जिन जवानों के लहू से रक्तरंजित हो धरा।
वो धरा एहसान उनका न चुका पाए कभी।।
ढूंढते थे दुश्मनों को सरहदों के पार हम।
अब मिले हैं वतन में ही दर्द किससे क्या कहें।।
एक के बदले दस सिर वाले जुमले अब बकवास हुए।
जिनके सर लाना था उनको उनके ही वो खास हुए।।
किसी ने बेटा किसी ने भाई किसी ने पति को खोया था।
उस दिन देश का बच्चा बच्चा खून के आँसू रोया था।।
कुछ हैवानों ने ताबूतों को वोटों में बदल दिया।
और शहीदों की थाती को हँसते हँसते निगल लिया।।
गर किसान के बेटे सोचो सीमा पर न जायेंगे।
क्या नेता व्यापारी मरने अपने पूत ले जाएंगे।।
आखिर कब तक गद्दी खातिर ये जवान किसान मरें।
सत्ताओं को जिम्मा है पर घटिया सबसे काम करें।।
सच लिखने की हिम्मत मुझमें भले रासुका लग जाये।
कलम मेरी अधिकार लिखेगी सीने गोली चल जाये।।
पुलवामा में शहीद सभी 40 जवानों के चरणों मे शत शत नमन, हमले की ईमान वाली न्यायिक जाँच की आस में, साथ ही पैरामिलिट्री को मुँह से शहीद का दर्जा नहीं कागज में भी शहीद का दर्जा मिले।
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हम ही किसान हैं।
हम ही जवान हैं।।
©®योगेश योगी किसान
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