मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

देशभक्त लुटेरे - नई कविता

देशभक्त लुटेरे हैं हम??

आपदा हो प्रलय हो कँही भी चीत्कार हो,
लूट करने वाले लुटेरों की जय जय कार हो,

लूटने का मौका कोई भी हो नहीं छोड़ते,
देखा है मैंने उत्तराखंड के प्रलय में,
रेत में दबी हुई इंसानी लाशों को,
नहीं नहीं इंसान नहीं थे वो,
पर दिख तो रहे थे इंसानों से, भले मुर्दे थे!
पर वो मुर्दे थे? या उन मुर्दों से लूटने वाले??
जेवर, अँगूठी, हार, पायल, मंगलसूत्र,
छीनने वाले वो हाथ तय नहीं कर पाया?
असली मुर्दा कौन था? वो या देशभक्त??
हमारी देखभक्ति बहुत उफान मारती है!
तिरंगा देखकर उस पर जान वारती है।।
पर क्या हो जाता है धन दौलत देखकर?
कँहा किस कोने में दफन हो जाती है!
देशभक्ति हमारी!! ज्यादा पाने की लालच में,
संसोधन क्यों हो जाता है देशभक्ति की इबारत में,
इंसान को इंसान क्यों नहीं दिखता?
आखिर क्यों हैवान हो जाते हैं सोचा है?
गीता में पढ़ा क्या लेके आए क्या लेके जाएंगे!
फिर क्यों आपदा में लूटपाट से नहीं चूकते,
कभी सोचा है आईने में देखो इंसान हो,
आइना जवाब देगा वाकई शैतान हो,
शैतान मात्र राक्षस नहीं, उनके नाम नहीं,
हर चेहरे के पीछे छुपा है एक राक्षस,
कोरोना के कहर में भागदौड़ मची,
लोग पैदल ही निकल पड़े अपने घर,
कुछ लूटेरे ताक में बैठे थे लूटने,
मारकर अपने अंदर की देशभक्ति,
छुपाकर अपनी देशभक्ति वाली पहचान,
मारकर अपने अंदर का भारतीय इंसान,
एक मजदूर मजबूर पति पत्नी बच्चे को,
जंगल मे मारकर टाँग दिया लुटेरों ने,
छीन ली उसकी दौलत और ज़िन्दगी,
जिसकी कोई कीमत नहीं थी।
यहीँ नहीं हर व्यापारी मसगूल है,
ताक पर रखे अपने उसूल हैं,
हालांकि लूटते आये ये हमेशा हैं,
पर आजकल की लूट अलग है,
व्यापारी दम्भ भरते हैं देशभक्ति का,
करते हैं दान देश को दिखावे का,
खाल ओढ़कर शेर वाली गीदड़ों से काम,
उस दान की उसूली करते हैं देशवासियों से,
लूटते हैं धन दौलत यँहा के निवासियों से,
मौका मौका मौका  अंदर से आवाज आई,
कोरोना जैसी महामारी इन्हें मौका लाई,
10 का सामान 20 में, 50 का 100 में,
देशभक्त जो ठहरे देशभक्ति दिखा रहे हैं,
कँही मास्क कँही सेनेटाइजर में कमा रहे हैं,
दाल चावल तेल साबुन सब मे बढ़ोत्तरी है,
ये देशभक्ति का सबूत है देश पर चढ़ोत्तरी है,
लूट?? आखिर किसे लूटते हैं सोचता हूँ,
कौन किसे कैसे यँहा नोचता है सोचता हूँ,
ये लुटेरे अफगानी हैं, अँगरेज हैं, पुर्तगाली हैं,
लुटेरे मुगल हैं, तुगल हैं, या हिंदुस्तानी हैं??
सोचता हूँ ये विदेशी हैं! या स्वदेशी हैं! कौन हैं?
सोने की चिड़िया को लूटने वाले ये कौन हैं??
किसान मजदूर लुट रहा है,
देशभक्तों को कँहा दिख रहा है?
लूटेरे हमेशा विदेशी रहते थे इतिहासों में,
पढ़ते आये हैं हम इतिहास की किताबों में,
ये लूटेरे कँहा के हैं?
ये लुटेरे कँहा के हैं??

©®योगेश योगी किसान
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