं और इसका कारण है जिम्मेदार सरकारों का उद्योगपतियों ,पूंजीपतियों के पीछे पीछे दौड़ाने की होड़। किसान जिसकी जरूरत कुछ ज्यादा नहीं रही उसे अट्टालिकाएं और ये बाह्याडम्बर विकाश से कोई लेना देना नहीं रहा उसकी पहली माँग हमेशा से उसकी फसलों के लाभकारी उचित दाम रहे जिनको उसे कभी नहीं दिया गया और न देने की कोशिश की गई ,हाँ एम यस पी( न्यूनतम समर्थन मूल्य )के नाम पर उसके साथ छलावा जरूर किया गया। आजादी के बाद से ही पंचवर्षीय योजनाएं बनी जिसमे की पहली तीसरी और पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में किसान हित को सम्मलित किया गया लेकिन उसके बाद किसी पंचवर्षीय योजना में उसके हितों को न सम्मलित किया गया और न ही पूरा करने की चेस्टा की गई। न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी कर सरकारों ने अपनी पीठ ऐसे थपथपाई मानो किसान को स्वर्ग ही प्रदान कर दिया गया हो,जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य की हकीकत किसी से छुपी नहीं रही पहली बात तो ये की उसमे किसान की फसलों के लाभकारी मूल्य नहीं दिए गए और दूसरी बात उन्हें लागू करने की और उससे संबंधित कानून बनाने को जरूरी नहीं समझा गया । उसका खमियाजा किसान ने भुगता एक तो एम यस पी में धोका ऊपर से इसी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसकी फसलों को खरीदने कोई तैयार नहीं। वह आज भी उसी जगह खड़ा है जँहा पहले था, आधे से भी कम मूल्य पर फसलों को खरीदकर  दलालों के द्वारा उसे लूटा जाता रहा है। सरकार के समक्ष जब जब किसानों ने ये बात उठाई तो जवाब यही मिला कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की फसलों को खुद खरीदती है जबकी यह आँकड़े सिर्फ एक ढोंग के अलावा कुछ नहीं कृषि वैज्ञानिकों और सरकार के आंकड़ों को देखा जाए तो महज 13% उपज को ही सरकार समितियों और मंडियों के माध्यम से खरीदती है शेष 87% उपज तो आज भी दलालो और मंडियों के द्वारा कम मूल्य पर खरीदी जा रही है उसका क्या?
किसानों के लिए जरूरी स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट को लागू करना किसान हित मे है लेकिन इस रिपोर्ट को सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाकर ही उपयोग किया जाता रहा और किसान हर बार यही सोच कर, कभी इसकी तो कभी उसकी सरकार बनाता रहा कि स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू हो जाएगी और उसके कष्ट दूर होंगे लेकिन उसे हमेशा मिला सरकार के रूप में पाँच वर्ष का प्रमाणित धोका,और ये पाँच -पाँच वर्ष करके मिलने वाला धोखा आजादी के आज इतने साल बाद भी जारी है।
देश ने तरक्की खूब की इसमे कोई दोराय नहीं लेकिन देश के किसानों ने कागजो पर तरक्की की यही हकीकत है।
किसानों ने जब जब आंदोलनों के माध्यम से अपनी बात उठानी चाही उसे नक्सली,आतंकी,देशद्रोही,विपक्ष का दलाल,वामपंथी न जाने कौन कौन सी संज्ञाएँ दी गईं। उसे हक के नाम पर कभी लाठी तो कभी गोली बस यही उसका जीवन रहा। आशाओं से भरा नंगे पैर ,अपने बच्चों को लिए हर बार उसने दिल्ली कूच किया कि शायद उसकी बात सुनी जाएगी विरोध स्वरूप उसने पेशाब पी ,चुहे तक खाय भुख हड़ताल की लेकिन सत्ताओं पर बैठे आकाओं ने कभी उसकी सुध नहीं ली चार कदम आकर ये तक नहीं पूँछा की पीड़ा क्या है? अब जब राज्यों में हुए चुनावों में किसानों ने आईना दिखाया तो अचानक से किसान प्रेम जागता दिखा लेकिन उस किसान प्रेम पर फिर एक बार हमेशा की तरह हिन्दू मुस्लिम और मंदिर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है ,लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि किसान आजादी के बाद अब जाकर जागा है जँहा उसने धर्म जाति के मुद्दों से ऊपर उठकर अपनी ताकत पहचानी है और सिर्फ अपने किसानी के हक के मुद्दों के लिए व्यवस्था परिवर्तन कर देश की राजनीति को आइना दिखाया है कि वह किसी जुमलों पर नहीं अपनी माँगों पर वोट करेगा। शायद यही वजह है कि  देश की कुम्भकर्णी राजनीति में खलबली मच गई है,और किसानों के पीठ पूजने को हमेशा तैयार रहने वाली सरकार अब पैर पूजने की तैयारी करती दिखाई दे रही है।


*योगेश योगी किसान*
*प्रदेश अध्यक्ष किसान मोर्चा*
*राष्ट्रीय ओबीसी महासभा*
©लेख

ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...