शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

अगर आपको लगा हो की इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटनाओं पर मेरी कलम ने आपके #क्रोध और #प्रश्नों को उठाया है  तो इतना #शेयर करें कि अपराधियों के पितामहों तक बात पहुँचे।


इंसानियत का हश्र क्यों है, क्यों बुरे हालात हैं?
शासकों से पूँछता हूँ, कुछ मेरे सवालात हैं?
बैठे हो क्यों कुर्सियों पर, मौन यूँ धारण किये,
घूमते क्यों कुकुरमुत्ते,जिनकी जगह हवालात है,
बेटियों की अस्मिता पर, बादल घनेरे छा गए,
जिनको जिम्मा सौंपा,वो भी नोचने को आ गए,
डर नहीं न खौफ़ मन में, बढ़ रहे अपराध हैं,
क्यों अचानक देश मे, पैदा हुए ये साँप हैं,
दूध आँचल से लगाकर, पी रही अनजान थी,
देश दुनिया से अभी वो, लाड़ली नादान थी,
क्यों नहीं है हक उसे, वह क्यों नहीं महफूज है,
इंसा हो या जानवर हो, क्यों घृणित ये रूप है,
हवश के ऐसे दरिंदों को, खुला क्यों छोड़ते,
राजनीतीक मुद्दों से, उनको भला क्यों जोड़ते,
ऐसे वहसी की भला क्यों धर्म से पहचान हो,
इतने टुकड़े कर भी दो न बोटियों में जान हो,
क्यों नहीं कानून का भय, देश की अवाम को,
आँखें क्यों अन्धी हुईं,न देखते इंसान को,
कुर्सियाँ सरकारों की अपराधियों से भर रहीं,
हुक्मरां कानून में संसोधने न कर रही,
राजनीतिक यरियाँ अपराधियों संग जारी हैं,
इसलिए अपराध होते देश पर जो भारी हैं,
मोमबत्ती की जगह तलवारों से तुम लैश हो,
गर्दनें कर दो अलग कठघरे में न बहस हो,
अब वंही हों फैसले जैसे जँहा अपराध हो,
खून से अपराधियों के इक नया इंकलाब हो,

#मंदसौर_शरद
सर्वाधिकार सुरक्षित
©®योगेश मणि योगी 'किसान'
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ब्लॉग-yogeshmanisinghlodhi.blogspot.in
हो सकता है आपको यह देखकर आश्चर्य लगे ,कुछ लोगों को यह राजनीति से प्रेरित भी लग सकता है,और कुछ विशेष लोगों को यह नौटंकी लग सकती है,अगर अतिविशेष लोगों की हम बात करें तो उन्हें यह माओवादी नक्सली या वामपंथी भी लग सकते हैं,खैर सोचने की क्षमता आदमी के लालन पालन पर निर्भर करती है,
आखिर क्या कारण है कि किसान की कोई सुनने वाला नहीं हैं ये किसान सिवनी के ज्ञान सिंह और उसका साथी जो आज दिल्ली तक ये बताने पहुँच गए कि उनका कसूर क्या है?
कसूर?
सच में कसूर क्या है ?
क्या किसानों का यह कसूर है कि वह दिन रात मेहनत करके अनाज उत्पादित करता है?
या फिर कसूर यह है कि वह देश के लोगो के मानसिक पटल से निष्कासित व्यक्ति है जिसकी बात कोई नहीं करना चाहता?
या उसका कसूर यह है कि उसे हाथों में गैती फावड़ा,कुल्हाड़ी,दराती थामना चलाना आता तो है लेकिन उसे लोकतंत्र पर अटूट विश्वाश है?
या फिर उसका कसूर यह है कि वह हर बार खेती में घाटा खाने पर भी उसे माता की भाँति सीने से लगाये घूम रहा है?
या उसका कसूर यह है कि वह उद्योगपतियों के इस देश मे सिर्फ अनाज उगाने वाली फैक्ट्री है?
या उसका कसूर यह है कि वह थका हारा लाचार वेवश होने के वावजूद सिर्फ हाथ जोड़े खड़ा है?
भारत देश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है ,ऐसा हम बचपन से सुनते पढते आये हैं लेकिन यँहा की अर्थव्यवस्था में कब्जा हमेशा से पूंजीपतियों उद्योपातियों और राजनेताओं का रहा है, सही मायने में अगर हम यह कहें कि भारत आज़ाद है तो यह एक छलावा होगा ,धोखा होगा एक द्वैज क्षद्म होगा क्योंकि चंद लोगों का विकास और असंख्य का विनास यह पूंजीवादी व्यवस्था की देन है।
आज भी देश का संविधान यह कहता है कि सबका और सबके लिए लेकिन बात उल्टी प्रतीत जान पड़ती है सबका देश कुछ विशेष लोगों के लिए।
आज किसानों की जरुरतों और उनकी हालत से संबंधित बातों  को न कोई कारण चाहता है न सुनना चाहता है।
यदि हम देश के विकास की बात करें तो किसानों का खून पसीना उसके लिए शामिल है लेकिन उसके हक की बात उस व्यवस्था और उस विकास में दूर दूर तक शामिल नहीं है।
यह ठीक उसी प्रकार से है जिस तरह से अंग्रेजों के जुल्मों से तंग आकर लोगों ने आज़ादी का बिगुल फूँक दिया। इसमें कोई दोराय नहीं की आज़ादी अभी भी अधूरी ही है, बस देर है तो बिगुल की । इतिहास साक्षी है कि क्रांति का जन्म अन्याय से ही होता है,बस देर है तो क्रांति की स्वर्णिम इबारत को लिखने वाले योद्धाओं की जो किसानों को अपने मतलब के लिए नहीं उनके हकों और अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार करें तभी इस देश का विकास और उन्नति संभव है।

योगेश योगी किसान
©®लेख सर्वाधिकार सुरक्षित

बुधवार, 19 सितंबर 2018

भारतीय सैनिक की फिर से पाकिस्तानी सेना द्वारा आँख निकाल कर गला काटने और टाँग काटने जैसे बीभत्स कृत्य की निंदा करती और सत्ता से सवाल करती मेरी रचना-


भारत की खुद्दारी को साँप सूँघ क्यों जाता है,
सीमा की परपाटी पर क्यों सैनिक मारा जाता है,
पीठ के पीछे से लगती है  दिल्ली तेरी गोली भी,
एक के बदले दस सिर लाते कँहा गई वह बोली जी,
सैनिक न गाजर मूली है सत्ता क्यों फिर समझ रही,
केसर की क्यारी क्यों नित ही खुनों से है दहक रही,
आग लगा दो 56 इंची सीने में जज्बात नहीं,
गीदड़ के आगे शेरों की जब कोई औकात नहीं,
सत्ता  को कुर्सी से मतलब सैनिक और किसान मरे,
दो कौड़ी के राजनीति पर कैसे कोई गर्व करे,
राजनीति कोठे पर बैठी सत्ता का मुजरा देखे,
मंचों से फिर चीखचीख़ कर जुमलों की बातें फेंके,
कभी चीन को कभी पाक को जाकर गले लगाते हो,
कैसे देश के रक्षक हो और कैसा धरम निभाते हो,
रोज रोज की चिकचिक छोड़ों एक बार आह्वान करो,
पाकिस्तानी कुत्तों का अब तो  अतिसंधान करो,


©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...