मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

राम रावण

मेरी कविता #रावण का एक प्रश्न लिखने का दुस्साहस #रावण_क्यों_तुमसे_आज_जले प्रस्तुत है, आपकी प्रतिक्रिया आशिर्वाद स्वरूप आपेक्षित।

हे राम युद्ध मैं हार गया, सीता माता को छुआ नहीं।अपमान हुआ मेरा भी था, उसका बदला तक लिया नहीं।
तुमने मारा मेरे कुल को, सब सर्वनाश कर डाला था।
क्या ऐसा था अपराध मेरा, या आँखों में तेरी जाला था।

सीता कुल गौरव तेरी थीं, मैंने उनको तो छुआ नहीं।
क्यों सर्वनाश मेरा इतना, मुझसे ऐसा कुछ हुआ नहीं।
गौरव थी मेरी सूर्पनखा, जिसकी नसिका को काट दिया।
हे राम सत्यपथ के गामी, न लक्ष्मण को क्यों डाँट दिया।

गौरव तेरा  तो मेरा भी, बस इतना ही समझाना था।
मकसद बस मेरा इतना सा सीता को लेकर आया था।
हो सकती बात बैठकर भी, तुम तो ईश्वर के अवतारी।
मैं पढ़ा लिखा वेदों का था, माना था थोड़ा अभिमानी।।

मुझको मारा गलती छोटी, हो आज तलक तुम मार रहे।
रावण-रावण, रावण-रावण, कह करके सब दुत्कार रहे।
ऐसा प्रतिमान बनाया की मेरी थू-थू सारे जग में।
तुम राजा सिर्फ अयोध्या के, था राज मेरा पत,धर,नभ में।

इक काम करो हे राम सुनो, मैं माफ तुम्हें कर देता हूँ।
तुम फूंको रोज भले मुझको, मैं उसको भी सह लेता हूँ।
पर राम मेरे न चुप बैठो, जो बलात्कार लाखों होते।
महसूस करो उस नारी को, अन्याय सदा जिस पर होते।

उस बच्ची की क्या गलती थी, जो स्तनपान किया करती।
उस रावण का कुछ हुआ नहीं,क्या राम तुम्हारी थी मर्जी।
उस धर्म पुजारी को देखो, जो नाम तिहारा लेता था।
बस इसी नाम के पीछे वह, कृत्य सभी कर लेता था।

हे राम कहो अवतार तेरा, मर्दन को मेरे ही होता।
छुपे कँहा तुम रहते हो, शर धनुष कँहा तेरा होता।।
हे राम तेरी ये चुप्पी अब, सारा जग को है खूब खले।
तुम स्वयं बताओ राम मेरे, रावण क्यों तुमसे आज जले।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
मूलरूप में ही रखें
©®योगेश योगी किसान
फ़ोटो- साभार

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