दर्द की बहती सरिता लिखता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
भृस्टाचार मुक्त है भारत मेरा,
कदम कदम पर भाई चारे का है डेरा,
किसान अब कँहा आत्महत्या करता है?
फौजी भी अब दुश्मन के हाथों नही मरता है!
हकीकत की स्याही से कुछ शब्द चुनता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
नेता मेरे देश में हैं ,ईश्वर से बढ़कर,
जनता के साथ खड़े हैं डटकर,
उनके कामों को सबसे पहले करते हैं,
अपने घर अब नही वो भरते हैं!
मैं भी कवि होने का फर्ज कहता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
पुलिश ईमानदार है नही करती अत्याचार है,
गरीबों के लिए हरदम तैयार है,
अमीरों से अब नहीं होता समझौता है,
गुंडों का साथ कोई पुलिस वाला नही देता है,
मैं भारत की खुशियों की बात कहता हूँ,
चलो अच्छी से एक कविता लिखता हूँ,
फौजी सीमा पर आराम कर रहा है,
कोई दुश्मन नहीं परेशान कर रहा है,
नही आती है कोई लाश घर के आंगन में,
न कोई शव आता है सर कटा माँ के दामन में,
देश की वाहवाही की बात लिखता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
कानून की आंखों से पट्टी खुल गई है,
अब सबको देश मे आज़ादी मिल गई है,
अब नही बिकता कोई जज देश मे,
फैशला होता है बिना पैसे के परिवेश में,
कानून की अस्मिता पर चादर ढंकता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
लटका है डाली पर नही वो किसान है,
कर्ज से अब नहीं कोई परेशान है,
फसलों के भाव भी अच्छे मिलने लगे हैं,
अब घर खुश है, बच्चे भी पढ़ने लगे हैं,
जो सुनना चाहते हो वही कहता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
आंसुओं की स्याही में कलम डुबोकर,
हकीकत में देश की काटें चुभोकर,
सच्चाई से देश की दूर करता हूं,
मैं भी चलो चाटुकार बनता हूँ,
जो सुनना चाहते हो वही लिखता हूँ,
चलो तलवे चाटती एक कविता लिखता हूँ,
रचनाकार-
लोधी योगेश मणि 'योगी'
कापीराइट ©®सर्वाधिकार सुरक्षित
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चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
भृस्टाचार मुक्त है भारत मेरा,
कदम कदम पर भाई चारे का है डेरा,
किसान अब कँहा आत्महत्या करता है?
फौजी भी अब दुश्मन के हाथों नही मरता है!
हकीकत की स्याही से कुछ शब्द चुनता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
नेता मेरे देश में हैं ,ईश्वर से बढ़कर,
जनता के साथ खड़े हैं डटकर,
उनके कामों को सबसे पहले करते हैं,
अपने घर अब नही वो भरते हैं!
मैं भी कवि होने का फर्ज कहता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
पुलिश ईमानदार है नही करती अत्याचार है,
गरीबों के लिए हरदम तैयार है,
अमीरों से अब नहीं होता समझौता है,
गुंडों का साथ कोई पुलिस वाला नही देता है,
मैं भारत की खुशियों की बात कहता हूँ,
चलो अच्छी से एक कविता लिखता हूँ,
फौजी सीमा पर आराम कर रहा है,
कोई दुश्मन नहीं परेशान कर रहा है,
नही आती है कोई लाश घर के आंगन में,
न कोई शव आता है सर कटा माँ के दामन में,
देश की वाहवाही की बात लिखता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
कानून की आंखों से पट्टी खुल गई है,
अब सबको देश मे आज़ादी मिल गई है,
अब नही बिकता कोई जज देश मे,
फैशला होता है बिना पैसे के परिवेश में,
कानून की अस्मिता पर चादर ढंकता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
लटका है डाली पर नही वो किसान है,
कर्ज से अब नहीं कोई परेशान है,
फसलों के भाव भी अच्छे मिलने लगे हैं,
अब घर खुश है, बच्चे भी पढ़ने लगे हैं,
जो सुनना चाहते हो वही कहता हूँ,
चलो अच्छी सी एक कविता लिखता हूँ,
आंसुओं की स्याही में कलम डुबोकर,
हकीकत में देश की काटें चुभोकर,
सच्चाई से देश की दूर करता हूं,
मैं भी चलो चाटुकार बनता हूँ,
जो सुनना चाहते हो वही लिखता हूँ,
चलो तलवे चाटती एक कविता लिखता हूँ,
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