हमारी #फसल साल में 2 बार आती है देश भर के तमाम प्रदूषणों से अगर किसानी के कचरे(पराली=गेंहू+धान)के प्रदूषण की तुलना की जाए तो वह मात्र 6% है।
जी हाँ सही पढ़ा आपने #छः प्रतिशत मात्र।
सारे देश मे किसानों के खिलाफ जो प्रपोगेंडा चलाया जा रहा है और उसे बिना सोचे समझे लोग किसानों को गालियाँ दे रहे हैं, उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पूरी दिल्ली तख्तियाँ लेकर घूम रही है और वो भड़वे जो अपने आप को पर्यावरणविद कहते हैं वो भी इन प्रपोगेंडा वालों के साथ मिलकर विधवा विलाप कर रहे हैं।
आखिर #किसानों का इतना विरोध क्यों?
किसान इस देश का #अन्नदाता है यह हम सब जानते हैं बस मानते नहीं क्योंकि राजनीति की धृष्टता और सरकारों की मनमानी के साथ साथ दौलत वाली शहरी चमक से हमारी आँखें चौंधिया गई हैं। सरकार और अफसरशाही मिलकर दिल्ली के आसपास की सारी जमीनों से खेती बंद करवाना चाहती है ऐसा सिर्फ और सिर्फ #भूमाफिया के प्रभाव के चलते किया जा रहा है। क्योंकि सीना तान कर जो गगनचुम्बी इमारतें खड़ी की जा रही हैं वह कोई अंतरिक्ष मे नहीं खड़ी होनी वह खड़ी होनी है किसान के खेत पर और जब खेत बिकेगा ऐसा तभी सम्भव होगा।
और इस असम्भव से काम को संभव बनाने का सबसे अच्छा तरीका है , भूमाफिया+मीडिया+सरकार+अफसरशाही, भूमाफिया पूरा ब्लू प्रिंट तैयार करती है, दलाल #मीडिया इस प्लान को लोगों तक पहुँचाती है और सरकार उस ब्लू प्रिंट के हिसाब से नियम कानून बनाती है और जब इन थोपे गए नियम कानून को किसान सिरे से नकराते हैं तब अफसरशाही सामने आती है उन्हें हर तरीके से निपटाने के लिए।
कुल मिलाकर किसानों के खिलाफ एक ऐसा षड्यंत्र चल रहा है जिसकी कल्पना करना सबके बस की बात नहीं।
जाहिर है आप सोचते होंगे ऐसा नहीं और ऐसा सरकार क्यों करेगी उसे तो लोगों की सेहत का ख्याल है इसलिए जनहित में इतनी परेशान है।
यकीन मानिए अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आपकी सोच को जंग लग चुकी है।
किसी ने कहा था आदमी से सबकुछ छीनकर इतना मजबूर कर दो की साँस लेने मात्र को ही ज़िन्दगी समझने लगे और उसी को अहसान माने, बस यही तो ब्लू प्रिंट है जिस पर बड़ी तेजी से काम चल रहा है।
संगठित लूट इसे ही कहते हैं इस बात को आप उदाहरण से समझिए, कोई किसान फसल लेकर मंडी गया वँहा पर व्यपारियों का एक समूह जो फसल की खरीदी बोली लगाता है। वह किसान की फसल जिसका मूल्य 5000प्रति क्विंटल है को बोली संगठित रूपसे 3500से स्टार्ट करता है और 4000पर आकर खत्म कर देता है और किसान मजबूरी में फसल दे देता है।
लेकिन इसमे लुटता कौन है किसान।
बस कुछ इसी तरह का काम सरकार कर रही है, संगठित रूप से दलालों के साथ मिलकर किसानों को चारों तरफ से इतना मजबूर कर देगी, किसान सरकार से खुद कहेगा कि अब किसानी बस में नहीं जीवन यापन का कुछ प्रबन्ध कर दो।
फिर क्या जिसका इंतेज़ार खत्म, सारी जमीने सरकार उद्योगपतियों को सौंप देगी जिनकी फैक्टरियाँ सरकार के हिसाब से शुद्ध ऑक्सीजन देती हैं और इको फ्रेंडली है ।
औऱ ये जनता सरकार से पूंछने की जगह किसानों को दोष देती है।
मेरा भी एक प्रश्न है आज किसानों का विरोध वालों से? जब किसानों की फसल जल जाती है और किसान फाँसी लगा लेता है, तब क्या तुमने यही तख्तियाँ सरकार के खिलाफ कितनी बार उठाईं, कितनी बार कहा कि किसानों को न्याय दो, नहीं न! बस इसी हरकत और इसी घटिया सोच को शास्त्रों में हरामीपन की पराकाष्ठा कहा गया है।
फिक्र है जन की फसल को बो रहा हूँ मैं।
हर बार घाटा देख करके रो रहा हूँ मैं।
तूम भला क्या दर्द जानो मेरी मेहनत का,
देखकर हालात आपा खो रहा हूँ मैं।
©®
योगेश योगी किसान
फ़ोटो- 94% प्रदूषण(शहर) v/s 6% प्रदूषण(गाँव)
जी हाँ सही पढ़ा आपने #छः प्रतिशत मात्र।
सारे देश मे किसानों के खिलाफ जो प्रपोगेंडा चलाया जा रहा है और उसे बिना सोचे समझे लोग किसानों को गालियाँ दे रहे हैं, उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पूरी दिल्ली तख्तियाँ लेकर घूम रही है और वो भड़वे जो अपने आप को पर्यावरणविद कहते हैं वो भी इन प्रपोगेंडा वालों के साथ मिलकर विधवा विलाप कर रहे हैं।
आखिर #किसानों का इतना विरोध क्यों?
किसान इस देश का #अन्नदाता है यह हम सब जानते हैं बस मानते नहीं क्योंकि राजनीति की धृष्टता और सरकारों की मनमानी के साथ साथ दौलत वाली शहरी चमक से हमारी आँखें चौंधिया गई हैं। सरकार और अफसरशाही मिलकर दिल्ली के आसपास की सारी जमीनों से खेती बंद करवाना चाहती है ऐसा सिर्फ और सिर्फ #भूमाफिया के प्रभाव के चलते किया जा रहा है। क्योंकि सीना तान कर जो गगनचुम्बी इमारतें खड़ी की जा रही हैं वह कोई अंतरिक्ष मे नहीं खड़ी होनी वह खड़ी होनी है किसान के खेत पर और जब खेत बिकेगा ऐसा तभी सम्भव होगा।
और इस असम्भव से काम को संभव बनाने का सबसे अच्छा तरीका है , भूमाफिया+मीडिया+सरकार+अफसरशाही, भूमाफिया पूरा ब्लू प्रिंट तैयार करती है, दलाल #मीडिया इस प्लान को लोगों तक पहुँचाती है और सरकार उस ब्लू प्रिंट के हिसाब से नियम कानून बनाती है और जब इन थोपे गए नियम कानून को किसान सिरे से नकराते हैं तब अफसरशाही सामने आती है उन्हें हर तरीके से निपटाने के लिए।
कुल मिलाकर किसानों के खिलाफ एक ऐसा षड्यंत्र चल रहा है जिसकी कल्पना करना सबके बस की बात नहीं।
जाहिर है आप सोचते होंगे ऐसा नहीं और ऐसा सरकार क्यों करेगी उसे तो लोगों की सेहत का ख्याल है इसलिए जनहित में इतनी परेशान है।
यकीन मानिए अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आपकी सोच को जंग लग चुकी है।
किसी ने कहा था आदमी से सबकुछ छीनकर इतना मजबूर कर दो की साँस लेने मात्र को ही ज़िन्दगी समझने लगे और उसी को अहसान माने, बस यही तो ब्लू प्रिंट है जिस पर बड़ी तेजी से काम चल रहा है।
संगठित लूट इसे ही कहते हैं इस बात को आप उदाहरण से समझिए, कोई किसान फसल लेकर मंडी गया वँहा पर व्यपारियों का एक समूह जो फसल की खरीदी बोली लगाता है। वह किसान की फसल जिसका मूल्य 5000प्रति क्विंटल है को बोली संगठित रूपसे 3500से स्टार्ट करता है और 4000पर आकर खत्म कर देता है और किसान मजबूरी में फसल दे देता है।
लेकिन इसमे लुटता कौन है किसान।
बस कुछ इसी तरह का काम सरकार कर रही है, संगठित रूप से दलालों के साथ मिलकर किसानों को चारों तरफ से इतना मजबूर कर देगी, किसान सरकार से खुद कहेगा कि अब किसानी बस में नहीं जीवन यापन का कुछ प्रबन्ध कर दो।
फिर क्या जिसका इंतेज़ार खत्म, सारी जमीने सरकार उद्योगपतियों को सौंप देगी जिनकी फैक्टरियाँ सरकार के हिसाब से शुद्ध ऑक्सीजन देती हैं और इको फ्रेंडली है ।
औऱ ये जनता सरकार से पूंछने की जगह किसानों को दोष देती है।
मेरा भी एक प्रश्न है आज किसानों का विरोध वालों से? जब किसानों की फसल जल जाती है और किसान फाँसी लगा लेता है, तब क्या तुमने यही तख्तियाँ सरकार के खिलाफ कितनी बार उठाईं, कितनी बार कहा कि किसानों को न्याय दो, नहीं न! बस इसी हरकत और इसी घटिया सोच को शास्त्रों में हरामीपन की पराकाष्ठा कहा गया है।
फिक्र है जन की फसल को बो रहा हूँ मैं।
हर बार घाटा देख करके रो रहा हूँ मैं।
तूम भला क्या दर्द जानो मेरी मेहनत का,
देखकर हालात आपा खो रहा हूँ मैं।
©®
योगेश योगी किसान
फ़ोटो- 94% प्रदूषण(शहर) v/s 6% प्रदूषण(गाँव)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें