।। अपराधियों की फैक्टरी है हमारा कानून।।
जी हाँ आप सोचेंगे कैसे लेकिन यही अकाट्य सत्य है। कानून कि खामियों और उसके लचीलेपन का फायदा उठाकर अपराधी साफ साफ बच निकलते हैं वही पीड़ित परिवार या व्यक्ति अपना सा मुँह लेकर दर दर की ठोकरें खाता रहता है और बदले में उसे मिलती है तारीख़ पे तारीख़ और अंत में फिर एक हार, यह क्रम जीवन पर्यन्त चलता रहता है। कहानी यहीं से शुरू होती है अब अपराधी तो खुला घूमता है और पीड़ित घुट घुट कर, मालुम सब को है कुर्सी मे बैठे जज से लेकर देश कि आवाम तक को लेकिन सब मजबूर हैं जज के हाथ कानून से बँधे हैं और आवाम के हाथ कानून ने बाँध रखे हैं। अब अगर खिन्नता मे कोई पीडित उस अपराधी को मार दे तो वह अपराधी हो गया भले ही पीडित या समाज कि नजर में यह बदला हो या सही हो।
आखिर देश का कानून कब तक ग़रीबों के गले की हड्डी बना रहेगा, देश का कानून सख्त कब होगा और कौन करेगा, यदि आंदोलन करो तो देशद्रोह अपना हक माँगो तो कुचलने को कानून खडा है ,वाह, फिर यही तत्परता अपराध रोकने में क्यों नहीं, कभी कभी तो लगता है कि आजादी एक छलावा मात्र है, अंग्रेज ज्यादा सही थे उनके शासनकाल में प्रगति ज्यादा थी, उनके अत्याचारों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है मेरा ऐसा मानना है।
केरल के बहुचर्चित सौम्या दुष्कर्म एवं हत्याकांड में सबूत के अभाव में कोर्ट ने अपराधी को महज सात वर्ष कि सजा दी है जबकि उसे फाँसी होनी चाहिए, कानून का मानना है कि अपराधी ने ऐसा किया है लेकिन सबूत नहीं होने के कारण उसे दुष्कर्म का ही दोषी माना जाएगा।
वाह रे कानून ।
मेरा मानना है कि देश में न तो विकाश कि जरूरत है न ही किसी अन्य की अगर कानून को रिअसेंबल करके सख्त कर दिया जाए तो देश को महान बनाने कि जरूरत नहीं रहेगी खुद बखुद महान बन जाएगा।
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जी हाँ आप सोचेंगे कैसे लेकिन यही अकाट्य सत्य है। कानून कि खामियों और उसके लचीलेपन का फायदा उठाकर अपराधी साफ साफ बच निकलते हैं वही पीड़ित परिवार या व्यक्ति अपना सा मुँह लेकर दर दर की ठोकरें खाता रहता है और बदले में उसे मिलती है तारीख़ पे तारीख़ और अंत में फिर एक हार, यह क्रम जीवन पर्यन्त चलता रहता है। कहानी यहीं से शुरू होती है अब अपराधी तो खुला घूमता है और पीड़ित घुट घुट कर, मालुम सब को है कुर्सी मे बैठे जज से लेकर देश कि आवाम तक को लेकिन सब मजबूर हैं जज के हाथ कानून से बँधे हैं और आवाम के हाथ कानून ने बाँध रखे हैं। अब अगर खिन्नता मे कोई पीडित उस अपराधी को मार दे तो वह अपराधी हो गया भले ही पीडित या समाज कि नजर में यह बदला हो या सही हो।
आखिर देश का कानून कब तक ग़रीबों के गले की हड्डी बना रहेगा, देश का कानून सख्त कब होगा और कौन करेगा, यदि आंदोलन करो तो देशद्रोह अपना हक माँगो तो कुचलने को कानून खडा है ,वाह, फिर यही तत्परता अपराध रोकने में क्यों नहीं, कभी कभी तो लगता है कि आजादी एक छलावा मात्र है, अंग्रेज ज्यादा सही थे उनके शासनकाल में प्रगति ज्यादा थी, उनके अत्याचारों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है मेरा ऐसा मानना है।
केरल के बहुचर्चित सौम्या दुष्कर्म एवं हत्याकांड में सबूत के अभाव में कोर्ट ने अपराधी को महज सात वर्ष कि सजा दी है जबकि उसे फाँसी होनी चाहिए, कानून का मानना है कि अपराधी ने ऐसा किया है लेकिन सबूत नहीं होने के कारण उसे दुष्कर्म का ही दोषी माना जाएगा।
वाह रे कानून ।
मेरा मानना है कि देश में न तो विकाश कि जरूरत है न ही किसी अन्य की अगर कानून को रिअसेंबल करके सख्त कर दिया जाए तो देश को महान बनाने कि जरूरत नहीं रहेगी खुद बखुद महान बन जाएगा।
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