मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

महमूद ग़ज़नवी और सोमनाथ मंदिर के बारे में चौंका देने वाला खुलासा। पोस्ट बड़ा है पर इतिहास को खोलने वाला है पूरा ज़रूर पढ़े..

गुजरात का सोमनाथ आज फिर दलितों के अत्याचार पर अपने हक़ीक़ी मोहसिन को पुकार रहा है।
.... महमूद गजनवी का ज़हूर एक ऐसे समुद्री तूफ़ान की तरह था जो अपनी राह में मौजूद हर मौज को अपनी आगोश में ले लेती है, वह ऐसा फातेह था जिसकी तलवार की आवाज़ कभी तुर्किस्तान से आती तो कभी हिंदुस्तान से आती, उसके कभी न् थकने वा
ले घोड़े कभी सिंध का पानी पी रहे होते तो कुछ ही लम्हो बाद गांगा की मौजों से अटखेलियां करते । वह उन मुसाफिरों में से था जिसने अपनी मंजिल तै नही की थी, और हर मंजिल से आगे गुजर जाता रहा...
उसे फ़तेह का नशा था, जीतना उसकी आदत थी, वैसे तो वह इसी आदत की वजह से अपने परचम को खानाबदोश की तरह लिए फिरता रहा और जीतता गया, पर अल्लाह रब्बुल इज्जत ने उसे एक अज़ीम काम के लिए चुना था ..

और अल्लाह अपना काम ले कर रहता है।।

...... भारत का पुराना इतिहास खगालने पर यहाँ का सामाजिक ताना बाना पता लगता है, वेस्ट एशिया से एक फ़तेह कौम का भारत पर वर्चस्व हुआ, तो उन्होंने अपनी रिहायश के लिए, हरे भरे मैदान चुने और हारे हुए मूल निवासियों को जंगल दर्रों और खुश्क बंजर ज़मीनों पर बसने के लिए विवश किया गया, चूँकि मूल भारतियों की तुलना में आर्य कम थे इसलिए उन्होंने सोशल इंजीनियरींग का ज़बरदस्त कमाल् दिखाते हुए, मूल भारतियों को काम के हिसाब से वर्गों में और जातियों में बाँट दिया, और इस व्यवस्था को धर्म बता कर हमेशा के लिए इंसानो को गुलामी की न् दिखने वाली जंजीरों में जकड़ लिया । ब्राह्मणों ( आर्य) के देवता की नज़र में मूल भारतीय एक शूद्र, अछूत, और पिछले जन्म का पाप भोगने वाले लोगों का समूह बन गया, ब्राह्मणों के धर्म रूपी व्यवस्था की हिफाज़त के लिए एक समूह को क्षत्रिय कहा गया, वह क्षत्रिय, ब्राह्मणों के आदेश को देवता का हुक्म मानते और इस तरह सदियों-सदियों से लेकर आज तक वह ब्राह्मणवादी व्यवस्था से शूद्र बाहर नही निकल सके
....
महमूद गजनवी को राजा नन्दपाल की मौत की खबर मिल चुकी, अब ग़ज़नवी की फौज नन्दना के किले को फ़तेह करने के लिए बेताब थी, इधर तिर्लोचन पाल को राज़ा घोसित करके गद्दी सौंप दी गयी, त्रिलोचन पाल को जब ग़ज़नवी की फौजों की पेश कदमी की खबर मिली तो उसने किले की हिफाज़त अपने बेटे भीम पाल को सौंप दी, भीम पाल की फ़ौज गज़नबी के आगे एक दिन भी न ठहर सकी, उधर कश्मीर में तिरलोचन ने झेलम के शुमाल में एक फ़ौज को मुनज्जम किया जो एक सिकश्त खोरदा लश्कर साबित हुई।।

रणवीर एक राजपूत सरदार का बेटा था जो भीम सिंह से साथ नन्दना के किले पर अपनी टुकड़ी की क़यादत कर रहा था, रणवीर बहुत बहादुरी से लड़ा और यहाँ तक कि उसके जौहर देख कर गज़नबी मुतास्सिर हुए बिना न् रह सका, वह तब तक अकेला ग़ज़नवी के लश्कर को रोके रहा जब तक उसके पैरों में खड़े रहने की ताकत थी, उसके बाद ज़मीन पर गिर कर बेहोश हो गया, आँखे खोली तो गज़नबी के तबीब उसकी मरहम पट्टी कर रहे थे, रणवीर ने गज़नबी के मुताल्लिक बड़ा डरावनी और वहशत की कहानियां सुनी थीं, लेकिन यह जो हुस्ने सुलूक उसके साथ हो रहा था, उसने कभी किसी हिन्दू राज़ा को युद्ध बंदियों के साथ करते नही देखा । उसे लगा कि शायद धर्म परिवर्तन करने के लिए बोला जायेगा, तब तक अच्छा सुलूक होगा, मना करने पर यह मुस्लिम फ़ौज उसे
अज़ीयत देगी, उसने इस आदशे का इज़हार महमूद से कर ही दिया, कि अगर तुम क़त्ल करना चाहते हो तो शौक से करो पर मै धर्म नही बदलूंगा, उसके जवाब में ग़ज़नवी के होंठों पर बस एक शांत मुस्कराहट थी, गज़नबी चला गया, रणवीर के जखम तेज़ी से भर रहे थे, वह नन्दना के किले का कैदी था पर न् उसे बेड़ियां पहनाई गयी और न् ही किसी कोठरी में बंद किया गया। कुछ वक़्त गुजरने के साथ ही कैदियों की एक टुकड़ी को रिहा किया गया जिसमें रणबीर भी था, रिहाई की शर्त बस एक हदफ़ था कि वह अब कभी गज़नबी के मद्दे मुकाबिल नही आएंगे, यह तिर्लोचन पाल के सैनिकों के लिए चमत्कार या हैरान कुन बात थी, उन्हें यक़ीन करना मुश्किल था, खैर रणवीर जब अपने घर पहुंचा तो उसे उम्मीद थी कि उसकी इकलौती बहन सरला देवी उसका इस्तकबाल करेगी और भाई की आमद पर फुले नही समाएगी, पर घर पर दस्तक देने बाद भी जब दरवाज़ा नही खुला तो उसे अहसास हुआ कि दरवाज़ा बाहर से बंद है , उसे लगा बहन यहीं पड़ोस में होगी, वह पड़ोस के चाचा के घर गया तो उसने जो सुना उसे सुन कर वह वहशीपन की हद तक गमो गुस्से से भर गया, उसकी बहन को मंदिर के महाजन के साथ कुछ फ़ौजी उठा कर ले गए, चाचा बड़े फ़ख्र से बता रहा था कि, रणवीर खुश किस्मत हो जो तुम्हारी बहन को महादेव की सेवा करने का मौका मिला है, लेकिन यह लफ्ज़ रणवीर को मुतास्सिर न् कर सके, रणबीर चिल्लाया कि किसके आदेश से उठाया, चाचा बोले, पुरोहित बता रहा था कि सोमनाथ से आदेश आया है कि हर गाँव से तीन लड़कियां देव दासी के तौर पर सेवा करने जाएंगी, हमारे गाँव से भी सरला के साथ दो और लड़कियां ले जाई गयी हैं। रणवीर खुद को असहाय महसूस कर रहा था, कहीं से उम्मीद नज़र नही आ रही थी, ज़हनी कैफियत यह थी कि गमो गुस्से से पागल हो गया था, वह सोच रहा कि वह एक ऐसे राज़ा और उसका राज़ बचाने के लिए जान हथेली पर लिए फिर रहा था, और जब वह जंग में था तो उसी राज़ा के सिपाही उसकी बहन को पुरोहितों के आदेश पर उठा ले गए, उसने सोचा कि राज़ा से फ़रयाद करेगा, अपनी वफादारी का हवाला देगा, नही तो एहतिजाज करेगा,,,चाचा से उसने अपने जज़्बात का इजहार किया, चाचा ने उसे समझाया कि अगर ऐसा किया तो धर्म विरोधी समझे जाओगे और इसका अंजाम मौत है। उसे एक ही सूरत नज़र आ रही थी कि वह अपने दुश्मन ग़ज़नवी से अपनी बहन की इज़्ज़त की गुहार लगायेगा। लेकिन फिर सोचने लगता कि ग़ज़नवी क्यू उसके लिए जंग करेगा, उसे उसकी बहन की इज़्ज़त से क्या उज्र, वह एक विदेशी है और उसका धर्म भी अलग है,, लेकिन रणवीर की अंतरात्मा से आवाज़ आती कि उसने तुझे अमान दी थी, वह आबरू की हिफाज़त करेगा और बहन के लिए न् सही पर एक औरत की अस्मिता पर सब कुछ दाव पर लगा देगा, क्यू कि वह एक मुसलमान है।।

रणवीर घोड़े पर सवार हो उल्टा सरपट दौड़ गया.....इधर सोमनाथ में सालाना इज़लास चल रहा था, इस सालाना इज़लास में सारे राज़ा और अधिकारी गुजरात के सोमनाथ में जमा होते, जो लड़कियां देवदासी के तौर पर लायी जातीं उनकी पहले से ट्रेनिंग दी जाती, जो लड़की पहले नम्बर पर आती उस पर सोमनाथ के बड़े भगवान का हक़ माना जाता, बाकी लड़कियां छोटे बड़े साधुओं की खिदमत करने को रहतीं और अपनी बारी का इंतज़ार करतीं, उन सभी लड़कियों को कहा जाता कि साज़ श्रृंगार और नाज़ो अदा सीखें, जिससे भगवान को रिझा सकें। एक दिन ऐसा आता कि जीतने वाली लड़की को कहा जाता कि आज उसे भगवान् ने भोग विलास के लिए बुलाया है, उसके बाद वह लड़की कभी नज़र नही आती, ऐसा माना जाता कि महादेव उस लड़की को अपने साथ ले गए और अब वह उनकी पटरानी बन चुकी है। यह बातें रणवीर को पता थीं, उसकी सोच-सोच कर जिस्मानी ताक़त भी सल हो गयी थी, ताहम उसका
घोडा अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था, ग़ज़नवी से मिल कर उसने अपनी रूदाद बताई, एक गैरत मन्द कौम के बेटे को किसी औरत की आबरू से बड़ी
और क्या चीज़ हो सकती थी, वह हिंदुत्व या सनातन को नही जानता था, उसे पता भी नही था कि यह कोई धर्म भी है, और जब परिचय ही नही था तो द्वेष का तो सवाल ही नही था, हाँ उसके लिए बात सिर्फ इतनी थी कि एक बहादुर सिपाही की मज़लूम तनहा बहन को कुछ लोग उठा ले गए हैं और अब उसका भाई उससे मदद की गुहार लगा रहा है, वह गैरत मन्द सालार अपने दिल ही दिल में अहद कर लिया कि वह एक भाई की बहन को आज़ाद कराने के लिए अपने आखरी सिपाही तक जंग करेगा ,।

ग़ज़नवी जिसके घोड़ो को हर वक़्त जीन पहने रहने की आदत हो चुकी थी, और हर वक़्त दौड़ लगाने के लिए आतुर रहते, वह जानते थे कि सालार की बेशतर जिंदगी आलीशान खेमो और महलों में नही बल्कि घोड़े की पीठ पर गुजरी है, गज़नबी ने फ़ौज को सोमनाथ की तरह कूच का हुक्म दिया । यह अफवाह थी कि सोमनाथ की तरफ देखने वाला जल कर भस्म हो जाता है और गज़नबी की मौत अब निश्चित है, वह मंदिर क्या शहर में घुसने से पहले ही दिव्य शक्ति से तबाह हो जायेगा, अफवाह ही पाखंड का आधार होती है, गज़नबी अब मंदिर परिसर में खड़ा था, बड़े छोटे सब पूरोहित बंधे पड़े थे, राजाओं और उनकी फ़ौज की लाशें पुरे शहर में फैली पड़ीं थीं, और सोमनाथ का बुत टूट कर कुछ पत्थर नुमा टुकड़ों में तब्दील हो गया था,, दरअसल सबसे बड़ी मौत तो पाखंड रूपी डर की हुई थी, कमरों की तलाशी ली जा रही थी जिनमे हज़ारो जवान और नौ उम्र लडकिया बुरी हालत में बंदी पायी गईं, वह लड़कियां जो भगवान के पास चली जाती और कभी नही आती, पूछने पर पता चला कि जब बड़े पुरोहित के शोषण से गर्भवती हो जातीं तो यह ढोंग करके कत्ल कर दी जाती, इस बात को कभी नही खोलतीं क्यू कि धर्म का आडंबर इतना बड़ा था कि यह इलज़ाम लगाने पर हर कोई उन लड़कियों को ही पापी समझता ।

महमूद ने जब अपनी आँखों से यह देखा तो हैरान परेशान, और बे यकीनी हालात देख कर तमतमा उठा, रणवीर जो कि अपनी बहन को पा कर बेहद खुश था, उससे गज़नबी ने पुछा कि क्या देवदासियां सिर्फ यहीं हैं, रणवीर ने बताया कि ऐसा हर प्रांत में एक मंदिर है। उसके बाद गज़नबी जितना दौड़ सकता था दौड़ा , और जुल्म, उनके बुत कदों को ढहाता चला गया, पुरे भारत में न् कोई उसकी रफ़्तार का सानी था और न कोई उसके हमले की ताब ला सकता था, सोमनाथ को तोड़ कर अब वह यहाँ के लोगों की नज़र में खुद एक आडंबर बन चूका था, दबे कुचले मज़लूम लोग उसे अवतार मान रहे थे, गज़नबी ने जब यह देखा तो तौहीद की दावत दी, वह जहाँ गया वहां प्रताड़ित समाज स्वेच्छा से मुसलमान हो उसके साथ होता गया, उसकी फ़ौज में आधे के लगभग हिन्दू धर्म के लोग थे जो उसका समर्थन कर रहे थे ।उसकी तलवार ने आडंबर, ज़ुल्म और पाखंड को फ़तेह किया तो उसके किरदार ने दिलों को फ़तेह किया ।वह् अपने जीते हुए इलाके का इक़तिदार मज़लूम कौम के प्रतिनिधि को देता गया और खुद कहीं नही ठहरा । वह जो .... महमूद गज़नबी था।

नोट :
 उक्त लेख इतिहास की सत्य घटनाओ पर आधारित है, किसी की धार्मिक अथवा किसी भी प्रकार की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो वो सच्चाई को स्वीकार करने की आदत डाल लें।

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

उन्नाव के दोषियों का बचाव ब्राम्हण कहकर क्यों?

"उन्नाव के नरपिशाच दोषियों का बचाव ब्राम्हण कहकर क्यों"

मैं यह लेख लिखना नहीं चाहता था लेकिन वास्तविकता को छुपाना और उनके पहलुओं पर बात करना भी एक तरह का अन्याय ही है। जैसे विवेचना के दौरान यदि सही साक्ष्यों को कानून के नुमाइंदे छुपा लें या बदल दें तो पूरा केस प्रभावित होता है ठीक इसी तरह सत्य भी है। उन्नाव में जो घटना हुई उससे केवल उन्नाव ही नहीं वरन पूरा विश्व अछूता नहीं रहा। विदेशी मीडिया ने तो भारत को #रेप_कैपिटल_ऑफ_वर्ल्ड तक नाम दे डाला। बलात्कार जैसे मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए, एक बड़ी पार्टी की तरफ से ये बयान आया। शायद वो ये भूल गए कि हर वो मैटर जिस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए उस पर राजनीति, वह आपकी ही पार्टी की देन है। उत्तरप्रदेश में इसी साल अकेले 88 से अधिक बलात्कारों(रजिस्टर्ड पता नहीं कितने मुकदमे पुलिस ने न लिखे और कितनों पर सुलह कराई) ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वँहा चल क्या रहा है। अगर इसके पहले वाली सरकारों में जंगलराज था तो इसे रामराज्य कहना कँहा तक सारगर्भित है।
देश मे कई बलात्कार हुए आरोपी दो तरीके के ही रहे एक मानसिक विकलांगता वाले और दूजे रसूख़ वाले। मानसिक विकलांगता वालों ने तो यदा कदा ही व्यभिचार किया लेकिन इन रसूख़ वालों ने तो बलात्कार की परिभाषा ही बदल दी। क्रूरता की वो मिसालें पेश की हैं कि बलात्कार के मानसिक विकलांगता वाले आरोपी भी तुच्छ लगने लगे, मानो ये यह कह रहे हों कि रसूख़ वाले तो रसूख़ वाले ही होते हैं।
बलात्कारों का भी ध्रुवीकरण हुआ उनको भी वोटों के लिए और राजनीति के हथकंडों के लिए उपयोग किया जाने लगा जिसमें कोई पार्टी कमतर नहीं थी, सबने अपनी अपनी तख्तियाँ अपने अपने हिसाब से उठाईं बलात्कार तो कई हुए लेकिन तख़्तियाँ राजनीति की ही पोषक रहीं। लेकिन यँहा एक बात स्पष्ठ कर देना चाहता हूँ कि बहुत सी आवाजें और तख़्तियाँ ऐसी भी थी जिन्हें ह्रदय से पीड़ा हुई और वो इंसाफ की गुहार लगाने लगे और उन्हीं की बदौलत देश मे कुछ मामलों पर न्याय मिला या प्रोसेस में है वरना गरीब और नींव की बात इस देश मे कोई नहीं करता।
राजनीति वालों ने कभी भी बलात्कार की पीड़िता और उसके आँसू, उसका असहनीय दर्द, उसके परिवार की वेदना नहीं देखी, उन्होंने उसमे देखा तो सिर्फ हिन्दू, मुस्लिम, दलित और इसके पीछे मकसद था सत्ता! उनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ यही रही।
आज वही हो रहा है। उन्नाव में जघन्य सामूहिक बलात्कार और फिर जमानत से छूटने के बाद रसूख़ के नशे में चूर सत्ता का दुशाला ओढ़े दुर्दांत अपराधियों ने पीड़िता के ऊपर घासलेट डालकर आग लगा दी। पीड़िता एक किमी तक दौड़ती रही। धू-धू करके जलती रही। मदद की गुहार लगाती रही। लेकिन ये उत्तरप्रदेश है साहब यँहा अपराधियों की ही तूती बोलती है।
अपराध अपराध होता है और अपराधी सिर्फ अपराधी यह बात भूलकर फिर कुछ देश और समाज तोड़ने वाले  लोग जो बलात्कार में हिन्दू-मुस्लिम करते हैं उनके स्वर फिर मुखर हो उठे और इन बलात्कारियों को बचाने के लिए जातिवाद का सहारा लेने लगे।
इन अपराधियों का बचाव यह कह कर किया जा रहा है की यह पूरे ब्राम्हण समाज पर हमला है। लगातार इनको बचाने सोसल मीडिया पर मुहिम चलाई जा रही है। इसे धर्म पर हमला कहा जा रहा है। किसी अव्वल दर्जे के नीच ने जो अपने आप को एस्ट्रोलॉजर कहता है उसने तो जनता से प्रश्नोत्तरी ही खेल ली -"क्या नाजायज संबंधों का आरोप लागकर जेल कराने वाली को जला कर मारना सही है?" और उससे भी घ्रणित मानसिकता देखिए साहब उच्च वर्ग के ही अधिकांस प्राणियों ने कॉमेंट में कहा कि बिल्कुल सही किया! ऐसा ही करना चाहिए! आदि आदि। इतनी दोयम दर्जे की मानसिकता का प्रदर्शन क्यों? क्या जाति विशेष होने के कारण ऐसा किया जा रहा है? या फिर देश मे एक नए तरह का जहर घोला जा रहा है? वो वरिष्ठ जन जिनकी पोस्ट पर हैदराबाद की घटना पर उनके वालपोस्ट ट्विटर पर मुस्लिम मुस्लिम करके घृणा फैलाई जा रही थी, अचानक से हिंदुओं के शामिल होने का पता चलने पर खंडन भी न कर सके। वही कौम फिर से एक बार ब्राम्हण का नाम लेकर सक्रिय हो उठी है। ब्राम्हणों ने किया मतलब सही होगा? या ब्राम्हण ऐसा नहीं कर सकते? या ब्राम्हणो के खिलाफ साजिश रची जा रही है? अरे भाई सब कुछ आपको ही निर्धारण करना है तो फिर देश का संविधान किसलिए, और अगर आपकी बात सही है तो हैदराबाद के एनकाउण्टर सही कैसे? दरअसल आप आज तक ये निर्धारण नहीं कर सके कि गलत को गलत की नजर से देखना कैसे है? यकीन मानें आप ब्राम्हणों को नहीं बचा रहे बल्कि आज तक किए गए उनके #तप को पूर्णतः ज़मीदोज़ करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हो। आप देश के जनमानस में वो नफरत भर रहे हो जिसका अंदाजा आपने सपने में नहीं सोचा। कोई ब्राम्हण सिर्फ जाति से नहीं बनता। ब्राम्हण बनता है कर्म से और इन अपराधियों के कर्म इतने ओछे हैं कि इन्हें ब्राम्हण समाज की तरफ से सामूहिक बहिष्कार और फाँसी की माँग किया जाना ही हितकर है।
वैसे भी ये देश ऊँच नीच और भेदभाव के दंश को झेल रहा है अगर इन आरोपियों को बचाया गया तो पिछड़ा वर्ग की वह पीड़िता जिसे जला कर मार दिया गया उसकी कौम आपको कैसे माफ कर पायेगी, क्यूँकि बलात्कार करने के बाद उसे जलाने के बाद भी यदि आप पाक होने का नाटक करोगे तो दुसरा वर्ग विशेष जिसने सामूहिक बलात्कार झेला और जिंदा जला देना क्या होता है अपनी आंखों से देखा उसका अस्तित्व कँहा रहेगा? और आगे भी उसके साथ क्या होगा क्या नहीं इसका जवाब कौन देगा?

सिर्फ और सिर्फ न्याय की आस में।

#उन्नाव_पीड़िता_को_न्याय_दो

©®योगेश योगी किसान
लेख सर्वाधिकार सुरक्षित
फ़ोटो-साभार ( बहुत ही दुःखद)

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

हे नारी फूलन बन जाओ। #हे नारी फूलन बन जाओ

हे_नारी_फूलन_बन_जाओ , गीत मातृशक्ति पर नित हो रहे अत्याचार से आहत होकर महिलाओं के सम्मान में, नारी शक्ति को समर्पित, आप सबके आशीष की चाह में,


अब समय नहीं थामो बल्ला,
गोस्वामी झूलन बन जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
हे नारी #फूलन बन जाओ।।

ये सत्ताएं मदमस्त हुईं,
न फिकर इन्हें तेरी होती।
पैसे कुर्सी की लालच में,
बस इनकी है फेरी होती।।
इनको मारो ये जँहा मिलें,
धर पाँव वक्ष मे चढ़ जाओ।
हथियार उठा गोली दागो
        हे नारी.....

तुमने सृष्टि को जन्म दिया,
अपमान तेरा ही भारत मे।
तुमसे दुनिया है टिकी हुई,
फिर भी महिमा है गारत में।।
जिसने तेरा अपमान किया,
मारो उसको न मर जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
         हे नारी....

हे नारी यूँ न घूँट पियो,
अपमानों वाले प्यालों का।
हल गोली है ये याद रखो,
इन ह्रदय के गहरे छालों का।।
इज़्ज़त का बदला लेने को,
रणचंडी सी तुम तन जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
     हे नारी....

ये पुरुष सदा जो अहम करें,
समझें तुमको मनमौजी का।
सीने इनके छलनी कर दो,
अब रूप धरो तुम फौजी का।।
मन तनिक नहीं अधीर करो,
मारो इनको औ इतराओ।
हथियार उठा गोली दागो,
   हे नारी....

इनकी हस्ती का नाश करो,
सारे भारत पर राज करो।
सारे पुरुषों को दफन करो,
ज़िंदा गाड़ो ये काज करो।।
मरने पर इनके तनिक नहीं,
सोचो याकि तुम घबराओ।
हथियार उठा गोली दागो,
    हे नारी.....

मत सोच रखो ये हैं जीवन,
पुरुषों को न अभिमान कहो।
जो चुप बैठे वो भी दोषी,
इनको भी तुम शैतान कहो।।
प्रण इन दुष्टों के मर्दन का,
अबकी ऐसी सौगंध खाओ,
हथियार उठा गोली दागो,
      हे नारी फूलन..

ये ही वकील ये जज तेरे,
ये बलात्कार कर जाते हैं।
हो थाने या की राजनीति,
अपराधी बन कर आते हैं।।
साधु सन्याशी हो हकीम,
बंदूक कँहा जल्दी लाओ,
हथियार उठा गोली दागो,
          हे नारी....

इनकी चुप्पी से ही तेरी,
असमत को लूटा जाता है।
गलती पुरुषों की होती पर,
सब तुझ पर थोपा जाता है।।
इसलिए उठो ये धर्म कहे,
इनको मारो और तर जाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
         हे नारी.....

गर भारत मे तुमको रहना,
हे नारी तुम टंकार करो।
न रहे शेष सर एक कोई,
सब पुरुषों का संहार करो।।
फिर कहता हूँ न एक बचे,
गौरव ऐसा तुम ही पाओ।
हथियार उठा गोली दागो,
       हे नारी फूलन बन जाओ।।
       हे नारी फूलन.....



©®योगेश योगी किसान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...