गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

देश की बुनियादी समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराती और मृतक बच्चों को श्रद्धांजलि देती रचना-

बुनियादी सुविधाएं चाहिए मेरे हिंदुस्तान में,
ऐश अमीरी जिनको प्यारी जाएं पाकिस्तान में,
फिर मासूमों ने बलि दी है जिनको कुछ भी पता नहीं,
देश की घटिया राजनीति को फिर भी कोई खता नहीं,
कितने फाटक खुले पड़े हैं उनमें कोई रोक नहीं,
आने जाने वालों की क्यों उनमें कोई टोक नहीं,
बजट नही क्या इतना भी की फाटक कोई लग जाये,
बुलेट ट्रेन से नीचे सोचो तो दुर्घटना टल जाए,
नही जरूरत बुलट ट्रेन की नही चाँद में जाने की,
इंसानो को सिर्फ जरूरत बेसिक चीजें पाने की,
राजनीति की होड़ में तुम भी देश बनाना भूल गए,
जिन सपनो को सींचा हमने वो सारे ही शूल भए,
कभी ख़तम होती ऑक्सिजन कभी दवाई न मिलती,
फिर भी बाँछे खिली तुम्हारी कुर्सी तक है न हिलती,
क्योंकि तुमको मतलब न है जन मानस की पीड़ा से,
उनकी तुलना शायद करते तुछ नाली के कीड़ा से,
राजनीति में जनता के दुख दर्दों से तुम प्यार करो,
जैसा जिम्मा तुमको सौंपा वैसा तो अब काम करो,

सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी


मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

दलित के नाम पर थाली का ऐसे भोज न खाओ,
हकीकत जानते सब हैं न ऐसे ढंग दिखलाओ,
नही सुविधाएं घर पर हैं किराए का समां देखो,
जरा बेवकूफियों से तुम नेताओं खार तो खाओ,
कभी हालात न सुधरे तुम्हारे भोज खाने से,
वतन तो खा रहे हो सब हमारा चैन न खाओ,
कभी जो सोचते हमको दलित सा नाम न होता,
हमें सोचो ह्रदय से और रोटी बेटी अपनाओ,
नही कर सकते हो ऐसा तो कैसे उन्नति आये,
बने हैं वोट के ही बैंक जरा ये सच तो बतलाओ,

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योगेश योगी

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

सुन लो नेताओं तुम्हारी औकात सिर्फ तुम्हारे लिए अर्ज किया है,और उनके लिए भी जो किसान को आतंकी नक्सली और हिंसक कहते हैं-

दर्द कभी न समझ सकोगे भूमिपुत्र किसानों के,
पैदाइश हो लगता मुझको सच मे तुम हैवानों के,
तुम क्या जानो कभी खेत मे कैसे क्या क्या होता है,
कतरा कतरा उसके खूँ का कँहा समाहित होता है,
तुमने समझा वोट बैंक है जिसका काम किसानी है,
उनके हक को न देते यह सीधी सी बेईमानी है,
कभी उतरकर देखो थल पर ठंडी की उन रातों में,
या फिर धान की पौध लगाते कीचड़ के बरसातों में,
घुटने तक जब गड़कर भू में थोड़ा समय बिताओगे,
शायद उसके दर्द को काफिर महसूस कर पाओगे,
कमर लचक कर *निहुरे-निहुरे दिनभर करे निदाई है,
उसकी हालत उसकी पीड़ा कहती फटी बिमाई है,
सर पर रखकर बोझा उसने फसल दुपहरी में ढोई
उसकी किस्मत उसके दर्दों पर व्याकुल होकर रोई,
लिए दराती हाथ पकड़कर खेत काटता दिनभर है,
उसकी पीड़ा पर ऊपर से *लेत परीक्षा दिनकर है,
कोल्हू के हाँ कोल्हू के बैल के जैसा पिसता है,
सत्ता के हाँ सत्ता के दल्लों तुम्हे न दिखता है,
जिस किसान का जीवन सारा देश बनाने में गुजरा,
उसके हक पर चढ़कर तुमने नित्य जमाया है मुजरा,
तुमने उस ईश्वर का रुतवा पैरों तले है कुचल दिया,
उसके हक को सत्ता की कुर्सी की खतिर कुचल दिया,
उसकी फसल का पैमाना क्या कभी नही तुम चाहोगे,
कब तक तलवे उद्योगों के पतियों के तुम चाटोगे,
एक छोटी सी सुई की कीमत तय करते वो कैसे हैं,
हमने देश का पेट भरा है हम जैसे के तैसे हैं,
क्या हमको अधिकार नही है लागत को तय करने का,
इतना भी क्या हक न दोगे ,हक देदो फिर मरने का,
#बलात्कार मेरी फसलों का मंडी पर नित होता है,
मेरे लिए ये मेरा भारत खड़ा कभी न होता है,
ऐसा चलता रहा तो सुन लो फिर हथियार उठायेंगे,
जो जो हक में न बोलेगें, सर उनके काटे जाएंगे,

बघेली शब्द-
*निहुरे-निहुरे =कमर के बल झुकना,झुक जाना
*लेत- लेना
छायाचित्र-साभार

योगेश मणि 'योगी'
©®कॉपीरायट
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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

#बेटियों के चीरहरण पर दुष्सासनों से सवाल करती और बेटियों को श्रद्धांजली देती मेरी रचना-

चीखों में जब बेटी की किलकारी का दम घुट जाए,
हैवानों के आगे जब जब नारी बेवस हो जाए,
तब तब भारत प्रश्न पूँछता सत्ता के अय्याशों से,
राजनीति की देश विरोधी टेढ़ी मेढ़ी चालों से,
क्यों बेटी की अस्मत लूटी जाती है दरबारों में,
मंदिर मस्जिद स्कूलों और भीड़ भरे बाजारों में,
जब सत्ता भी हामी भरकर सबको धता बताती हो,
बेटी की अस्मत ही जब घर इनके लूटी जाती हो,
भारत का उत्थान करोगे कैसे हमें बताओ जी,
कोठे बंगले में चीखें हैं उनसे खार तो खाओ जी,
धर्म और भारत के रक्षक तुमको कैसे मानें हम,
नारी के ऊपर हमला हो चुप्पी कैसे साधें हम,
नारी कोई वस्तु नही है जब जी चाहे भोग करो,
हिम्मत है तो एक बार, खुद की बेटी से योग करो,
नामर्दों की भीड़ जुटा के भगवा राष्ट्र बनाओगे,
विश्व गुरु के सपने देकर ऐसे कृत्य कराओगे,
तुमसे अच्छी नगर वधू है तन का सौदा करती है,
घर के अंदर पेट की खातिर चाहे जो भी करती है,
तुमने तो सपने दिखलाकर के हरकत ओछी करते हो,
किस मुँह से फिर वंदे वंदे भारत की जय कहते हो,
जिस मुद्दे में देश जलेगा कोर्ट भी उस पर बोलेगा,
यस सी,यस टी/तीन तलाक की ही फ़ाइल खोलेगा,
आँखों से पट्टी खोलो और इनपर भी संज्ञान करो,
न्यायपालिका की आत्मा को न ऐसे नीलम करो,
सत्ता सुनले कान खोल गर इज़्ज़त लुटती जाएगी,
बेटी पैदा कौन करेगा कोख में मारी जाएगी,



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©®योगेश मणि योगी
१३०४२०१८
#जम्मू_कठुआ अबोध बालिका #आसिफा पर बदले की भावना से की गई वहशी क्रूरता पर बालिका को श्रद्धांजलि अर्पित करते मेरे विचार-

यह मेरे भारत की विचारधारा नही हो सकती,हिन्दू धर्म कभी बदला नही लेता वह सहिष्णु है वह मानव धर्म का पालन करने वाला है, लेकिन अब क्या??
धर्म के ठेकदरों ने धर्म को तहस नहस कर दिया, कँही यह तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा धर्म और ईश्वर के अस्तित्व को निस्तोनाबूत करने की साज़िश तो नहीं।
रावण को हर साल मात्र इसलिए जलाया जाता है कि उसने माता सीता का मात्र अपहरण किया था?
इन रावणों का क्या माफ करियेगा इनको रावण कहना उचित नही ,इन दुष्ट, पापी,कलंकी,नीच,अधर्मी, जो धर्म की आड़ में भगवे की आड़ में ऐसे कुकृत्य को कर रहे हैं ,क्या कोई राम है जो इन भेड़ियों का मर्दन करेगा?
और उन लोगों का क्या होगा जो इन पापियों को बचाने के लिए आगे आएंगे,क्या उनकी बेटी के साथ इतनी ही दरिंदगी के साथ 7 लोगों ने यह अनाचार किया होता तो वह न्याय न माँगते?
हे राम यह तुम्हारे होने पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देगा? अगर ऐसा ही चलता रहा??दुनिया अट्टाहास करेगी कि देखो देखो एक छोटी सी भूल की सजा रावण को देने वाले, अपने आप को मर्यादा पुरुषोत्तम कहने वाले राम ने इन दुष्टों पर अपना वज्रपात क्यों नही किया?


लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश योगी

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

दो कौड़ी के #मुसलमान_बाबर_कादरी को #हिंदुस्तान_मुर्दाबाद बोलने पर उसको हजारों जूते मारती और औकात बताती
मेरी रचना-



सुन ले बाबर कान खोलकर नारे गलत लगाएगा,
जूते चप्पल बहुत हुए चौराहे पर टाँगा जाएगा,
तेरी इतनी जुर्रत कैसे नमक हरामी करता है,
खाता पीता इसी देश का पाक परस्ती करता है,
मुर्दाबाद बोलकर तूने भारत का अपमान किया,
कैसे सुनने वालों तुमने सुनकर कड़वा घूँट पिया,
मुझे शर्म आती है भड़वे अब तक कैसे ज़िंदा है,
तेरे पक्ष में जो बोलेगा वो भी तेरा वाशिंदा है,
तुझको मारेंगे हम सुनले अगर नजर आ जायेगा,
जो बोलेगा तेरी भाषा वो संग कुचला जाएगा,
तुझ जैसे नाजायज भड़वे भारत मे क्यों रहते हैं,
गोली मारो कुत्तों को जो उल्टा सीधा कहते हैं,
इनका वतन साफ दिखता है पाकिस्तानी भाषा है,
इन जैसों की बोटी बोटी मोदी तुमसे आशा है,
कँहा गए हो राष्ट्रवादियों छूप कर क्यों अब बैठे हो,
या फिर खाली हवा हवाई बातों पर ही ऐठे हो,
देश बंद बस राजनीति के कारण ही क्या होता है,
ऐसी बहकी बातों पर क्यों खून गरम न होता है,
घर मे इसके घुस जाने का आंदोलन हो जाने दो,
या फिर अपना भगवा छोड़ो कालिख यूँ पुत जाने दो,


भारत माता की जय
इंकलाब जिंदाबाद
जय जवान जय किसान

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रचनाकार
©® योगेश मणि योगी
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ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...