शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

चीरा धरती का सीना है सबकी भूख मिटाने को,
भूखा कैसे मैं सो जाता शब्द नही समझाने को,
मुझको फसल मेरी बेटे सी रोज दिखाई देती है,
पाला-पोषा कैसे मैंने, क्या तुम्हे दिखाई देती है,
हो जाती जब रात तुम्हारी मेरी सुबह तभी होती,
मेरी किसानी की किताब में कोई पहर नही होती,

चंद पंक्तियाँ  मेरी कविता✍ "किसान का दर्द" से....
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©®योगेश मणि योगी

सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

जब सबूतों के अभाव में दोषी बच जाते हैं और रशूख न होने के कारण आम आदमी को न्याय नही मिलता तब भारत का सिस्टम 2 कौड़ी की रखैल नजर आता है-
अपने माता पिता के हत्यारों को जब एक बेटी सजा नही दिलवा पाती सिस्टम जो पैसों और पावर का गुलाम है से हार जाती है और आत्महत्या कर लेती है तब लगता है कि भारत की उन्नति कभी नही हो सकती।
मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि के साथ चंद पंक्तियाँ-

मत रो की तूने जन्म लिया है महान देश मे,
तन नंगा है,पेट भूखा जीता जा परिवेश में,
बिका है जो अमीरों के हाथों में सिस्टम,
न्याय किसको मिला है अब तक इस देश में,
पैसा पॉवर चलता हैं कोठों में अदालत की,
मुजरा करता हैं कानून तवायफ के भेष में,
ऐसे ही घुट घुट कर मरोगे गरीब हो तुम,
क्योंकि राजनीति भृष्टनीति हावी है देश मे,


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©® योगेश मणि 'योगी'


ईद मुबारक #Eidmubarak

  झूठों को भी ईद मुबारक, सच्चों को भी ईद मुबारक। धर्म नशे में डूबे हैं जो उन बच्चों को ईद मुबारक।। मुख में राम बगल में छुरी धर्म ध्वजा जो ...