शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

सुने ले सत्ता कान खोलकर तुझे चेताने आये हैं

 

धरती पुत्र के दिल की पीड़ा तुझे दिखाने आए हैं।
सुन ले सत्ता कान खोलकर, तुझे चेताने आए हैं।।

कितने किस्से बोलो कह दें, सत्ता की नाकामी के।
सत्ता जाकर गोदी बैठी, अडानी अंबानी के।।
तीन कानूनों को तेरे हम, नहीं मानने वाले हैं।
हमने जग का पेट भरा है, सुन ले हिम्मतवाले हैं।।
कुम्भकर्ण सी निद्रा से हम तुझे जगाने आये हैं।
      सुन ले सत्ता कान.....

आज सड़क से अन्न का दाता, हक तुझसे है माँग रहा।
शर्म न आती इन पर कैनन, और बंदूकें तान रहा।।
गड्ढे ,फेंसिंग, और कंटीली, तारों को बुनवाया है।
बाप की हत्या खातिर उसके, बेटे तूने लगाया है।।
षड्यंत्री है बुद्धि तेरी यही बताने आये हैं।
  सुन ले सत्ता कान....

हम किसान हैं तुमने हमको, आतंकी परिभाषा दी।
सत्ता में आने से पहले, झूठी कई दिलासा दी।
राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े, मनमर्जी को झोंक रहे।
उसी आग में अन्न के दाता, को ज़िंदा ही झोंक रहे।।
एमएसपी का एक्ट बनाओ ये समझाने आये हैं।
    सुन ले सत्ता कान...

मंदिर मस्जिद तुमको भाता, राजनीति बस इतनी हैं।
खुद के गिरेबान में झाँको, औक़ातें ही कितनी हैं।।
सत्ता की चाबी का ताला, धर्म की कुंजी से खोलो।
देश मे बाकी मरे सो मरता, उसपे न तुम कुछ बोलो।।
दोगलपन कितना है तुममें वही दिखाने आये हैं।
   सुन ले सत्ता कान.....

बार बार तो माफ किया है, अबकी ही इंसाफ मिले।
घाव किसानों के भर दे जो, हमको लिखित जवाब मिले।।
सारी फसलों की कीमत, अबसे तय स्वयं किसान करें।
एमएसपी से कम न बेंचे, अन्न का वो  सम्मान करें।।
अंतिम ये पैगाम हमारा तुम्हें सुनाने आये हैं।
    सुन ले सत्ता कान.....

अगर नहीं हो पाया ऐसा, जंग नई छिड़ जाएगी।
इन हिंदुस्तानी अंग्रेजों की, कब्रें खोदी जायेगीं।।
व्यापारी हम पर हावी हैं, और नहीं चल पाएगा।
आखिर हल का मालिक अपने, हल को कैसे पायेगा।।
छोड़ गुलामी व्यापारी की यही सिखाने आये हैं।
   सुनले सत्ता कान.....

©®योगेश योगी किसान

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