शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

चीरा धरती का सीना है सबकी भूख मिटाने को,
भूखा कैसे मैं सो जाता शब्द नही समझाने को,
मुझको फसल मेरी बेटे सी रोज दिखाई देती है,
पाला-पोषा कैसे मैंने, क्या तुम्हे दिखाई देती है,
हो जाती जब रात तुम्हारी मेरी सुबह तभी होती,
मेरी किसानी की किताब में कोई पहर नही होती,

चंद पंक्तियाँ  मेरी कविता✍ "किसान का दर्द" से....
सर्वाधिकार सुरक्षित मूलरूप में ही शेयर करें
©®योगेश मणि योगी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...