चीरा धरती का सीना है सबकी भूख मिटाने को,
भूखा कैसे मैं सो जाता शब्द नही समझाने को,
मुझको फसल मेरी बेटे सी रोज दिखाई देती है,
पाला-पोषा कैसे मैंने, क्या तुम्हे दिखाई देती है,
हो जाती जब रात तुम्हारी मेरी सुबह तभी होती,
मेरी किसानी की किताब में कोई पहर नही होती,
चंद पंक्तियाँ मेरी कविता✍ "किसान का दर्द" से....
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©®योगेश मणि योगी
भूखा कैसे मैं सो जाता शब्द नही समझाने को,
मुझको फसल मेरी बेटे सी रोज दिखाई देती है,
पाला-पोषा कैसे मैंने, क्या तुम्हे दिखाई देती है,
हो जाती जब रात तुम्हारी मेरी सुबह तभी होती,
मेरी किसानी की किताब में कोई पहर नही होती,
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