"उन्नाव के नरपिशाच दोषियों का बचाव ब्राम्हण कहकर क्यों"
मैं यह लेख लिखना नहीं चाहता था लेकिन वास्तविकता को छुपाना और उनके पहलुओं पर बात करना भी एक तरह का अन्याय ही है। जैसे विवेचना के दौरान यदि सही साक्ष्यों को कानून के नुमाइंदे छुपा लें या बदल दें तो पूरा केस प्रभावित होता है ठीक इसी तरह सत्य भी है। उन्नाव में जो घटना हुई उससे केवल उन्नाव ही नहीं वरन पूरा विश्व अछूता नहीं रहा। विदेशी मीडिया ने तो भारत को #रेप_कैपिटल_ऑफ_वर्ल्ड तक नाम दे डाला। बलात्कार जैसे मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए, एक बड़ी पार्टी की तरफ से ये बयान आया। शायद वो ये भूल गए कि हर वो मैटर जिस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए उस पर राजनीति, वह आपकी ही पार्टी की देन है। उत्तरप्रदेश में इसी साल अकेले 88 से अधिक बलात्कारों(रजिस्टर्ड पता नहीं कितने मुकदमे पुलिस ने न लिखे और कितनों पर सुलह कराई) ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वँहा चल क्या रहा है। अगर इसके पहले वाली सरकारों में जंगलराज था तो इसे रामराज्य कहना कँहा तक सारगर्भित है।
देश मे कई बलात्कार हुए आरोपी दो तरीके के ही रहे एक मानसिक विकलांगता वाले और दूजे रसूख़ वाले। मानसिक विकलांगता वालों ने तो यदा कदा ही व्यभिचार किया लेकिन इन रसूख़ वालों ने तो बलात्कार की परिभाषा ही बदल दी। क्रूरता की वो मिसालें पेश की हैं कि बलात्कार के मानसिक विकलांगता वाले आरोपी भी तुच्छ लगने लगे, मानो ये यह कह रहे हों कि रसूख़ वाले तो रसूख़ वाले ही होते हैं।
बलात्कारों का भी ध्रुवीकरण हुआ उनको भी वोटों के लिए और राजनीति के हथकंडों के लिए उपयोग किया जाने लगा जिसमें कोई पार्टी कमतर नहीं थी, सबने अपनी अपनी तख्तियाँ अपने अपने हिसाब से उठाईं बलात्कार तो कई हुए लेकिन तख़्तियाँ राजनीति की ही पोषक रहीं। लेकिन यँहा एक बात स्पष्ठ कर देना चाहता हूँ कि बहुत सी आवाजें और तख़्तियाँ ऐसी भी थी जिन्हें ह्रदय से पीड़ा हुई और वो इंसाफ की गुहार लगाने लगे और उन्हीं की बदौलत देश मे कुछ मामलों पर न्याय मिला या प्रोसेस में है वरना गरीब और नींव की बात इस देश मे कोई नहीं करता।
राजनीति वालों ने कभी भी बलात्कार की पीड़िता और उसके आँसू, उसका असहनीय दर्द, उसके परिवार की वेदना नहीं देखी, उन्होंने उसमे देखा तो सिर्फ हिन्दू, मुस्लिम, दलित और इसके पीछे मकसद था सत्ता! उनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ यही रही।
आज वही हो रहा है। उन्नाव में जघन्य सामूहिक बलात्कार और फिर जमानत से छूटने के बाद रसूख़ के नशे में चूर सत्ता का दुशाला ओढ़े दुर्दांत अपराधियों ने पीड़िता के ऊपर घासलेट डालकर आग लगा दी। पीड़िता एक किमी तक दौड़ती रही। धू-धू करके जलती रही। मदद की गुहार लगाती रही। लेकिन ये उत्तरप्रदेश है साहब यँहा अपराधियों की ही तूती बोलती है।
अपराध अपराध होता है और अपराधी सिर्फ अपराधी यह बात भूलकर फिर कुछ देश और समाज तोड़ने वाले लोग जो बलात्कार में हिन्दू-मुस्लिम करते हैं उनके स्वर फिर मुखर हो उठे और इन बलात्कारियों को बचाने के लिए जातिवाद का सहारा लेने लगे।
इन अपराधियों का बचाव यह कह कर किया जा रहा है की यह पूरे ब्राम्हण समाज पर हमला है। लगातार इनको बचाने सोसल मीडिया पर मुहिम चलाई जा रही है। इसे धर्म पर हमला कहा जा रहा है। किसी अव्वल दर्जे के नीच ने जो अपने आप को एस्ट्रोलॉजर कहता है उसने तो जनता से प्रश्नोत्तरी ही खेल ली -"क्या नाजायज संबंधों का आरोप लागकर जेल कराने वाली को जला कर मारना सही है?" और उससे भी घ्रणित मानसिकता देखिए साहब उच्च वर्ग के ही अधिकांस प्राणियों ने कॉमेंट में कहा कि बिल्कुल सही किया! ऐसा ही करना चाहिए! आदि आदि। इतनी दोयम दर्जे की मानसिकता का प्रदर्शन क्यों? क्या जाति विशेष होने के कारण ऐसा किया जा रहा है? या फिर देश मे एक नए तरह का जहर घोला जा रहा है? वो वरिष्ठ जन जिनकी पोस्ट पर हैदराबाद की घटना पर उनके वालपोस्ट ट्विटर पर मुस्लिम मुस्लिम करके घृणा फैलाई जा रही थी, अचानक से हिंदुओं के शामिल होने का पता चलने पर खंडन भी न कर सके। वही कौम फिर से एक बार ब्राम्हण का नाम लेकर सक्रिय हो उठी है। ब्राम्हणों ने किया मतलब सही होगा? या ब्राम्हण ऐसा नहीं कर सकते? या ब्राम्हणो के खिलाफ साजिश रची जा रही है? अरे भाई सब कुछ आपको ही निर्धारण करना है तो फिर देश का संविधान किसलिए, और अगर आपकी बात सही है तो हैदराबाद के एनकाउण्टर सही कैसे? दरअसल आप आज तक ये निर्धारण नहीं कर सके कि गलत को गलत की नजर से देखना कैसे है? यकीन मानें आप ब्राम्हणों को नहीं बचा रहे बल्कि आज तक किए गए उनके #तप को पूर्णतः ज़मीदोज़ करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हो। आप देश के जनमानस में वो नफरत भर रहे हो जिसका अंदाजा आपने सपने में नहीं सोचा। कोई ब्राम्हण सिर्फ जाति से नहीं बनता। ब्राम्हण बनता है कर्म से और इन अपराधियों के कर्म इतने ओछे हैं कि इन्हें ब्राम्हण समाज की तरफ से सामूहिक बहिष्कार और फाँसी की माँग किया जाना ही हितकर है।
वैसे भी ये देश ऊँच नीच और भेदभाव के दंश को झेल रहा है अगर इन आरोपियों को बचाया गया तो पिछड़ा वर्ग की वह पीड़िता जिसे जला कर मार दिया गया उसकी कौम आपको कैसे माफ कर पायेगी, क्यूँकि बलात्कार करने के बाद उसे जलाने के बाद भी यदि आप पाक होने का नाटक करोगे तो दुसरा वर्ग विशेष जिसने सामूहिक बलात्कार झेला और जिंदा जला देना क्या होता है अपनी आंखों से देखा उसका अस्तित्व कँहा रहेगा? और आगे भी उसके साथ क्या होगा क्या नहीं इसका जवाब कौन देगा?
सिर्फ और सिर्फ न्याय की आस में।
#उन्नाव_पीड़िता_को_न्याय_दो
©®योगेश योगी किसान
लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
फ़ोटो-साभार ( बहुत ही दुःखद)
मैं यह लेख लिखना नहीं चाहता था लेकिन वास्तविकता को छुपाना और उनके पहलुओं पर बात करना भी एक तरह का अन्याय ही है। जैसे विवेचना के दौरान यदि सही साक्ष्यों को कानून के नुमाइंदे छुपा लें या बदल दें तो पूरा केस प्रभावित होता है ठीक इसी तरह सत्य भी है। उन्नाव में जो घटना हुई उससे केवल उन्नाव ही नहीं वरन पूरा विश्व अछूता नहीं रहा। विदेशी मीडिया ने तो भारत को #रेप_कैपिटल_ऑफ_वर्ल्ड तक नाम दे डाला। बलात्कार जैसे मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए, एक बड़ी पार्टी की तरफ से ये बयान आया। शायद वो ये भूल गए कि हर वो मैटर जिस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए उस पर राजनीति, वह आपकी ही पार्टी की देन है। उत्तरप्रदेश में इसी साल अकेले 88 से अधिक बलात्कारों(रजिस्टर्ड पता नहीं कितने मुकदमे पुलिस ने न लिखे और कितनों पर सुलह कराई) ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वँहा चल क्या रहा है। अगर इसके पहले वाली सरकारों में जंगलराज था तो इसे रामराज्य कहना कँहा तक सारगर्भित है।
देश मे कई बलात्कार हुए आरोपी दो तरीके के ही रहे एक मानसिक विकलांगता वाले और दूजे रसूख़ वाले। मानसिक विकलांगता वालों ने तो यदा कदा ही व्यभिचार किया लेकिन इन रसूख़ वालों ने तो बलात्कार की परिभाषा ही बदल दी। क्रूरता की वो मिसालें पेश की हैं कि बलात्कार के मानसिक विकलांगता वाले आरोपी भी तुच्छ लगने लगे, मानो ये यह कह रहे हों कि रसूख़ वाले तो रसूख़ वाले ही होते हैं।
बलात्कारों का भी ध्रुवीकरण हुआ उनको भी वोटों के लिए और राजनीति के हथकंडों के लिए उपयोग किया जाने लगा जिसमें कोई पार्टी कमतर नहीं थी, सबने अपनी अपनी तख्तियाँ अपने अपने हिसाब से उठाईं बलात्कार तो कई हुए लेकिन तख़्तियाँ राजनीति की ही पोषक रहीं। लेकिन यँहा एक बात स्पष्ठ कर देना चाहता हूँ कि बहुत सी आवाजें और तख़्तियाँ ऐसी भी थी जिन्हें ह्रदय से पीड़ा हुई और वो इंसाफ की गुहार लगाने लगे और उन्हीं की बदौलत देश मे कुछ मामलों पर न्याय मिला या प्रोसेस में है वरना गरीब और नींव की बात इस देश मे कोई नहीं करता।
राजनीति वालों ने कभी भी बलात्कार की पीड़िता और उसके आँसू, उसका असहनीय दर्द, उसके परिवार की वेदना नहीं देखी, उन्होंने उसमे देखा तो सिर्फ हिन्दू, मुस्लिम, दलित और इसके पीछे मकसद था सत्ता! उनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ यही रही।
आज वही हो रहा है। उन्नाव में जघन्य सामूहिक बलात्कार और फिर जमानत से छूटने के बाद रसूख़ के नशे में चूर सत्ता का दुशाला ओढ़े दुर्दांत अपराधियों ने पीड़िता के ऊपर घासलेट डालकर आग लगा दी। पीड़िता एक किमी तक दौड़ती रही। धू-धू करके जलती रही। मदद की गुहार लगाती रही। लेकिन ये उत्तरप्रदेश है साहब यँहा अपराधियों की ही तूती बोलती है।
अपराध अपराध होता है और अपराधी सिर्फ अपराधी यह बात भूलकर फिर कुछ देश और समाज तोड़ने वाले लोग जो बलात्कार में हिन्दू-मुस्लिम करते हैं उनके स्वर फिर मुखर हो उठे और इन बलात्कारियों को बचाने के लिए जातिवाद का सहारा लेने लगे।
इन अपराधियों का बचाव यह कह कर किया जा रहा है की यह पूरे ब्राम्हण समाज पर हमला है। लगातार इनको बचाने सोसल मीडिया पर मुहिम चलाई जा रही है। इसे धर्म पर हमला कहा जा रहा है। किसी अव्वल दर्जे के नीच ने जो अपने आप को एस्ट्रोलॉजर कहता है उसने तो जनता से प्रश्नोत्तरी ही खेल ली -"क्या नाजायज संबंधों का आरोप लागकर जेल कराने वाली को जला कर मारना सही है?" और उससे भी घ्रणित मानसिकता देखिए साहब उच्च वर्ग के ही अधिकांस प्राणियों ने कॉमेंट में कहा कि बिल्कुल सही किया! ऐसा ही करना चाहिए! आदि आदि। इतनी दोयम दर्जे की मानसिकता का प्रदर्शन क्यों? क्या जाति विशेष होने के कारण ऐसा किया जा रहा है? या फिर देश मे एक नए तरह का जहर घोला जा रहा है? वो वरिष्ठ जन जिनकी पोस्ट पर हैदराबाद की घटना पर उनके वालपोस्ट ट्विटर पर मुस्लिम मुस्लिम करके घृणा फैलाई जा रही थी, अचानक से हिंदुओं के शामिल होने का पता चलने पर खंडन भी न कर सके। वही कौम फिर से एक बार ब्राम्हण का नाम लेकर सक्रिय हो उठी है। ब्राम्हणों ने किया मतलब सही होगा? या ब्राम्हण ऐसा नहीं कर सकते? या ब्राम्हणो के खिलाफ साजिश रची जा रही है? अरे भाई सब कुछ आपको ही निर्धारण करना है तो फिर देश का संविधान किसलिए, और अगर आपकी बात सही है तो हैदराबाद के एनकाउण्टर सही कैसे? दरअसल आप आज तक ये निर्धारण नहीं कर सके कि गलत को गलत की नजर से देखना कैसे है? यकीन मानें आप ब्राम्हणों को नहीं बचा रहे बल्कि आज तक किए गए उनके #तप को पूर्णतः ज़मीदोज़ करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हो। आप देश के जनमानस में वो नफरत भर रहे हो जिसका अंदाजा आपने सपने में नहीं सोचा। कोई ब्राम्हण सिर्फ जाति से नहीं बनता। ब्राम्हण बनता है कर्म से और इन अपराधियों के कर्म इतने ओछे हैं कि इन्हें ब्राम्हण समाज की तरफ से सामूहिक बहिष्कार और फाँसी की माँग किया जाना ही हितकर है।
वैसे भी ये देश ऊँच नीच और भेदभाव के दंश को झेल रहा है अगर इन आरोपियों को बचाया गया तो पिछड़ा वर्ग की वह पीड़िता जिसे जला कर मार दिया गया उसकी कौम आपको कैसे माफ कर पायेगी, क्यूँकि बलात्कार करने के बाद उसे जलाने के बाद भी यदि आप पाक होने का नाटक करोगे तो दुसरा वर्ग विशेष जिसने सामूहिक बलात्कार झेला और जिंदा जला देना क्या होता है अपनी आंखों से देखा उसका अस्तित्व कँहा रहेगा? और आगे भी उसके साथ क्या होगा क्या नहीं इसका जवाब कौन देगा?
सिर्फ और सिर्फ न्याय की आस में।
#उन्नाव_पीड़िता_को_न्याय_दो
©®योगेश योगी किसान
लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
फ़ोटो-साभार ( बहुत ही दुःखद)
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